राज्य सरकारों की बुलडोजर कार्रवाई सही या गलत? सितंबर में सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

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पिछले कुछ महीनों से देशभर में बुलडोजर का इस्तेमाल जमकर किया जा रहा है। सरकार आरोपियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलवाकर ध्वस्त करवा देती है। इस तरह की कार्रवाई के बाद सवाल उठाया जाता है कि क्या यह सही है? एक व्यक्ति की गलती की सजा पूरे परिवार को क्यों दी जाती है? वहीं बुलडोजर कार्रवाई के बाद सरकार और प्रशासन कहता है कि उन्होंने आरोपी की अवैध संपत्ति और निर्माण को ध्वस्त किया है। वहीं अब इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दाखिल की गई है, जिसपर कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद और अन्य द्वारा दायर उन याचिकाओं पर सितंबर में सुनवाई करेगा, जिनमें विभिन्न राज्य सरकारों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि दंगे और हिंसा के मामलों में आरोपियों की संपत्तियों को ध्वस्त न किया जाए।

‘कानून की परवाह किए बिना लोगों के घरों को तोड़ने का यह देश भर में चलन बन चुका’ 

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने पीठ से कहा कि इस मुद्दे पर कानून को स्पष्ट किया जाना चाहिए क्योंकि अब कानून की परवाह किए बिना लोगों के घरों को तोड़ने का यह देश भर में चलन बन चुका है। उन्होंने मध्य प्रदेश के सीधी जिले की हालिया घटना का जिक्र किया, जहां एक आदिवासी व्यक्ति पर पेशाब करने वाले आरोपी के मकान के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया गया। दवे ने माना कि व्यक्ति का कृत्य घृणित था और उसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, लेकिन आप जाकर उसका घर नहीं तोड़ सकते। उसके परिवार के बारे में क्या? दवे ने कहा कि देश में हर जगह, इस शक्ति का प्रयोग करना चलन बन गया है।

बता दें कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने पिछले साल राष्ट्रीय राजधानी के जहांगीरपुरी इलाके में सांप्रदायिक झड़पों के बाद इमारतों को ध्वस्त करने के मुद्दे पर शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की थी। दवे ने शीर्ष अदालत के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि आश्रय का अधिकार जीवन का अधिकार है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में समाज के एक विशेष वर्ग को निशाना बनाकर घरों को गिराया गया। पीठ ने कहा कि दिल्ली मामले में संबंधित प्राधिकारी ने एक नोटिस जारी किया था जिसमें अतिक्रमण हटाने के संयुक्त कार्यक्रम की बात कही गयी। पीठ ने कहा, ‘‘सबसे पहले, इसकी पुष्टि होनी चाहिए कि जिस संपत्ति को हम ध्वस्त करना चाहते हैं वह एक अनधिकृत संरचना है, इसलिए इसे ध्वस्त करने की जरूरत है।’’

‘अतिक्रमण हटाने की आड़ में कुछ निजी हित साधे जा रहे’

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के मामले से ऐसा प्रतीत होता है कि अतिक्रमण हटाने की आड़ में कुछ निजी हित साधे जा रहे हैं और औचक रूप से इमारतों को ध्वस्त किया गया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उत्तर प्रदेश से जुड़े एक मामले में दाखिल हलफनामे का जिक्र किया। उन्होंने पीठ को बताया कि हलफनामे में कहा गया है कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का हिस्सा होने का आरोप है, यह कभी भी ऐसा आधार नहीं हो सकता जिससे उसकी अचल संपत्ति को ध्वस्त किया जा सके। मेहता ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे का भी खंडन किया कि तोड़-फोड़ अभियान के दौरान समाज के एक विशेष वर्ग के ढांचों को निशाना बनाया गया था।

सितंबर में सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर होगी सुनवाई 

पीठ ने कहा कि वह सितंबर में सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर किसी कामकाजी दिन याचिका पर सुनवाई करेगी। उच्चतम न्यायालय में सोमवार और शुक्रवार को केवल ताजा याचिकाएं सुनवाई के लिए ली जाती हैं, वहीं मंगलवार, बुधवार और बृहस्पतिवार को पहले से चल रहे नियमित मामलों में सुनवाई होती है। पिछले साल 20 अप्रैल को, शीर्ष अदालत ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर गौर करने के बाद दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण विरोधी अभियान को रोक दिया था। संगठन ने आरोप लगाया था कि मुस्लिम दंगा आरोपियों की इमारतों को तोड़ा जा रहा है।

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