बिहार के भागलपुर में भी अब बेबी कॉर्न की खेती शुरू हो गई है. पहली बार पीरपैंती में किसान इसकी खेती कर रहे हैं. बेबी कॉर्न की डिमांड भी अधिक है. किसान कम लागत में इससे अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. यह तीन महीने में तैयार हो जाने वाली फसल है. बेबी कॉर्न के पौधे का कोई हिस्सा वेस्ट नहीं जाता है. किसान इसके हर हिस्से को बेचकर कमाई कर सकते हैं.
भागलपुर में बेबी कॉर्न की खेती: भागलपुर में बेबी कॉर्न की खेती पीरपैंती में शुरू हुई हे. पीरपैंती के रहने वाले ललन उपाध्याय इसकी खेती कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस इलाके में गन्ने की खेती अधिक होती है. बेबी कॉर्न की खेती के लिए कृषि विभाग के आत्मा ने प्रेरित किया. इसके बाद ही खेती की शुरूआत की. उन्होंने बताया कि अब इलाके के कई किसान बेबी कॉर्न की खेती करने लगे हैं.
तीन महीने में तैयार होता है फसल: ललन विगत वर्ष 10 कट्ठा में इसकी खेती हुई थी. अब इसका दायरा लगातार बढ़ते जा रहा है. आपको बता दें कि यह मात्र 3 माह में ही तैयार हो जाता है. इसमें अगर दो क्रॉप लगा दें तो, एक काटने के बाद दूसरा क्रॉप तैयार हो जाएगा. इससे आपको डबल मुनाफा कमाने का अवसर मिल जाता है. अभी के समय मे बेबीकॉर्न और मटर की खेती कर सकते हैं.
बेबी कॉर्न से मुनाफा ज्यादा: बेबी कॉर्न की खेती इसलिए किसानों के लिए फायदेमंद है, क्योंकि इसका कोई भी चीज खराब नहीं जाता है और मंहगे दामों पर बिकता है. अगर यह छोटा है तो बड़े-बड़े होटलों में बिकता है. खास बात यह है कि इसका बलरी भी बिक जाता है और किसान को अच्छी कीमत मिल जाती है. इसके अलावा बेबी कॉर्न के पौधे को हरा चारा के तौर पर भी उपयोग में ला सकते हैं.
“बेबी कॉर्न 60 से 70 दिनों के अंदर तैयार हो जाता है. पहली बार ट्रायल के तौर पर बेबी कॉर्न की खेती कर रहे हैं. इसका बाजार बहुत बड़ा है. हमें मुनाफा अधिक होता है तो हम वृहद तौर पर इसकी खेती करेंगे. तना मवेशी के हरे चारे में चला जाता है.” – ललन उपाध्याय, किसान
पूरे खेत में बेबी कॉर्न की बुआई नहीं करें: अप्रैल से लेकर मई तक बेबी कॉर्न की बुआई का सही समय है. एक साथ पूरे खेत में बेबी कॉर्न की बुआई नहीं करनी चाहिए. इसे दस-दस दिन के अंतर में खेत के कुछ हिस्सों में बोना चाहिए क्योंकि अगर किसान एक साथ पूरे खेत में बुआई करता है, तो पूरी फसल एक साथ तैयार हो जाती है. तब बाजार में बेचने में कुछ दिक्कत होती है.इसलिए कुछ अंतराल पर बुआई करने से जैसे-जैसे फसल तैयार होगी बाजार में बेच सकते हैं.
बेबी कॉर्न तोड़ते समय पत्तियां नहीं हटाए: बेबी कॉर्न की भुट्टा को एक से तीन सेमी. सिल्क आने पर तोड़ लेनी चाहिए. भुट्टा तोड़ते समय उसके ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाये. पत्तियों को हटाने से ये जल्दी खराब हो जाती है. इसके डंठल और पत्ते जानवरों के लिए पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. इसकी खेती से तो सालभर जानवरों को चारा उपलब्ध हो सकता है.
“बेबी कॉर्न की खेती के एक ऐसी फसल है जो हर मौसम में उगाई जा सकती है. इसे साल में तीन से चार बार उगा सकते हैं. इसमें एक हेक्टेयर में करीब चालीस से पचास हजार रुपए तक का मुनाफा होता है.”– प्रभात कुमार, उप परियोजना निदेशक, आत्मा, भागलपुर
सलाद और अचार में होता है उपयोग: बेबी कॉर्न न सिर्फ कम अवधि में तैयार हो जाती है, बल्कि बाजार में बढि़या भाव होने से आय भी परंपरागत फसलों से अधिक होगी। इसके अलावा इनका उपयोग सलाद, अचार और पिज्जा में भी होता है। बेबी कॉर्न का दाना मीठा होने के कारण इसका सूप बनाया जाता है। पौष्टिक होने के चलते यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हैं.
वर्ष 1993 बेबी कॉर्न उत्पादन पर शोध: बेबी कॉर्न उत्पादन का शोध सबसे पहले साल 1993 से मक्का अनुसंधान निदेशालय द्वारा हिमाचल प्रदेश, कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, बजौरा (कुल्लू घाटी) में शुरू हुई थी. तभी से बेबीकोर्न के रूप में मक्के की खेती का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. उत्तर भारत में दिसम्बर, जनवरी महीने को छोड़ सालभर बेबी कॉर्न की खेती की जा सकती है.
कैसे करें खेती: बेबीकॉर्न की बुआई के लिए किसान सबसे पहले खेत में मेड़ बना लें और इसकी चौड़ाई एक फीट रखें. बुआई से पहले खेतों में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें. मेड़ पर बुवाई से पानी कम लगता है और पैदावार अच्छी होती है.
कब करें सिंचाई: पहली सिंचाई बुआई से पहले करें, क्योंकि बीज अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होना जरूरी होता है. बुआई के 15-20 दिन बाद मौसम के अनुसार जब पौधे 12-14 सेमी के हो जाएं तो पहली सिंचाई करनी चाहिए. उसके बार 8-10 दिन के अन्तराल से ग्रीष्मकालीन फसल में पानी देते रहना चाहिए.