श्रावणी यात्रा में ‘दांडी कांवड़’ है सबसे कठिन, नियम जानकर उड़ जाएंगे होश

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भगवान शिव को समर्पित सावन माह में बहुत से शिव भक्त और श्रद्धालु कांवड़ यात्रा करते हैं। इस यात्रा के यात्री जिसे ‘कांवड़िया’ कहते हैं, पवित्र नदियों, जैसे गंगा, नर्मदा, शिप्रा और गोदावरी से कांवड़ पर जल ढोकर अपने-अपने क्षेत्रों के शिवधाम में शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। मान्यता है कि सावन माह में कांवड़ यात्रा से शिवजी कृपा से हर मनोकामना पूरी हो जाती हैं। आइए जानते है, ‘कांवड़ यात्रा’ कितने प्रकार की होती हैं और किस कांवड़ के नियम बेहद कठिन होते हैं?

चार तरह की होती हैं कांवड़ यात्रा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम को पहला कांवड़ यात्री माना जाता है। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से कांवड़ पर गंगाजल लेकर बागपत जिले में स्थित पुरा महादेव मंदिर में शिवजी का जलाभिषेक किया था। बाद में रावण ने भी यहां से कांवड़ यात्रा की थी और पुरा महादेव का अभिषेक किया था। समय के साथ आज कांवड़ यात्रा का स्वरूप बेहद बदल गया है। आधुनिकता के नाम पर आज इस भक्तिमय यात्रा में डीजे कांवड़ जैसे रूप भी दिखते हैं। लेकिन यह मान्य कांवड़ यात्रा नहीं है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक कांवड़ यात्रा 4 प्रकार के होते हैं।

सामान्य कांवड़ यात्रा: यह यात्रा पूरी तरफ पैदल की जाती है, जिसमें कांवड़ यात्रा के सामान्य नियमों का पालन करते हुए कांवड़िया अपनी सुविधानुसार खाते-पीते और आराम करते हुए गंतव्य शिवधाम तक पहुंचते हैं।

खड़ी कांवड़ यात्रा: खड़ी कांवड़ यात्रा सामान्य कांवड़ यात्रा से कठिन होती है, जिसमें कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकते और लगातार चलना होता है। आराम करने की स्थित में कोई दूसरा कांवड़िया कांवड़ लेकर चलने की स्थिति में हिलता रहता है।

डाक कांवड़ यात्रा: यह एक कठिन डाक कांवड़ यात्रा है, जिसमें कांवड़िया बिना मल-मूत्र का त्याग किए लगातार तेज गति से चलते या दौड़ते हुए गंतव्य शिवधाम में जलाभिषेक के बाद ही दम लेते हैं।

दांडी कांवड़ यात्रा: दांडी यात्रा को ‘दंडप्रणाम कांवड़ यात्रा’ भी कहते हैं। यह सबसे कठिन कांवड़ यात्रा है, जिसे पूरा करने में हफ्ते या महीने लग सकते हैं।

दांडी कांवड़ यात्रा के नियम

दांडी कांवड़ यात्रा शारीरिक ताकत से नहीं बल्कि मानसिक दृढ़ता से की जाती है। हां, स्वस्थ होना बेहद जरूरी है। दांडी कांवड़ यात्रा के कुछ नियम बेहद सख्त हैं। इस यात्रा में श्रद्धालु गंगा घाट से शिव मंदिर तक दंडवत प्रणाम करते हुए यानी जमीन पर लेटकर अपनी हाथों सहित कुल लंबाई को मापते हुए आगे बढ़ता जाता है। यह सबसे महत्वपूर्ण नियम है।

  • दांडी कांवड़ यात्रा के दौरान पवित्रता और शुचिता का सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है।
  • यात्रा शुरू करने से 15 दिन पहले से तामसिक (प्याज, लहसुन, मांस, मछली, अंडा, शराब आदि) भोजन करने की मनाही है। यात्रा पूरी करने में जितने दिन लगते, आगे उतने दिन तक तामसिक भोजन नहीं किया जाता है।
  • जब तक यात्रा पूरी नहीं होती है, तब तक कांवड़िया के घर पर घर के सदस्य भी सादा भोजन करते हैं।
  • पूरी यात्रा के दौरान नंगे पांव चलना अनिवार्य है। साथ ही एक मात्र दो जोड़ी कपड़े में यह यात्रा पूरी की जाती है।
  • सूर्योदय होते ही यात्रा आरंभ करना अनिवार्य है। बीच आराम करने की मनाही नहीं है।
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