सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं बिहार के CO ! बैठक में मंत्री जी के मौजूदगी में हुआ बड़ा खुलासा

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बिहार के भू एवं राजस्व मंत्री वैसे तो बड़े -बड़े दावे करते हैं कि हमने जमीन सर्वे की शुरुआत कर बिहार में एक बड़ी पहल की है और इससे लोगों को काफी आसानी होगी। लेकिन, हकीकत यह है की आसानी से तो दूर लोगों को और अधिक समस्या हो रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि बीते शाम मंत्री जी एक बड़ी बैठेक बुलाई। हालांकि, बैठक बुलाने की आदत और उसमें शामिल होने की आदत तो इनकी पुरानी रही है।

लिहाजा मंत्री जी के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। लेकिन, बिहार की जनता के लिए बड़ी बात थी और जब यह बैठक शुरू हुई तो धीरे -धीरे कर सब पोल खुलने लगे की उनके नाक के नीचे क्या झोल चल रहा है। लेकिन, इसके बाद भी बैठक वाले मंत्री जी सिर्फ बैठक में शामिल हुए और चलते बने। जबकि उनके दावे बहुत बड़े -बड़े होते हैं और आज जब सच से रूबरू होने के बारी आई तो मंत्री जी को समझ नहीं आया की वहां क्या बोलें?

मंत्री जी शायद सीधे जनता से चुनकर आए नहीं है इस वजह से शायद उनका जनता से उतने अच्छे तरीके से सरोकार भी नहीं रहा है। वो तो विधायकों के तरफ से चुनकर आए तो सीधे कभी जनता के बिच गए नहीं और विभाग चलाने का कोई अच्छा ख़ासा अनुभव भी बैठक वाले मंत्री जी के पास है नहीं इसलिए शायद वह इस बैठक को भी अपनी पार्टी की रेगुरल बैठक समझ लिए हो और सोच लिए हो की जैसा वो पार्टी के दफ्तर में बोल कर निकल जाते हैं वैसे ही वहां भी बोल कर निकल जाएंगे।

लेकिन, हकीकत यह है किजमीन सर्वे कराने में न सिर्फ रैयतों को बल्कि सर्वे कर्मियों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है बल्कि सर्वे कर्मी और अंचल कार्यालय के कर्मचारी जमीन मालिकों की मदद नहीं कर पा रहे। जमीन से संबंधित कागजात निकालने में भू स्वामियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके बाद रही सही कसर अंचल अधिकारी पूरी कर दे रहे। सरकार की तमाम कोशिश के बाद भी अंचल अधिकारी सुधरने का नाम नहीं ले रहे राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने सूबे के 170 अंचलाधिकारियों को आज बुधवार को पटना बुलाया था. समीक्षा बैठक में जो बातें उभर कर सामने आई हैं, वो चौकाने वाली है।

राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री दिलीप जायसवाल और विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह की समीक्षा बैठक में यह बात उभर कर सामने आई है कि दाखिल खारिज के आवेदन धड़ल्ले से खारिज किए जा रहे हैं। इसके साथ ही राजस्व एव भूमि सुधार विभाग ने परिमार्जन प्लस के नाम से एक नया पोर्टल शुरू किया है उसके तहत आने वाले ऑनलाइन आवेदन पर तो ध्यान तक नहीं दिया जा रहा है।

इतना ही नहीं यदि कोई जमीन मालिक ऑनलाइन आवेदन करता भी है तो उसके ऑनलाइन आवेदन को अस्वीकृति कर दिया जाता है और इसकी वजह मात्र एक होती है की आप उनके दफ्तर का चक्कर काटे और उनके निजी स्वार्थ को पूरा करें या आसान भाषा में कहें तो उनकी जेब गर्म करें तभी आपका काम आसानी से होगा। वरना एक ही दफ्तर में एक फ़ाइल बगल के टेबल पर जाने में एक महीना से अधिक का भी समय लगा सकती है और आपने दफ्तर जाकर पदाधिकारियों को खुश कर दिया तो आपका काम आसानी से हो जाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यह लोग खुद से ऐसा नहीं करते हैं बल्कि इनके आदमी बाहर बैठे हुए होते हैं और इनका कमीशन तय होता है।

बताते चलें कि, बीते शाम जब समीक्षा बैठक हुई तो उसमें यह मालूम चला कि दाखिल-खारिज के सर्वाधिक 47.93 फीसदी अस्वीकृति के मामले सीतामढ़ी के सुप्पी अंचल में पाए गए. 44 फीसदी अस्वीकृति के साथ पटना का पंडारक दूसरे जबकि 39.9 फीसदी अस्वीकृति के साथ बेगूसराय का साम्हो अखा कुरहा तीसरे स्थान पर था। इसके बाद जब वहां के अधिकारी से जवाब मांगा गया तो कोई उचित वजह नहीं बता पाए। अब आप खुद सोचिए की इसकी क्या वजह हो सकती है। क्या मंत्री जी को यह पहले से मालूम नहीं था? एक बार मान भी लिया जाए की मालूम नहीं था तो अब मालूम होने के बाद क्या वहां गुप्त जांच दल भेजा जाएगा ? इसका जवाब शायद ही मंत्री जी दे पाए, क्योंकि ऐसा मामला सिर्फ कुछ जगहों का नहीं है बल्कि पूरे बिहार का है और यह बात मंत्री जी भी अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन कुछ कर नहीं पाते है या करना नहीं चाहते यह भी शायद उन्हें ही मालूम है।