क्लाउड सीडिंग है राजधानी के वायु प्रदूषण का उपाय, जानें कृत्रिम बारिश कैसे करता है काम; पढ़े पूरी रिपोर्ट

GridArt 20231106 143845591

दिल्ली-एनसीआर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। स्मॉग लोगों के लिए दिक्कत बन चुका है। एक्यूआई 488 तक पहुंच गया है जो कि गंभीर श्रेणी का सूचक है। स्कूलों को बंद कर दिया गया है और GRAP 4 लागू कर दिया गया है, जिसके तह निर्माण कार्यों को रोक दिया गया है और डीजल वाहनों पर बैन लगा दिया गया है। लेकिन क्लाउड सीडिंग एक उपाय है जो वायु प्रदूषण से लोगों को छुटकारा दिला सकती है। हालांकि इस प्रक्रिया का अंतिम रिजल्ट क्या होगा इस बाबत कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन ऐसा करने से प्रकृति से थोड़ी छेड़छाड़ जरूर होगी। बावजूद इसके हम आपको बताने वाले हैं कि आखिर क्लाउड सीडिंग क्या होता है और इसकी मदद से कृत्रिम बारिश कैसे कराई जाती है।

क्लाउड सीडिंग या कृत्रिम बारिश क्या है?

इस प्रक्रिया के तहत एयरक्राफ्ट की मदद से बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है। सिलवर आयोडाइड के हवा और आसमान में मौजूद बादलों के संपर्क में आने के बाद तेज गति से बादल का निर्माण होने लगता है और बादल ठंडा होकर बरसने लगता है। इसे ही क्लाउड सीडिंग कहते हैं। बता दें कि सिल्वर आयोडाइड बर्फ की तरह होती है और इससे नमी वाले बादलों में पानी की मात्रा बढ़ जाती है और समय से पहले बादल बारिश करने लगते हैं। इसका इस्तेमाल सूखा व हादसों से निपटने के लिए भी किया जा सकता है।

2018 में बनी थी क्लाउड सीडिंग की योजना

दिल्ली में साल 2018 के दौरान भीषण वायु प्रदूषण देखने को मिला था। इस दौरान सरकार ने कृत्रिम बारिश कराने की योजना बनाई थी। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसरों द्वारा इस बाबत तैयारी भी की गई, लेकिन अनुकूल मौसम न होने के कारण

कृत्रिम बारिश नहीं कराई जा सकी। बता दें कि कृत्रिम बारिश मॉनसून से पहले और मॉनसून के बाद कराना ज्यादा अच्छा रहता है। इस दौरान कृत्रिम बारिश करना आसान होता क्योंकि बदलों में नमी की मात्रा ज्यादा रहती है। वहीं ठंड के मौसम में बादलों में नमी की मात्रा कम होती है।

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.