बहराइच के जिलाधिकारी के वाहन चालक जवाहर लाल मौर्या के बेटे कल्याण सिंह मौर्या ने UPPCS की कठिन परीक्षा में 40वीं रैंक हासिल कर यह साबित कर दिया है कि मेहनत और सफलता सुविधाओं की मोहताज नहीं होती।
भारतीय लोकतंत्र में कोई भी अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर अच्छा पद पा सकता है, बस ज़रूरत होती है, तो पूरी निष्ठा और दृढ़ संकल्प के साथ अपने लक्ष्य को पाने के लिए संघर्ष करते रहने की। इसी बात की मिसाल हैं फखरपुर विकासखंड के केतारपुरवा तखवा गांव के रहनेवाले कल्याण सिंह मौर्या, जिन्होंने पीसीएस एग्ज़ाम निकालकर बहराइच का मान बढ़ाया है।
कल्याण सिंह के पिता जवाहर लाल मौर्या, बहराइच में जिलाधिकारी के ड्राइवर हैं। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने बच्चों की पढ़ाई में किसी तरह की बाधा नहीं आने दी।
प्रशासनिक सेवा में जाने का जज़्बा लिए कल्याण सिंह ने भी कड़ी मेहनत की और पीसीएस एग्ज़ाम पास कर अब उपजिलाधिकारी के पद के लिए सलेक्ट हुए हैं। उन्होंने UPPSC PCS परीक्षा में 40वीं रैंक हासिल की और इस समय एनटीपीसी मे सहायक प्रबंधक की पोस्ट पर सोलापुर (मुंबई) में पोस्टेड हैं।
माँ को दिया पीसीएस एग्ज़ाम में सफलता का श्रेय
कल्याण सिंह की माँ का तकरीबन पांच साल पहले निधन हो गया था। हालांकि भले ही वह बेटे की सफलता का यह पल देखने के लिए इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन पिता जवाहर लाल अपने बेटे की सफलता का श्रेय कल्याण की माँ को देते हैं।
पीसीएस एग्ज़ाम पास करने वाले कल्याण ने शुरुआती पढ़ाई बहराइच के नानपारा में की और इंटरमीडिएट की पढ़ाई बहराइच के सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट कॉलेज से पूरी की। उन्होंने BHU से बीएससी किया और फिर आईआईटी दिल्ली से केमिस्ट्री में एमएससी की डिग्री हासिल की। UPSC 2021 में भी उन्होंने IAS का इंटरव्यू दिया था, जिसमें पांच नंबर कम होने से वह चूक गए थे।
बच्चों को पढ़ाने में कोई कसर न छोड़ें: पिता
कल्याण सिंह के पिता जवाहर लाल मौर्या बहराइच में DM के ड्राइवर हैं
पीसीएस एग्ज़ाम पासकर SDM बने कल्याण सिंह मौर्या के बड़े भाई संजय मौर्या ने एनआईटी प्रयागराज से बीटेक किया है और एसेंचर कंपनी में चीफ इंजीनियर हैं। वहीं, बहनें श्रेया और प्रिया, पोस्ट ग्रेजुएट कर UPSC की तैयारी कर रही हैं।
बेटे की कामयाबी के बाद कल्याण सिंह मौर्या के पिता, साथी ड्राइवर लोगों को यही संदेश ना चाहते हैं कि कोई चाहे चपरासी ही क्यों न हो, अपने बच्चों को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। वह कहते हैं, “मैं 35 साल की अपनी नौकरी में साहब के साथ रहते हुए अपने बच्चों को भी वैसा ही बनने की प्रेरणा देता रहा।”