बिहार के गया में हिंदी, उर्दू और मगही भाषा एक प्रसिद्ध शायर खालिक हुसैन परदेसी हैं. खालिक हुसैन परदेशी गंगा जमुनी संस्कृति की मिसाल बन गए हैं. काबर गांव के निवासी खालिक हुसैन परदेसी आस्था का महापर्व छठ पूजा की गीत गाते हैं. उर्दू शायर खालिक हुसैन खुद गीत लिखते हैं और गाते हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्र से आने वाले इस ग्रामीण शायर की पहचान ‘राम कथावाचक’के रूप में है. वे छठ पर्व के अवसर पर ‘छठ गीत’ गाकर सबकी आंखों का नूर बन गए हैं.
दोस्तों के साथ बैठ कर गाते हैं गीत: जब खालिक हुसैन छठ गीते गाते हैं तो कोई कह नहीं सकता कि कोई मुसलमान भी कर सकता है. भारत की साझी संस्कृति की खूबसूरती खालिक के गले से उतरती है. उनके अनोखे और अनूठे अंदाज में पेश करते हैं, बल्कि देश की गंगा-जमनी तहजीब की गवाही भी देते हैं. वैसे तो खालिक हुसैन परदेसी छठ गीत 25 वर्षों से से गा रहे हैं. गीत गाने के लिए अब कहीं जाते नहीं हैं, लेकिन दोस्तों की महफिल में अपनी सुरीली आवाज का जादू जरूर बिखेरते हैं.
छठ पर गाने के लिए बुलाते हैं लोग: खालिक हुसैन जब ये छठ गीत गाते हैं तो महफिल का रंग भक्ति में डूब जाता है. गया और आसपास के इनके मित्र के घर छठ पर्व मनाया जाता है तो वह अपने दोस्त खालिक हुसैन परदेसी को छठ गीत गाने को बुलाते हैं.
खालिक हुसैन परदेसी को कंठस्थ है राम कथा: खालिक हुसैन परदेसी ने कहा कि वह बचपन से गांव में धार्मिक आयोजन में भाग लेते रहे हैं. छठ गीत के अलावा राम कथा, चौपाई भी लिखते हैं और सुनाते हैं. खालिक हुसैन परदेसी का कहना है कि वह श्री राम के चरित्र से प्रेरित हैं और इसीलिए भी राम कथा पढ़ते हैं. खालिक हुसैन हिंदी, संस्कृत के साथ-साथ उर्दू और क्षेत्रीय भाषा मगही के जाने-माने कवि भी हैं. वह सैकड़ों कविताओं, गजलों, गीतों आदि के रचयिता हैं.
परदेसी भी नक्सलियों के निशाने पर रहे: खालिक हुसैन परदेसी भी नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं. .हालांकि, अब उनका राम कथा पढ़ने का सिलसिला कम हो गया है. 1980 से 1995 तक वह छठ गीत और राम कथा लगातार पढ़ते रहे. राम कथा पढ़ने के कारण उन्हें ‘व्यास’ के नाम से भी जाना जाता था. छठ गीत गांव में ही गाते थे. उन्होंने बताया कि इनका ये सिलसिला 1995 में रुक गया. हालांकि ये किसी धार्मिक कारण से उनका राम कथा पढ़ना बंद नहीं हुआ.
नक्सलियों के कारण छुटा था गान: 1990 के दशक में माओवादियों ने उन पर राम कथा और चौपाई पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया. उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि नक्सली चाहते थे कि वे नक्सलवाद के समर्थन और उनके प्रचार-प्रसार में कविताएं सुनाएं. इनका ये सिलसिला बीच में ही रुक गया.उन्हें नक्सलियों की ओर से मिली धमकी के कारण उन्हें गांव भी छोड़ना पड़ा था. हिन्दुओं ने कभी इनके राम कथा कहने पर एतराज नहीं किया. नक्सलवाद के कारण उनका रामकथा पढ़ना बंद हो गया था.
“आज भी आपसी भाईचारा, गंगा-जमुनी तहजीब और एक दूसरे के धर्म के प्रति सम्मान की परंपरा कायम है. पहले 1980 और 1990 के दशक में धार्मिक नफरत आदि का कोई मामला सामने नहीं था. हम अपने गांव से बचपन से धार्मिक गीत गाते हैं. हिंदू-मुस्लिम सभी भाई-भाई हैं. एक तरह से मिलजुल कर रहे हैं. देश के माहौल को खराब करने वालों को अपनी एकता से जवाब दें. छठ पर्व अपना पर्व है, साल भर इसका इंतेजार होता है.” – खालिक हुसैन परदेसी