भागलपुर के सबौर प्रखंड क्षेत्र के ममलखा गांव में 350 वर्ष से काली महारानी मंदिर में पूजा-पाठ के साथ प्रतिमा स्थापित होती आ रही है। इस ऐतिहासिक प्राचीन काली मंदिर में चार पीढ़ियों से एक ही परिवार द्वारा पूजा की जा रही है। पूजा समिति के पवन कुमार, पंचायत के मुखिया अभिषेक अर्णव, और ग्रामीण मनोज मंडल के अनुसार पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण और बड़े बुजुर्गों के अनुसार मंदिर का निर्माण लगभग 300 से 350 वर्ष पूर्व हुआ था।
श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर बिहार के 10 जिलों कटिहार, पूर्णिया, मधेपुरा, सुपौल के अलावा झारखंड के साहिबगंज, गोड्डा, राजमहल, देवघर आदि स्थानों से यहां आते हैं। श्रद्धालु संतान प्राप्ति से लेकर नौकरी और अन्य मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं, और उनकी मनोकामनाएं पूरी होने के बाद वे माता के दरबार में प्रसाद चढ़ाते हैं। पहले भैसा की बलि दी जाती थी, लेकिन अब यह प्रथा समाप्त हो चुकी है। केवल कान काटकर भैंसा को छोड़ दिया जाता है।
इस मंदिर की पूजा-पाठ की विधि में एक विशेष बात यह है कि मां काली की प्रतिमा स्थापित कर 24 घंटे के अंदर पूजा-पाठ कर मध्य रात्रि में प्रतिमा विसर्जित कर दी जाती है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। वहीं, यहां पर पाठा की बलि दी जाती है। लगभग 40 वर्ष पूर्व से पूजा समिति के लोग काली पूजा के अवसर पर फुटबॉल टूर्नामेंट, दंगल, और रामलीला का आयोजन करते हैं। इस दंगल में झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और अन्य राज्यों के पहलवान भाग लेते हैं।