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बिहार में बाढ़ और बेटी होने की खुशी पर तैयार छठ गीत झूमने पर कर देगा मजबूर

लोक आस्था के महापर्व छठ का समय नजदीक आ रहा है, इसी के साथ चारों ओर छठी मैया के गीत सुनाई देने लगे हैं. छठ के लोकगीत की शैली में कुछ नए गीत भी हैं जो इस बार श्रोताओं को खूब भा रहे हैं. बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका मनीषा श्रीवास्तव ने इस बार छठ में पुराने लोकगीत को रीक्रिएट करने के बजाय अपनी दो नए छठ गीत लेकर आई हैं जो खूब पॉपुलर हो रहे हैं.

बेटी की कामना और बाढ़ की विभीषिका पर गीत:आमतौर पर पुत्र की कामना को लेकर लोग छठी मैया की पूजा करते हैं लेकिन उन्होंने बेटी की कामना को लेकर छठ गीत गाया है. जिन घरों में बेटियां हैं वहां इसे काफी पसंद किया जा रहा है. इसके अलावा मनीषा बाढ़ की विभीषिका पर भी छठी मैया के गीत लेकर आई हैं, जो काफी संवेदनाओं से भरा हुआ है. इस गीत में उन्होंने बाढ़ के कारण होने वाले पलायन और पीड़ित परिवारों के पर्व त्यौहार मनाने में आने वाली परेशानियों को बखूबी संजोया है.

मनीषा को है बेटी होने का गर्व: मनीषा ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि बेटा होने की खुशी में तो लोग छठ व्रत करते हैं, अथवा कोसी भरते हैं लेकिन वो इस गीत के माध्यम से बेटी के होने पर जोड़ा कोसी भरने की बात कर रही हैं. इससे पहले उनका सोहर गीत ‘बेटी होई त तोहरा के बोलाईब ननदो’ बहुत हिट हुआ था और लोगों ने बेटी पार्ट 2 की डिमांड की थी. इसी तर्ज पर वह बेटी पार्ट 2 लेकर आई हैं, जिसे लोगों की ओर से खूब पसंद किया जा रहा है. नवादा फिल्म फेस्टिवल में इस गाने पर सबसे अधिक रील बनने के लिए सम्मानित भी किया गया.

“मैंने बेटी होने पर परिवार के हर सदस्य के उत्साहित होने की बात की है. इसमें दादा दादी, गोतिन भसुर, नाना नानी, मामा मामी सबको समाहित किया है कि उनके मन में बेटी होने पर क्या चल रहा है.”मनीषा श्रीवास्तव, लोक गायिका

नए गीतों की थी पब्लिक डिमांड: मनीषा ने बताया कि हर बार वह पुराने लोकगीत को नए कलेवर में लेकर आती थी. इस बार लोगों का कहना था कि एक ही गाने को बार-बार अलग-अलग आवाज में सुनने में मजा नहीं आता. गायिका है तो कुछ नया गीत लेकर आईए. इसके बाद उन्होंने सामाजिक विषयों को चुना. ऐसा इसलिए क्योंकि जो समाज की भावनाओं से जुड़े हुए गीत होते हैं वह लोगों को पसंद आते हैं.

बाढ़ की विभीषिका पर बनाया छठ गीत: मनीषा ने बताया कि इस बार जो बाहर आई उसने लोगों को काफी तबाह किया. बिहार हर साल बाढ़ में डूब जाता है. ऐसे में हजारों घर गांव गंगा में समाहित हो जाते हैं. जहां बाढ़ आती है, वहां उन घरों के लोग पलायन तो कर ही जाते हैं लेकिन साथ-साथ उनके सपने भी बह जाते हैं. नदी अपने दायरे में बढ़ती है तो बेहद खूबसूरत लगती है लेकिन जब अपने दायरे को तोड़कर बहने लगती है तो विभीषिका बन जाती है. इसी परिदृश्य को लेकर उन्होंने यह छठ गीत ‘कईसे होई छठे के बरतिया’ गाया है जो लोगों को खूब पसंद आ रहा है. उनके दोनों इस नए गीत को अभिषेक भोजपुरिया ने लिखा है.


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