बगहाल में इन दिनों एक मिठाई विक्रेता अपने नए मोदी लोधी के लिए बहुत सहयोगी पा रहे हैं। मिठाई विक्रेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक संजीव लालू शर्मा ने त्योहार के लिए “मोदी लोध” नाम से एक विशेष लोध बनाया है।
उन्होंने आईएएनएस से बात करते हुए बताया, ”जिस साल मोदी जी प्रधानमंत्री बने, हमने उनके सम्मान में “मोदी लोध” नाम से एक शाही लोध बनाया। इस लोध को शुद्ध केसर, देसी घी, पिस्ता और बादाम के साथ गुलाब जल और मसाला इसका उपयोग करके बनाया गया। यह लोध 250 ग्राम का है। इसमें बादाम केसर पिस्ता की प्रचुर मात्रा होती है। इसे स्वादानुसार तैयार किया जाता है पैक किया गया है। इस एक की कीमत 225 रुपये है। इसके अलावा हम 51000 रुपये के लोद के शौकीन हैं जो लोग इसे खरीदना चाहते हैं, वे खा सकते हैं। बाकी मैं इस लोधी से बाहर जा सकता हूं भेजाता हूँ. अभी मैंने इसे पटना में नीतीश कुमार जी को भी भेजा है। देवघर में सांसद निशिकांत दुबे को भेजा गया है। इसमें बनारस, कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, जयपुर, कॉलेज भी शामिल हैं।”
इसके बाद वह कहते हैं कि वह प्यार की भावना फैलाने के लिए ऐसे काम करते हैं। उन्होंने कहा कि वह नाटक के लिए नहीं, बल्कि समाज में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हैं।
उन्होंने कहा, ”यह लोध इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज तक मोदी जी के तीन बार प्रधानमंत्री बनने के बाद भी इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है।” पूरे हिंदुस्तान में लोग हमें “मोदी लोध” के नाम से जानते हैं, और इसकी मांग इतनी बढ़ गई है कि हम सभी तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। मेरी कोशिश है कि इस लोध को देश के हर कोने और देश में भी रखा जाए।”
उन्होंने कहा, ”हम गंगा किनारे रहते हैं, और मोदी जी भी बनारस से नाबालिग हैं, इसलिए गंगाजल का उपयोग हमारे लोध में एक एलायंस का जन्म होता है।” इसी भावना से प्रेरित होकर हमने एक स्नोकी भी बनाई है, जिसमें प्योर पिस्ता, बादाम और काजू का उपयोग किया गया है। ये तिरंगे के अनुसार है, जो देश प्रेम की भावना का मूल है। हमारी मिठाइयों का उद्देश्य सिर्फ व्यावसायिक नहीं है, बल्कि हम गंगा, यमुना और सरस्वती की पहचान भी दिखाना चाहते हैं। हमने नैचरल का उपयोग करके मिठाइयाँ शामिल की हैं, ताकि लोग इसके पुरातन का अनुभव कर सकें। हम प्राकृतिक पदार्थों का भी प्रयोग करते हैं, जैसे आलू, बादाम और नीम के पत्ते। हमारा लक्ष्य है कि हमारी मिठाई प्रसाद के रूप में भंडार, जो शुद्ध हो और जिसमें भगवान और भक्त दोनों ही शामिल हों।”