बिहार में जमीन की खरीद बिक्री के दौरान रजिस्ट्री कार्यालयों में अलग किस्म के फर्जीवाड़े का रैकेट चल रहा है. सरकारी जांच में इसके कई मामले सामने आये हैं. अंदाजा लगाया जा रहा है कि पूरे राज्य में जमीन रजिस्ट्री में फर्जीवाड़ा कर सरकार को मोटा नुकसान पहुंचाया गया है. अब ऐसे सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ साथ जमीन रजिस्ट्री करने वालों पर भी गाज गिर सकती है.
बेतिया में पकड़ा गया बड़ा फर्जीवाड़ा
जमीन की रजिस्ट्री में हेराफेरी का मामला पश्चिम चंपारण जिला यानि बेतिया में पकड़ा गया है. बिहार सरकार के निबंधन विभाग को इसकी शिकायत मिली थी. ऐसे में निबंधन विभाग के सहायक महानिदेशक से पूरे मामले की जांच करायी गयी. प्रारंभिक जांच में ही बड़ी गड़बड़ी सामने आ गयी है.
रजिस्ट्री में राजस्व की बड़ी चोरी
बेतिया में जमीन के एमवीआर यानि सरकारी रेट को कम दिखाकर जमीन रजिस्ट्री करा लेने के कई मामले सामने आये हैं. मामले की जांच के लिए सहायक महानिरीक्षक निबंधन राकेश कुमार ने खुद स्थल निरीक्षण कर जमीन को देखा. सहायक निबंधन महानिरीक्षक ने बेतिया के चनपटिया प्रखंड के बेतिया डीह, गुरवलीया, महना गनी जैसे पंचायतों के निबंधित दस्तावेजो के आधार पर स्थल पर पहुंच कर भौतिक सत्यापन किया.
सहायक निबंधन महानिदेशक ने अब तक रजिस्ट्री के सिर्फ 12 दस्तावेज का सत्यापन किया है, उसमें ही 15.60 लाख रुपए राजस्व क्षति के मामले पकड़ा गया है. चनपटिया रजिस्ट्री कार्यालय में निबंधित ज्यादातर दस्तावेजो में कम राजस्व का भुगतान करने की संभावना जातायी जा रही है.
अब तक हुई जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. जांच में पता चला है कि जमीन रजिस्ट्री में जमीन की प्रकृति एवं तथ्यों को छिपाकर निबंधन कराया गया है. आवासीय जमीन को कृषि भूमि, मुख्य सड़क की जगह पर सहायक सड़क दिखाकर रजिस्ट्री कराई गई है। सहायक निबंधन महानिरीक्षक ने सभी प्लॉटों का जीपीएस टैंग फोटो के साथ-साथ काफी गहनता से एक-एक बिंदु की जांच की है.
बता दें कि सरकार जमीन की स्थिति के मुताबिक उसका एमवीआर यानि सरकारी दर तय करती है. एक ही इलाके में व्यवसायिक जमीन का अलग एमवीआर होता है तो आवासीय जमीन का अलग. मुख्य सड़क पर जमीन का अलग एमवीआर होता है तो सहायक सड़क की जमीन का अलग. कृषि भूमि का एमवीआर अलग होता है.
एमवीआर के आधार पर ही सरकार रजिस्ट्री के दौरान पैसा लेती है. जमीन का जितना एमवीआर होता है उसका दो परसेंट रजिस्ट्री शुल्क लिया जाता है. वहीं, 6 परसेंट स्टांप ड्यूटी होता है. कुल मिलाकर जमीन की रजिस्ट्री के दौरान एमवीआर का 8 परसेंट राजस्व सरकार को देना होता है.
बेतिया में रजिस्ट्री के दौरान आवासीय जमीन को कृषि भूमि बता कर रजिस्ट्री कर दी गयी. चूंकि कृषि भूमि का एमवीआर कम होता है इसलिए जमीन की रजिस्ट्री के दौरान कम टैक्स लगा. इसी तरह मुख्य सड़क की जमीन को सहायक सड़क किनारे की जमीन बता दिया गया. इससे भी एमवीआर कम हुआ और सरकार को रजिस्ट्री के दौरान कम राजस्व हासिल हुआ.
अब इस हेराफेरी के खुलासे के बाद निबंधन कर्मचारियों औऱ अधिकारियों के साथ साथ जमीन की खरीद-बिक्री करने वालों पर भी गाज गिर सकती है. जमीन की रजिस्ट्री का नियम ये है कि रजिस्ट्री से पहले सब रजिस्ट्रार या उनका कोई प्रतिनिधि स्थल पर जाकर जमीन को देखेगा. उसके आधार पर एमवीआर और टैक्स का निर्धारण करेगा. लेकिन पैसे के खेल के सामने सरकारी नियम हवा हो गये हैं.
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