बिहार पुलिस महानिदेशक का विनय कुमार ने पदभार संभाल लिया है। अपनी ईमानदारी और निर्णायक कानून प्रवर्तन शैली के साथ उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अपने शांत व्यवहार के लिए जाने जाने वाले विनय कुमार के अपने काम के प्रति काफी सख्त हैं। विनय कुमार की कार्यशैली से अधिकारियों में जवाबदेही बढ़ी है।
भ्रष्ट अधिकारियों और लापरवाह खाकी वालों से निपटने के लिए विनय कुमार का नज़रिया साफ़ है, वह निलंबन के बजाय बर्खास्तगी के पक्षधर हैं। रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के प्रति उनकी जीरो टॉलरेंस की नीति स्पष्ट है, जिसमें संदेश है कि इस तरह की प्रथाओं के गंभीर परिणाम होंगे, जिसमें जेल जाना भी शामिल है। डीजीपी के रूप में विनय कुमार के नेतृत्व से बिहार के पुलिसिंग परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव आने की उम्मीद जगी है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा उनके योगदान को स्वीकार किए जाने के साथ, विनय कुमार अपराध दर में कमी और पुलिस की आम आदमी के प्रति जवाबदेही में वृद्धि के माध्यम से राज्य के सच्चे ‘सिंघम’ के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कदम भी उठाना शुरू कर दिया है।इसका असर भी दिखने लगा है। पीड़ितों को न्याय दिलाने में बाधा बने 134 आईओ पर बड़ी कार्रवाई करते हुए मुजफ्फरपुर के एसएसपी राकेश कुमार के आदेश पर एफआईआर दर्ज की गई है। पीड़ितों को न्याय दिलाने में बाधा बने 134 अनुसंधानकों (आईओ) पर बड़ी कार्रवाई करते हुए एसएसपी राकेश कुमार के आदेश पर एफआईआर दर्ज की गई है।
दरअसल, न्याय दिलाने में बाधा बने 134 अनुसंधानकों (आईओ) पर बड़ी कार्रवाई करते हुए एसएसपी राकेश कुमार के आदेश पर एफआईआर दर्ज की गई है। सभी को नामजद करते हुए आपराधिक विश्वासघात की धारा लगाई गई है। आरोपित बनाए गए सभी आईओ जिला से स्थानांतरित होकर चले गए। साथ में 943 आपराधिक वारदातों की जांच फाइल भी ले गए। इस कारण 5-10 साल से अधिक समय से सैकड़ों केस पेंडिंग पड़े हुए हैं और पीड़ित इंसाफ के लिए दौड़ते-दौड़ते थक कर घर बैठ गए।
मुजफ्फरपुर के नगर, सदर, अहियापुर, काजी मोहम्मदपुर, ब्रह्मपुरा, मनियारी समेत आठ थानों में इन आईओ के खिलाफ एफआईआर हुई है। जिले में कुल जिन 134 तत्कालीन दारोगा पर 943 केस फाइल लेकर भागने का आरोप है,उनमें अधिकतर रिटायर हो चुके हैं।
एनओसी देने वाले थानेदार भी एक्शन के दायरे
जिले से स्थानांतरित इन दारोगा को एनओसी कैसे मिली इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। बगैर एनओसी दूसरे जिले में इनको वेतन नहीं मिलेगा। पेंशन और सेवानिवृत्ति राशि भी नहीं मिलेगी। एफआईआर होने के कारण आरोपित दारोगा को एनओसी देने वाले थानेदार भी जांच के दायरे में आएंगे। क्योंकि,उनके द्वारा एनओसी देने के कारण ही केस की जांच प्रभावित हुई।
2012 में भी हुआ था FIR दर्
विदित हो कि पहले भी ट्रांसफर होने के बाद केस की फाइल लेकर आईओ के द्वारा भाग जाने का मामला पहले भी सामने आ चुका है। वर्ष 2012 में भी मुजफ्फरपुर के तत्कालीन एसपी राजेश कुमार ने इसको लेकर नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी।तब क्राइम रीडर ने सभी आईओ पर केस किया था। उक्त केस में अब तक नगर थाने में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।