मछली से लेकर कुतरने वाले जीवों तक विभिन्न कशेरुकी जीवों में 40 निडोवायरस का पता लगा है। इनमें 13 कोरोना वायरस भी शामिल हैं। ये हमारे वातावरण में तैर रहे हैं और सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस की तरह बड़ी महामारी को जन्म दे सकते हैं।
एक नवीन कंप्यूटर पद्धति की मदद से शोधकर्ताओं की टीम ने वायरस संबंधी लगभग तीन लाख आंकड़ों का विश्लेषण कर यह पता लगाया है। यह कंप्यूटर प्रक्रिया नए वायरस के प्रसार को रोकने में मदद कर सकती है। यह उन वायरस स्वरूप की व्यवस्थित खोज को सक्षम बनाती है जो मनुष्यों के लिए खतरनाक हैं। इसके नतीजे पीएलओएस पैथोजन्स में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, ये वास्तव में नए नहीं हैं, लेकिन आनुवंशिक रूप से बदल गए हैं।
शोधकर्ताओं ने वैज्ञानिक डाटाबेस में एकत्रित किए गए कशेरुकियों से आनुवंशिक आंकड़ों को अपने कंप्यूटरों के माध्यम से नए प्रश्नों के साथ जोड़ा। उन्होंने बड़े पैमाने पर संक्रामक आनुवंशिक सामग्री हासिल करने और उसका अध्ययन करने के लिए वायरस से संक्रमित जानवरों की खोज की। इसका केंद्र बिंदु निडोवायरस था, जिसमें कोरोनो वायरस परिवार भी शामिल है। निडोवायरस जिनकी आनुवंशिक सामग्री में आरएनए (राइबोज न्यूक्लिक एसिड) होता है, कशेरुकियों में भारी मात्रा में पाए जाते हैं।
…तो पैदा होता है नया वायरस
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने मछली में जिन निडोवायरस की खोज की है वे अक्सर विभिन्न वायरस प्रजातियों के बीच आनुवंशिक सामग्री का आदान-प्रदान करते हैं। यहां तक कि पारिवारिक सीमाओं के बाहर भी वे ऐसा करते हैं। जब दूर के रिश्तेदार क्रॉसब्रीड करते हैं तो इससे पूरी तरह से नए गुणों वाला वायरस पैदा होता है।
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि जब जानवर एक साथ अलग-अलग वायरस से संक्रमित होते हैं तब वायरस अपने आपको दोहराने के दौरान फिर से संक्रामक जीन में बदल जाता है। इस तरह की विकासवादी छलांगें वायरस की आक्रामकता और इनसे होने वाले खतरे को बढ़ा देती हैं।