बिहार BJP की नई टीम तैयार, डैमेज कंट्रोल की भरपूर कोशिश; नए लिस्ट में भी पुराने बॉस का दबदबा कायम !

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बिहार में इस साल विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में इस चुनाव को लेकर भाजपा संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश में लगी हुई है। ऐसे में भाजपा के तरफ से नए जिलाध्यक्ष, बूथ अध्यक्ष चुने जा रहे हैं। लेकिन, इस लिस्ट में एक ख़ास वर्ग का दबदबा देखने को मिल रहा है। इसके बाद अब सवाल भी दबे जुबान में उठने लगे हैं।

दरअसल, इस बार भाजपा के तरफ से जारी जिलाध्यक्षों की लिस्ट में 45% सवर्ण हैं। इनमें ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत के साथ कायस्थ को जगह दी गई है। देखने वाली बात है कि इस बार सवर्ण के बाद सबसे ज्यादा तवज्जो कुशवाहा को दी गई है। इस बार भाजपा के तरफ से 10 जिलों की कमान कोइरी और कुर्मी के हाथ में दी गई है।

वहीं, इस बार अतिपिछड़ा की बात करें तो पार्टी ने इलाकावार उनकी आबादी के हिसाब से उन्हें जिले के संगठन में हिस्सेदारी दी है। इस वर्ग में मल्लाह के अलावा, हलवाई, कानू और भगत की कैटेगरी से आने वाले नेताओं पर भी पार्टी ने दांव लगाया है। लेकिन,मुस्लिम समुदाय से एक भी व्यक्ति को मौका नहीं दिया है।

इसके साथ ही नई लिस्ट से साफ़ है जाति के गणित को भी साधने की भरपूर कोशिश की गई है। ऐसे जिलाध्यक्ष जिनका परफॉर्मेंस लोकसभा चुनाव में बेहतर रहा है, उन्हें रिपीट किया गया है। जबकि शेखपुरा में पहली बार बीजेपी की तरफ से यादव समाज के नेता को अध्यक्ष बनाया गया है। वैसे भी यहां जीत-हार तय करने में तीन जातियों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है उसमें भूमिहार, कोइरी-कुर्मी और यादव।

इसके अलावा भाजपा ने इस बार बड़े जिलों को दो संगठन जिला में बांटा गया है, वहां एक सवर्ण और एक पिछड़ा समाज से जिलाध्यक्ष बनाया गया है। इस बार संगठन में मात्र 2 महिलाओं को जगह दी गई है जो 4 प्रतिशत से भी कम है। इसके साथ ही जिला अध्यक्षों के चयन में पार्टी ने दो बात का सख्ती से पालन किया है। पहला उम्र 60 पार न हो, दूसरा अध्यक्ष वही बने जो पार्टी के वफादार सिपाही रहे हों या फिर जिनका बैकग्राउंड संघ से जुड़ा हो।

इधर, ऐसी चर्चा है कि इस नए संगठन में सम्राट चौधरी का दबदबा अब भी बरकरार है। इसकी वजह है कि इस नए लिस्ट में लगभग 22-25 जिलाध्यक्षों को रिपीट किया गया है। ये वही जिलाध्ययक्ष हैं, जिनका चयन सम्राट चौधरी ने किया था।  इससे ये तो तय हो गया है कि भले सम्राट चौधरी को संगठन की जिम्मेदारी से दूर किया गया है, लेकिन संगठन पर उनका दबदबा अब भी बरकरार है।

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