Jammu & Kashmir

3 नवम्बर को मनाया जाएगा भाईदूज का त्यौहार, पुजारी अनूप गीरी ने बताया शुभ समय

प्राचीन शिव मन्दिर बिश्नाह से महामंडलेश्वर अनूप गिरि महाराज ने बताया कि इस वर्ष भाईदूज जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं 3 नवम्बर रविवार को है। तिलक करने के लिए सुबह से लेकर शाम साढ़े चार बजे तक का समय शुभ है। भाईदूज के दिन सुबह शिव-पार्वती की पूजा की जाती है उसके बाद यम की पूजा की जाती है। पूजन के बाद बहनें अपने भाई की मंगल कामना हेतु उसे तिलक लगाती हैं। भाई अपनी बहन को श्रद्धाभाव से वस्त्र, आभूषण तथा अन्य उपहार देते हैं।

भाईदूज का महत्व

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को सम्पन्न होने वाला भाईदूज का पर्व हमारे समाज का आदर्श पारिवारिक पर्व है। इस अवसर पर भाई अपनी बहनों के यहां जाकर उनकी पारिवारिक स्थिति का परिचय प्राप्त करते हैं, उनके सुख-दुख पूछते हैं, अपने हालचाल बताते हैं। यह दृढ़ पारिवारिक संगठन ही भारतीय कुटुम्ब प्रणाली की जान है। भाईदूज परिवार संगठन की एक सुदृढ़ कड़ी है जिसने बहन की शादी के बाद भी दो परिवारों को संयुक्त करके रखा है। लड़की का अधिक संबंध माता-पिता के साथ होता है उनके स्नेह से ही वह लालित-पालित होती है। अपने जीवनकाल तक वे ही सर्वदा उसका ध्यान रखते हैं। हमारे पूर्वजों ने भाईदूज पर्व इसलिए बनाया कि पितृ संपत्ति के भावी उत्तराधिकारी भाई के ऊपर उस कन्या के संरक्षण का भार सौंपा जाए। माता पिता तो बूढ़े हुए अब तो भाई ने ही गृहस्वामी बनना है, फलत: वह बहन की ओर से कभी उदासीन न हो सर्वदा उससे स्नेह रखे। इसके लिए बाल्यावस्था से ही प्रतिवर्ष आने वाली भाईदूज उसे बहन के निकट संपर्क में लाती है।

भाईदूज की पौराणिक कथा

पौराणिक आख्यान के अनुसार इस दिन भगवान यम अपनी बहन यमुना के यहां मिलने जाया करते हैं और उन्हीं के अनुकरण पर इस दिन जो लोग अपनी बहनों से मिलते हैं उनका यथेष्ट सम्मान पूजन आदि करके उनसे आशीर्वाद रूप तिलक प्राप्त करते हैं उन्हें इस दिन मृत्युभय नहीं रहता है। इस दिन यमुना स्नान का भी बहुत महत्त्व है। सूर्य भगवान की पत्नी का नाम संज्ञा देवी है इनकी दो संताने पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना थी। यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसायी, यमपुरी में पापियों को दंड देने का कार्य सम्पादित करते भाई को देखकर यमुना जी गो लोक चलीं आईं। बहुत समय हो जाने पर एक दिन सहसा यम को अपनी बहन की याद आई उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना को बहुत खोजवाया मगर यमुना न मिलीं। फिर यमराज स्वयं ही गो लोक आए जहां विश्रामघाट पर यमुना जी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर हो स्वागत सत्कार किया भोजन कराया। इससे प्रसन्न होकर यम ने वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा भैया मैं आपसे वरदान मांगना चाहती हूं कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएं। प्रश्न बड़ा कठिन था ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। अपने भाई को असमंजस में देखकर यमुना बोली भैया आप चिंता न करें आप मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करके इस मथुरा नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करें वह आपके लोक को न जाए। इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया। इस तिथि को जो सज्जन बहन के यहां भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बांधकर यमपुरी ले जाऊंगा। और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग प्राप्त होगा। तभी से भाईदूज का त्यौहार मनाया जाने लगा।


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