दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मानव जीवन में ChatGPT जैसे AI टूल्स कभी भी इंसान और इंसानी दिमाग की जगह नहीं ले सकते हैं। फ्रांसीसी लग्जरी प्रोडक्ट कंपनी क्रिश्चियन लॉबाउटिन की ओर से दाखिल एक मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता कभी भी मानवीय दिमाग का स्थान नहीं ले सकती है। इसके साथ ही बेंच ने इस मामले में ChatGPT द्वारा दिए गए सुझावों पर भरोसा करने से भी इनकार कर दिया।
‘AI की तरफ से दिया गए डेटा, जवाब और सुझाव विश्वनीय नहीं होता’
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने टिप्पणी करते हुए कहा कि AI की तरफ से दिया गए डेटा, जवाब और सुझाव विश्वनीय नहीं होते हैं। यह तकनीक अभी भी विकासशील है और इसमें परिवर्तन हो रहे हैं। अत: यह न्याय और कोर्ट के मामलों में इंसानों की जगह नहीं ले सकता है। हालांकि बेंच ने यह माना है कि AI से शुरूआती रिसर्च और सुझाव लिए जा सकते हैं।
‘ChatGPT के जवाब एक पक्षीय भी होते हैं’
अदालत ने कहा कि चैटजीपीटी जैसे बड़े भाषा मॉडल आधारित चैटबॉट्स के जवाब और सुझाव उपयोगकर्ता द्वारा पूछे गए सवाल की प्रकृति और संरचना सहित कई कारकों पर निर्भर करती है। इसमें जवाब और सुझाव, किसी के हित प्रभावी और काल्पनिक होने की भी संभावना होती है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले से जुड़े कुछ सवाल ChatGPT से पूछे गए, जिसके जवाब के साथ-साथ डिस्क्लेमर में यह भी कहा गया कि ज्यादा जानकारी के लिए अन्य स्त्रोत भी खोज सकते हैं।