टिकट होने के बाद भी रेलवे ने किया चालान, अब देगा हर्जाना : राजधानी ट्रेन में यात्रा के लिए वैध टिकट होने के बावजूद, नई दिल्ली स्टेशन पर ‘बिना टिकट यात्रा’ करने के आरोप में यात्री से जुर्माना वसूले किए जाने को राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने अनुचित बताया है। आयोग ने रेलवे को यात्री से जुर्माना और दोबारा से टिकट के पैसे के रूप में वसूली गई राशि ब्याज सहित वापस करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने रेलवे को इस घटना के मद्देनजर कार्यप्रणाली में सुधार करने और जिम्मेदारी तय करने को कहा है, ताकि भविष्य में किसी यात्री को नुकसान और परेशानी नहीं हो।
आयोग के सदस्य दिनेश सिंह और विनय कुमार की पीठ ने रेलवे की ओर से दाखिल अपील को खारिज करते हुए फैसला दिया है। आयोग के समक्ष शिकायत दाखिल किए जाने के बाद से ही यह स्पष्ट था कि शिकायतकर्ता ने टिकटों के लिए अग्रिम भुगतान किया था, बावजूद इसके रेलवे ने किसी तरह की तथ्य परक जांच नहीं कराई और इस बात पर जोर देता रहा कि वह जुर्माना लगा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि जब रेलवे पहले ही दिन से अच्छी तरह से यह जानता था कि यात्री वास्तव में बिना टिकट या नकली टिकट पर यात्रा नहीं कर रहा था, तो तर्कसंगत क्यों नहीं लिया जा सका।
टिकट के लिए अग्रिम भुगतान हुआ था
आयोग ने कहा है कि यदि यह मान भी लिया जाए कि शिकायतकर्ता निरीक्षण या किसी अन्य कारण से ‘मूल’ टिकट दिखाने की स्थिति में नहीं था, तो भी इस बात का आसानी से पता लगाया जा सकता था कि शिकायतकर्ता ने टिकट के लिए अग्रिम भुगतान किया है। साथ ही कहा है कि यात्री की शिकायत के बाद रेलवे ने अपने रिकॉर्ड की जांच की थी और यह अच्छी तरह से पता था कि यात्री को आरक्षित बर्थ के लिए टिकट जारी किए गए थे।
पैसा वापस करने के साथ ही हर्जाना दे
आयोग ने रेलवे की अपील खारिज कर जुर्माने और यात्रा किराया के तौर पर शिकायतकर्ता वीरेंद्र कुमार पासवान से वसूले गए 5150 रुपये 9 फीसदी ब्याज के साथ वापस करने का आदेश दिया है। साथ ही इस घटना के चलते हुई मानसिक परेशानी के लिए 5 हजार रुपये हर्जाना और 25 हजार मुकदमा खर्च भी देने को कहा है। आयोग ने रेलवे को इस घटना के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से हर्जाने की रकम वसूलने की छूट दी है।
आयोग ने जताई नाराजगी
आयोग ने रेलवे के रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह जानते हुए भी कि शिकायतकर्ता की कोई गलती नहीं थी, फिर भी रेलवे के अधिकारियों ने जिला उपभोक्ता फोरम, फिर राज्य आयोग के समक्ष अपील और अब इस आयोग के समक्ष पुनरीक्षण को प्राथमिकता देना उचित समझा।