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नीतीश को नहीं, BJP को थी JDU की जरूरत, समझें लोकसभा चुनाव में कैसे खिलेगा कमल

रविवार 28 जनवरी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हाथ थाम लिया. उन्होंने 9वीं बार सीएम पद की शपथ ली और एक बार फिर बीजेपी-एनडीए के साथ ही बने रहने का दावा किया. नीतीश कुमार ने कहा, ‘जहां थे वहीं आ गए अब इधर-उधर जाने का सवाल ही नहीं’.

हालांकि उनके पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए ये कहना मुश्किल है कि उनके इस दावे में कितनी सच्चाई है. लेकिन इस पूरी राजनीतिक उठापटक के बीच एक सवाल ये उठता है कि बार बार पलटी मारने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार को स्वीकार करने के लिए क्यों तैयार हो जाती है.

इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं कि नीतीश कुमार को एनडीए में वापस लेने की बीजेपी की मजबूरी क्या है और जेडीयू या बीजेपी किसे है नीतीश की ज्यादा जरूरत?

3 प्वाइंट से समझिए बीजेपी को क्यों है नीतीश की जरूरत 

1. जातीय समीकरणः बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स कितनी अहम है ये तो सभी को पता है. राज्य में 30 फीसदी आबादी ईबीसी यानी ‘एक्स्ट्रीमली बैकवर्ड क्लास’ की है. इन ईबीसी जातियों में कुर्मी, निषाद, कोयरी, नाई, तेली जैसी जातियां आती हैं और इन जातियों के लोग ज्यादातर नीतीश कुमार की पार्टी को ही अपना वोट देते हैं. भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में हर हाल में इस वोट बैंक को साधना चाहती है.

2. बीजेपी का आंतरिक सर्वे: बिहार की राजनीति में इतना बड़ा बदलाव तब हुआ जब अगले कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बिहार में भारतीय जनता पार्टी की ओर से किए गए आंतरिक सर्वे में लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत अच्छा फीडबैक नहीं मिल रहा था.

वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस चुनाव में पिछले कार्यकाल से ज्यादा बड़ी जीत चाहते हैं और उनके इस लक्ष्य को पूरा करने के रास्ते में बिहार और महाराष्ट्र का समीकरण रोड़ा बन सकता था.

दरअसल उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार इकलौता ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी उतनी मजबूत नहीं है, ऊपर से जेडीयू और महागठबंधन के कॉम्बिनेशन ने बीजेपी की टेंशन बढ़ा रखी थी.

पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो साल 2019 में बीजेपी ने जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें एनडीए 40 में से 39 सीटें जीतने में कामयाब हुआ था. इन 39 सीटों में से बीजेपी ने 17, नीतीश कुमार की पार्टी ने 16 और एलजेपी ने 6 सीटें अपने नाम की थीं.

बीजेपी बिहार में एक बार फिर से ऐसा ही प्रदर्शन दोहराना चाहती है. यही कारण है कि जेडीयू को अपने पाले में लाना फिलहाल बीजेपी के लिए बेहद जरूरी था.

3. INDIA अलायंस को तोड़ने की कोशिश: इंडिया गठबंधन में अलग-अलग राज्यों के कई बड़े चेहरे एक साथ नजर आ रहे हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी हर हाल में गठबंधन को तोड़ने की कोशिश कर रही है.

वहीं नीतीश कुमार INDIA गठबंधन के बड़े नेताओं में से एक हैं. ऐसे में नीतीश के इस कदम ने विपक्षी दलों के गठबंधन को जोरदार झटका दे दिया है.

नीतीश के साथ आने के बाद बिहार में अपने प्रदर्शन को दोहरा पाएगी बीजेपी?

पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आनंद वर्मा ने इस सवाल का जवाब देते हुए एबीपी न्यूज को बताया कि नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ आने से पार्टी बिहार में अपनी संभावनाओं को लेकर तो आशावादी हुई ही है, लेकिन फिलहाल कुछ भी कहना ठीक नहीं है. चुनाव परिणाम ही इस सवाल का सटीक जवाब दे सकता है.

हां लेकिन इस बात में भी सच्चाई है कि बार-बार पाला बदलने के कारण नीतीश की इमेज को अच्छा खासा नुकसान हो गया है. इस बात का इशारा पिछले दो विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 के परिणाम भी करते हैं. आने वाले समय में ऐसा हो सकता है कि जेडीयू  बीजेपी पर निर्भर हो जाए.

उन्होंने आगे कहा कि नीतीश कुमार का जो 16 प्रतिशत वोट शेयर है. उसपर उनके बार बार पाला बदलने का कोई असर नहीं पड़ता है. नीतीश अब भी बिहार में महादलित समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं.

आंकड़ों से समझिए लोकसभा चुनाव में कैसे खिलेगा कमल

नीतीश की लोकप्रियता पर असर 

नीतीश कुमार ने साल 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था. उस चुनाव में उन्हें लगभग 15 फीसदी वोट मिले थे और उनकी पार्टी दो सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हो पाई थी. इस चुनाव के बाद नीतीश की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन में शामिल हो गई.

अब साल 2017 में नीतीश महागठबंधन से खुद को अलग कर एनडीए में शामिल हुए हैं. साल 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव के परिणाम को देखें तो जेडीयू को बड़ा घाटा हुआ है. उसकी सीटें घटकर 42 रह गईं. जबकि बीजेपी ने 76 सीटें अपने नाम की. हालांकि इसके बाद भी बीजेपी ने चुनाव से पहले किए वादे के अनुसार नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया.

चुनाव परिणाम से ये साफ नजर आ रहा था कि मतदाताओं के बीच नीतीश की लोकप्रियता घटी है.

2024 लोकसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?

बीबीसी की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा इसी सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं कि नीतीश के इस फैसले का बिहार से बाहर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. हां लेकिन बीजेपी के रणनीतिकार इस मुद्दे को ज़रूर उठा सकते हैं कि उन्होंने ‘इंडिया’ गठबंधन के पायलट को ही हटाकर, गठबंधन तोड़ दिया है.

नीतीश के बीजेपी के साथ मिलने पर किसने क्या कहा 

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के सीएम पद की शपथ लेने से कुछ मिनट पहले अपनी चुप्पी तोड़ते हुए, “मैं जो कहता हूं वो करता हूं. आप लिख के ले लीजिए, जनता दल यूनाइटेड जो पार्टी है, 2024 में ही ख़त्म हो जाएगी.”

तेजस्वी ने नीतीश को थका हुआ मुख्यमंत्री करार देते हुए कहा, ”हमने थके हुए मुख्यमंत्री से काम करवाया है. हमने संयम से गठबंधन के नियमों का पालन किया है. अभी तो खेल शुरू हुआ है, अभी खेला बाकी है.”

वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर नीतीश कुमार को बधाई देते हुए कहा, ”बिहार में बनी एनडीए सरकार राज्य के विकास और यहां के लोगों की अकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी. नीतीश कुमार जी को मुख्यमंत्री और सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पर बहुत बहुत शुभकामनाएं.”

नीतीश कुमार ने भी इस मौके पर कहा, ‘जहां थे वहीं आ गए अब इधर उधर जाने का सवाल ही नहीं.”


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Kumar Aditya

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