भागलपुर में कामेश्वर यादव की शव यात्रा में उमड़ी भीड़, धार्मिक कार्यों में रहते थे आगे, रोते बिलखते रहे परिजन

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काली महारानी महानगर केंद्रीय महासमिति, भागलपुर के प्रधान संरक्षक कामेश्वर प्रसाद यादव का बुधवार को निधन हो गया. उनके निधन की सूचना मिलते ही भागलपुर समेत अंग क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गयी. दरअसल कामेश्वर प्रसाद यादव धार्मिक व सामाजिक कार्यों में हमेशा आगे रहते थे. उनके इसी खासियत को लेकर लोगों ने शोक जताया है.

रोते बिलखते परिजन 

कामेश्वर प्रसाद यादव के सेवक राजेंद्र रजक उनके पार्थिव शरीर को पकड़कर रोते बिलखते रहे. स्थानीय लोगों ने बताया कि राजेंद्र रजक पास ही झुग्गी-बस्ती में रहते थे. जब अतिक्रमण मुक्त अभियान में उनका आशियाना उजड़ गया तो कामेश्वर यादव के घर में रहने लगे. वर्षों से राजेंद्र कामेश्वर यादव की सेवा में लगा रहता था. इससे उनका संबंध इतना आत्मिक हो गया कि खुद को परिवार के सदस्य से कम नहीं समझता. प्रौढ़ राजेंद्र रो-रोकर यही रट लगा रहे थे कि अब किनकी सेवा करेंगे. कौन उनके लिए सोचेगा.

समर्थकों की उमड़ी भीड़

बुधवार को कामेश्वर यादव की शवयात्रा निकाली गयी. उनके समर्थकों की भीड़ सड़क पर उतर गयी. कामेश्वर यादव अमर रहे के नारे लगाते हुए गंगा घाट की ओर वो बढ़े.

कमेसर पहलवान से पहचान

चांद मिश्रा के अखाड़े से कुश्ती के दांव-पेच सीखकर कामेश्वर यादव को कमेसर पहलवान से पहचान मिली. बड़े बुजुर्ग कहा करते थे कि कमेसर की धोबिया पाट का कोई तोड़ नहीं था. स्थानीय लोगों की मानें तो उनकी पहचान क्षेत्र में पहलवान के तौर पर थी.वे मूलत: सिल्क कारोबारी थे उनके घर में हैंडलूम भी चलता था. इसके अलावा खेती-किसानी से भी जुड़े थे. 40 वर्षों से धार्मिक व सामाजिक कार्यों से जुड़े थे. उनके समर्थकों का तादाद भी काफी थी.

1989 दंगे के मुख्य आरोपित

देश के मुख्य दंगों में एक भागलपुर के 1989 दंगे में कामेश्वर प्रसाद यादव को मुख्य आरोपित बनाया गया था. इसमें उन्हें उम्रकैद की सजा मिली थी. जिसके बाद 10 साल वो जेल में रहे. अदालत से पर्याप्त साक्ष्य नहीं रहने पर 2017 में वो रिहा हुए थे.

एक जाति व विचारधारा विशेष के लोगों में लोकप्रियता के मद्देनजर हिंदू महासभा ने कामेश्वर यादव को नाथनगर विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया था. वो जीत करीब पहुंचे थे. बताया जाता है कि चुनावी मैदान में एक स्वजातीय प्रत्याशी होने से मतों में बिखराव हो गया और कामेश्वर यादव जीत से चूक गये थे. कामेश्वर यादव ने चार दशक तक धार्मिक कार्यों को बढ़ावा दिया. कई मंदिरों के निर्माण में उनकी बड़ी भूमिका रही.

गुरुवार को जब उनकी शव यात्रा निकली तो लोग कहते दिखे कि अब मूर्ति विसर्जन के लिए कभी कामेश्वर यादव का इंतजार नहीं होगा. बता दें कि भागलपुर में काली प्रतिमा विसर्जन शोभायात्रा जब भी निकलती थी तो सबको कामेश्वर यादव का इंतजार रहता था. उनके आने के बाद ही शोभायात्रा आगे बढ़ती थी.

Rajkumar Raju: 5 years of news editing experience in VOB.