जदयू ने चुनाव के अपने मुद्दों को लगभग तय कर लिया है। इसके तहत सबसे बड़े मुद्दे के रूप में जाति आधारित गणना और फिर उसके आधार पर आरक्षण के बढ़े दायरे की बात पूरे चुनाव के दौरान गूंजती रहेगी। कांग्रेस ने भी अपने लोगों के बीच इस मुद्दे को रखा है। हालांकि जदयू का मानना है कि इस विषय को नीतीश कुमार ने ही अस्तित्व प्रदान किया है। जदयू अब इस प्रयास को आगे बढ़ाने की कवायद शुरू करने को है कि अलग-अलग राज्यों में जो समूह जाति आधारित गणना की बात कर रहे उन्हें हमराह बनाया जाए।
आरक्षण पर क्या सोचती है JDU ?
जदयू का मानना है कि बिहार में नीतीश कुमार की पहल पर हुई जाति आधारित गणना और फिर उसके रिपोर्ट के आधार पर जिस तरह से यहां आरक्षण के दायरे को बढ़ाया गया, वह एक मौन क्रांति के रूप में है।
यह मौन क्रांति सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के रूप में है। इसका असर यह हुआ है कि देश के कई राज्यों में जाति आधारित गणना की मांग शुरू हो गयी है। इसमें बिहार के कई पड़ोसी राज्य व दक्षिण के राज्य शामिल हैं।
सामाजिक समीकरण पर सीधे-सीधे करेंगे बात
चुनाव के प्रमुख मुद्दे में शामिल हो चुकी जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के माध्यम से सामाजिक समीकरण पर जदयू नेता सीधे-सीधे बात करेंगे। बिहार में तो इस पर बात करना अधिक सहज है, क्योंकि सरकार के पास इस रिपोर्ट के माध्यम से यह आंकड़ा उपलब्ध है कि किस जाति के लोगों की संख्या कितनी है। जदयू जिस वोट बैंक को अपना मानता रहा है, उसकी आबादी भी काफी बढ़ी है।
बिहार के बाहर का क्या है प्लान?
जातियों के आर्थिक स्थिति की भी जानकारी सार्वजनिक है, इसलिए इस पर भी बात आगे बढ़ेगी। बिहार के बाहर के राज्यों में जदयू यह साफ-साफ कहेगा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने किस तरह से जाति आधारित गणना की रिपोर्ट आने के बाद आरक्षण के दायरे को विस्तारित किया। इसे भी आगे किया जा रहा कि पूरे देश में नीतीश कुमार के इस पहल को सराहा जा रहा है।