दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और ASI से जामा मस्जिद को ‘संरक्षित’ स्मारक घोषित न करने के दस्तावेज पेश करने को कहा
दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और एएसआई को वह दस्तावेज दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें मुगलकालीन जामा मस्जिद को तत्कालीन प्रधानमंत्री के शासन के दौरान संरक्षित इमारत करार देने से इनकार कर दिया गया था। जस्टिस प्रतिभा सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ये एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है और जो केंद्र के सुरक्षित कब्जे में होना चाहिए। अगर ये दस्तावेज नहीं मिलता है तो कोर्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी।
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट को ये बताया गया कि अधिकारी वह फाइल तलाशने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वो गुम हो गई है। इस पर कोर्ट ने कहा कि ये गंभीर मसला है। अगर ये फाइल गुम होती है तो कोर्ट संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करेगी। हाई कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ने 27 फरवरी 2018 को भी कहा था कि वो वह फाइल खोजकर प्रस्तुत करे जिसमें कहा गया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा।
दरअसल हाई कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही जिसमें मांग की गई है कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित किया जाए और उसके आसपास अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया जाए। याचिका मार्च 2018 में ही दायर की गई थी। याचिका सुहैल अहमद खान ने दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि जामा मस्जिद के आसपास के पार्कों पर अवैध कब्जा है और अतिक्रमण किया गया है।
सुनवाई के दौरान एएसआई की ओर से कहा गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शाही इमाम को ये आश्वस्त किया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा। एएसआई ने कहा था कि जामा मस्जिद केंद्र सरकार की ओर से संरक्षित इमारत नहीं है इसलिए वो एएसआई के अधिकार क्षेत्र के तहत नहीं आता है। एएसआई ने हाई कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि 2004 में जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित करने का मामला उठा था। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 अक्टूबर 2004 को शाही इमाम को लिखे अपने पत्र में कहा था कि जामा मस्जिद को केंद्र सरकार संरक्षित इमारत घोषित नहीं करेगी।
Discover more from Voice Of Bihar
Subscribe to get the latest posts sent to your email.