बाढ़ से डूबने वाले बिहार को अब गंभीर जल संकट की चेतावनी, कई जिलों में तेजी से कम हो रहा भूजलस्तर, पेयजल पर भी पड़ेगा असर
बिहार के कई जिलों में जलसंकट का गंभीर खतरा मंडरा रहा है. भीषण गर्मी के इस मौसम में कई जिलों में जलसंकट देखने को मिल रहा है. वहीं अब एक आकलन ने और ज्यादा चिंता बढ़ा दी है जिसमें खासकर दक्षिण बिहार को लेकर बड़ी चेतावनी दी गई है. विश्व पर्यावरण दिवस पर सस्टेनेबल पाथवेज सेंटर द्वारा आयोजित ऑनलाइन सेमिनार में बताया गया है कि पटना सहित प्रदेश में कई जगहों पर भूजल स्तर में गिरावट तेजी से हो रही है. इसका सीधा असर पेयजल से लेकर सिंचाई तक को प्रभावित कर रहा है. ऐसे में वर्ष 2030 तक दक्षिणी जिलों को 2030 तक गंभीर जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है.
आकलन में यह भी कहा गया है कि न सिर्फ दक्षिण बिहार बल्कि उत्तर बिहार में भी तेजी से जल निकायों को भिन्न किस्म की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है. नदियों के जाल से घिरे बिहार में हर साल जहां बाढ़ की विभीषिका बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचाती है वहीं अब जल संकट को लेकर चेतावनी ने एक अन्य खतरे का संदेश दे दिया है. हालिया अध्ययनों के अनुसार बिहार में 2030 तक जल संकट की संभावना है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सह महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र के शोध प्रमुख डॉ. अशोक घोष ने इसे लेकर आकलन पेश करते हुए गम्भीर चिंता जाहिर की.
साथ ही जल संरक्षण को लेकर तमाम तरह के प्रयास पर जोर देने कहा गया है. इसमें नदियों के जल के बेहतर उपयोग के साथ ही झील, तालाब, पोखर जैसे जल निकायों को पुनर्जीवित करना. वहीं भूजलस्तर बढ़ाने को लेकर सबसे ज्यादा काम करने पर जोर देने की बातें कही गई हैं. मानसून के दौरान वर्षा जल के नालों में बहकर बर्बाद होने से बेहतर उसे जल निकायों और भूजल के रूप में परिवर्तित करने की जरूरत है. राज्य में पिछले पांच वर्षों से दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत और विदाई में हुई देरी के कारण बारिश के दिनों की संख्या कम हो रही हैं. यह भी राज्य में जल संकट के तेजी से गहराने का एक बड़ा कारण है.
गौरतलब है कि गर्मी के इस मौसम में कई जिलों का तापमान लगातार 42 डिग्री सेल्सियस या उससे भी अधिक रिकॉर्ड किया जा रहा है. वहीं हीटवेव की वजह से बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने की भी खबरें आई हैं. कुछ जिलों में जल संकट को देखते हुए वैकल्पिक व्यवस्थाएं की गई हैं लेकिन वह नाकाफी साबित हो रही हैं. ऐसे में अगर अगले कुछ वर्षों तक वर्षा जल की कमी और जल दोहन का ज्यादा उपयोग होता रहता है तो यह 2030 तक गंभीर जल संकट का कारण बनेगा.
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