अति पिछड़ा वोट बैंक या कुछ और… BJP ने दिलीप जायसवाल को क्यों बनाया अध्यक्ष?

बीजेपी हाईकमान ने गुरुवार देर रात बिहार में पार्टी का मुखिया बदल दिया। पार्टी ने भूमि सुधार मंत्री दिलीप जायसवाल को अध्यक्ष नियुक्त किया। वे 3 बार के विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। इससे पहले वे करीब 20 सालों तक पार्टी के कोषाध्यक्ष भी रहे। बता दें कि पार्टी ने एक साल पहले ही सम्राट चौधरी को बीजेपी का अध्यक्ष बनाया था। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक साल पहले जिस सम्राट चौधरी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया था उनको कुर्सी से क्यों उतार दिया?

बिहार में जाति की राजनीति सबसे ज्यादा कारगर होती है। यही सोचकर बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले कुशवाहा वोटर्स को साधने के लिए सम्राट चौधरी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया था। लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी का यह वोट बैंक आरजेडी की ओर खिसक गया। परिणाम स्वरूप पार्टी लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर चुनाव हार गई। सम्राट चौधरी पार्टी के लिए कुशवाहा और कोइरी समुदाय के वोट हासिल करने में असफल रहे। लोकसभा चुनाव में लालू की पार्टी आरजेडी ने कुशवाहा समाज के 7 उम्मीदवारों को टिकट दिया था।

पार्टी से खिसका कुशवाहा वोटर्स

लोकसभा चुनाव में बीजेपी औरंगाबाद, बक्सर, सासाराम और आरा जैसी सीटें हार गई। 2019 में ये सीटें भाजपा के पास थीं। लोकसभा चुनाव के बाद लग रहा था कि पार्टी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बनाए रखेगी लेकिन भगवा पार्टी ने 2025 विधानसभा चुनाव से पहले ये बड़ा संगठनात्मक बदलाव किया है। ऐसे में अब जानते हैं कि पार्टी ने दिलीप जायसवाल को कमान क्यों सौंपी?

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सीमांचल में मजबूत होगी बीजेपी?

बिहार के सीमांचल क्षेत्र में बीजेपी काफी कमजोर मानी जाती है। वजह है मुस्लिमों की आबादी। ऐसे में भाजपा ने सीमांचल में गैर मुस्लिम वोटर्स को साधने के लिए क्षेत्र के सबसे बड़े चेहरे दिलीप जायसवाल पर दांव खेल दिया है। जानकारों की मानें तो भाजपा वैश्य वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है। जायसवाल को अमित शाह का करीबी माना जाता है। अति पिछड़ा वोटर्स को साधने के लिए पार्टी ने दिलीप जायसवाल पर भरोसा जताया है। बता दें कि सम्राट चौधरी से पहले इसी समाज से आने वाले संजय जायसवाल पार्टी के प्रमुख थे।

बता दें कि अब बिहार में अब तक पार्टी ने ओबीसी और अगड़ी जाति के नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंपी है। लेकिन कोई दलित नेता अभी तक इस पद पर नहीं पहुंच पाया है। ऐसे में अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले दिलीप जायसवाल पर दांव खेलकर पार्टी को कितनी सफलता मिल पाएगी ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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