4 अक्टूबर यानी शुक्रवार को शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है। इस दिन माता दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी का पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनके इसी तप के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। बता दें कि यहां ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या से है और ‘ब्रह्मचारिणी’ का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने हर कार्य में जीत हासिल होती है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने वाला जातक सर्वत्र विजयी होता है। तो आइए जानते हैं कि नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कैसे करनी चाहिए।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और महत्व
सफेद वस्त्र धारण किए हुए मां ब्रह्मचारिणी के दो हाथों में से दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल है। इनकी पूजा से व्यक्ति के अंदर जप-तप की शक्ति बढ़ती है। मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों को संदेश देती हैं कि परिश्रम से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। कहते हैं नारद जी के उपदेश से मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी, इसलिए इन्हें तपश्चारिणी भी कहा जाता है। मां ब्रह्मचारिणी कई हजार वर्षों तक जमीन पर गिरे बेलपत्रों को खाकर भगवान शंकर की आराधना करती रहीं और बाद में उन्होंने पत्तों को खाना भी छोड़ दिया, जिससे उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ा। देवी मां हमें हर स्थिति में परिश्रम करने की और कभी भी हार न मानने की प्रेरणा देती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी पूजा मंत्र
- ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
- या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
- दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
नवरात्रि के दूसरे मां ब्रह्मचारिणी को लगाएं ये भोग
मां ब्रह्मचारिणी को चीनी या गुड़ का भोग लगाएं। इसके अलावा चीन या गुड़ से बनी मिठाई भी अर्पित कर सकते हैं। गुड़ या चीनी चढ़ाने से माता ब्रह्मचारिणी दीर्घायु का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इसके अलावा नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी को वट वृक्ष के फूल अर्पित करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है।