सीएम नीतीश कुमार द्वारा स्कूलों की रद्द की गई छुट्यों को बहाल किए जाने के बाद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक खुश नहीं हैं और उनके आदेश पर शिक्षा विभाग ने एस विज्ञप्ति जारी कर सफाई देने की कोशि की है कि आखिर स्कूलों के अवकाश में कटौती क्यों की गई थी और इस पत्र में ये भी कहा गया है कि आनेवाले दिनों में छुट्टी पर फिर से पुनर्विचार किया जासकता है।
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो मुख्य समस्या घोषित अवकाश नहीं, बल्कि और अघोषित अवकाश है.. यही वजह है कि शिक्षा विभाग शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 को लागू का रूप कर पाने में असमर्थ हो रही है. शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत एक एकेडमिक वर्ष में कम से कम 200 दिन प्राथमिक स्कूलों में और मध्य विद्यालय में कम से कम 200 दिन की पढ़ाई अनिवार्य है लेकिन अघोषित अवकाश की वजह से बिहार में यह लागू नहीं हो पा रहा है।
यही वजह है कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने घोषित अवकाशों में कटौती की थी लेकिन जब इस पर विवाद हुआ तो सीएम नीतीश कुमार के हस्तक्षेप से केके पाठक के आदेश को वापस कर दिया।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो इस अघोषित अवकाश की वजह से हो रही परेशानियों को दूर करने को लेकर वेलोग चिंतित है. और इसके लिए रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है.इस संबंध में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के पाठक के निर्देश पर अधिकारियों ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पूरी बात बताई है।
इसमें कहा गया है कि 1 जुलाई 2023 से विद्यालयों का सतत अनुश्रवण शिक्षा विभाग द्वारा किया जा रहा है जो पहले नहीं होता था और आज की तारीख में 40 हजार विद्यालयों का निरीक्षण प्रतिदिन हो रहा है. इसलिए अब शिक्षा विभाग तय करने की स्थिति में है कि वास्तविक रूप में कुल कितने दिन विद्यालय खुले रहते हैं और कितने दिन बंद रहते हैं.चूंकी इससे पहले इतने व्यापक पैमाने पर निरीक्षण की व्यवस्था नहीं थी तो जिला शिक्षा पदाधिकारी केवल घोषित या आकस्मिक अवकाश के आधार पर ही गणना करते थे कि विद्यालय में कुल कितने दिन पढाई हुई है लेकिन जब से अनुश्रवण की व्यवस्था स्थापित हुई है उसके बाद से यह पता चला है कि कई और अघोषित अवकाश भी स्थानीय प्रशासन द्वारा स्थानीय कारण को देखते हुए लगाए जाते हैं. इतना ही नहीं कई विद्यालय तो बिना अवकाश घोषित किये ही स्थानीय कारणों से बंद कर दिए जाते हैं और वहां पढ़ाई नहीं होती है .यही वजह है कि शिक्षा विभाग यह मानता है की मुख्य समस्या घोषित अवकाश नहीं अपितु और घोषित अवकाश है जिनकी जानकारी मुख्यालय तो दूर जिला शिक्षा पदाधिकारी को भी नहीं हो पाती थी।