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इंजीनियरिंग और एमबीए के बाद बनीं इनवेस्टमेंट बैंकर, नहीं लगा मन तो 6 साल बाद लिया UPSC देने का फैसला

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यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास कर आईएएस और आईपीएस जैसे प्रतिष्ठित पद को पाने की ख्वाहिश हर भारतीय युवा की होती हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए बहुत हिम्मत और हौसला चाहिए. यूपीएससी का एग्जाम क्लियर करने के लिए अथक मेहनत के साथ-साथ बहुत धैर्य भी रखना पड़ता है. ज्यादातर युवा जो यूपीएससी में सफलता हासिल करना चाहते हैं, वे कॉलेज की पढ़ाई होते ही इसकी तैयारी में लग जाते हैं।

वहीं, आज हम आपको एक ऐसी आईएएस ऑफिसर की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने न केवल अपनी हाईएस्ट पेइंग जॉब छोड़ी, बल्कि लंबे गैप के बाद पढ़ाई शुरू की. हम बात कर रहे हैं आईएएस प्रियंवदा म्हदलकर की, जिन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल कर आपना बचपन का सपना पूरा किया।

बचपन में देखा था कलेक्टर बनने का सपना

प्रियंवदा महाराष्ट्र के रत्नागिरी की रहने वाली हैं. उन्होंने बचपन में ही आईएएस ऑफिसर बनने का तय कर लिया था. 5 साल की छोटी सी उम्र में ही उन्होंने कलेक्टर बनने का सपना देख लिया था. हालांकि, कॉलेज की पढ़ाई के बाद उनकी लाइफ उन्हें किसी और रास्ते पर ले गई. दरअसल, प्रियंवदा ने वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट, मुंबई से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. बीटेक करने के बाद उन्होंने आईआईएम बैंगलोर से एमबीए की पढ़ाई पूरी की।

इनवेस्टमेंट बैंकिंग फर्म में की जॉब

इसके बाद वह इनवेस्टमेंट बैंकर के तौर जॉब करने लगीं. फाइनेंशियल सर्विस सेक्टर में प्रियंवदा ने 6 साल तक अलग-अलग कंपनियों में अपनी सेवाएं दी, लेकिन बचपन का सपना अब भी मन में कहीं सांस ले रहा था, जिसने प्रियंवदा को प्रेरित किया और बचपन के सपने को हकीकत में बदलने के लिए प्रियंवदा ने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी।

जॉब छोड़ की यूपीएससी की तैयारी

प्रियंवदा ने अच्छा खासा करियर छोड़कर साल 2020 में यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी. इंजीनियरिंग, एमबीए और कॉर्पोरेट सेक्टर में 6 साल तक काम करने के बाद उन्होंने यूपीएससी के पेपर दिए. अपने दूसरे अटैम्प्ट में साल 2021 में 13वीं रैंक के साथ उन्होंने यूपीएससी क्रैक किया और वह आईएएस ऑफिसर बन गईं।

लंबे समय तक बैठकर पढ़ाई करना

यूपीएससी मेन्स में प्रियंवदा का ऑप्शनल सब्जेक्ट सोशियोलॉजी लिया था. वह रोज 9 से 10 घंटे पढ़ती थीं. 6 साल बाद पढ़ाई वाले मोड में लौटना उनके लिए आसान नहीं था. उनके मुताबिक, “एक बार जब आप जॉब करने लगते हैं तो की-बोर्ड पर टाइप करने और डिजिटल मोड के इतने आदी हो जाते हैं कि अचानक घंटों बैठकर पेन-पेपर मोड में परीक्षा देना बेहद चैलेंजिंग होता है.” ऐसे में खुद को मोटिवेट और पॉजिटिव रखने की भी सलाह देते हुए कहती हैं कि यह सफर लंबा और बहुत मुश्किल है, इसमें धैर्य बनाए रखना जरूरी है।


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