भागलपुर से कतरनी चावल का इस साल भी नहीं हो सकेगा निर्यात, केंद्र सरकार ने लगायी रोक
भागलपुर या अंग प्रदेश की पहचान जिन कुछ खास विशिष्टताओं के कारण पहचान है उसमें कतरनी चावल और चूड़ा खास है। दुधिया रंग की छोटी-छोटी मोतियों से दाने देखने में जितने सुंदर हैं उतने ही सुगंधित। मकर संक्रांति में अंग क्षेत्र की कतरनी बिहार की पसंदीदा सौगात मानी जाती है। पिछले साल जर्दालू आम का सफलतापूर्वक निर्यात शुरू होने के बाद कतरनी चावल के निर्यात के लिए भी योजना बनायी जा रही थी। लेकिन विडंबना है कि इस साल भी कतरनी चावल का निर्यात नहीं हो सकेगा। क्योंकि केंद्र सरकार ने गैरबासमती सभी तरह के चावल के निर्यात पर इस साल रोक लगा दिया है।
भागलपुर की कतरनी की खुशबू अब देश-दुनिया में फैलायी जाये, इसके लिए कृषक उत्पादक कंपनी बनायी गई थी। इससे जुड़े किसानों ने निर्यात के लिए कुछ तैयारी भी की थी। पिछले साल दुबई में कतरनी की प्रदर्शनी भी लगायी गई थी। सुल्तानगंज के एक एफपीओ से जुड़े किसान मनीष कुमार बताते हैं कि गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगने से इस साल कतरनी का निर्यात नहीं हो सकेगा। हालांकि जो नियम बनाये गए हैं, उसमें चूड़ा के निर्यात पर रोक नहीं है।
इसलिए कोशिश होगी कि कम-से-कम चूड़ा का निर्यात किया जाये। ऐसे अगर चावल का निर्यात होता तो इससे अच्छा इंपैक्ट आता। कृषि विभाग के सहयोग से कतरनी का गढ़ माने जाने वाले जगदीशपुर प्रखंड में सिर्फ कतरनी और कतरनी किसानों को प्रमोट करने के लिए एक कृषक उत्पादक कंपनी बनायी गई है जिसका नाम अंग उत्थान एग्रो फामर्स प्रोड्यूसर कंपनी है। कंपनी बनने के साथ ही 100 से अधिक किसान इससे जुड़ चुके हैं। आत्मा के उप परियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह बताते हैं कतरनी भागलपुर की विशिष्टता है। इस साल भले ही निर्यात न हो सके, लेकिन आने वाले दिनों में इसका मार्केट विदेशों में भी बनेगा।
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