कई बार हुए फेल, पर हार नहीं मानी, उधार की बछिया लेकर शुरू किया काम, आज बने करोड़पति

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बिहार के कई ऐसे किसान हैं, जिन्होंने शुरुआती संघर्ष के बाद अपनी बड़ी पहचान बनाई. अपनी मेहनत से किस्मत के सितारों को इस कदर बुलंद किया, कि वे खुद के नामों से जाने जाते हैं. कुछ ऐसे ही किसानों में एक है, बिहार के गया के संतोष कुमार. संतोष कुमार गया के ग्रामीण इलाके शेखवारा से आते हैं, लेकिन आज उनकी अपनी पहचान है. उनका आत्मनिर्भर बनने का मंत्र काम आया और उधार की दो बाछियों से शुरू होने वाला काम ऐसा बढ़ा कि 50 और ₹100 कमाने वाले संतोष आज करोड़ों का सालाना टर्नओवर कर रहे हैं।

गोबर से ‘सोना’ : गया के संतोष कुमार गोबर से सोना छाप रहे है. 20-21 वर्ष पहले इन्होंने उधार की दो बाछियों और एक घर में गाय के साथ डेयरी फार्म की शुरुआत की थी. बाछियां बड़ी हुई, तो उसका दूध बेचना शुरू किया. दूध बेचते उन्हे गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाने का आइडिया आया. इसके बाद 2005 में इन्होंने एक छोटा सा पिट बना दिया. पिट बनाकर गोबर से वर्मी कंपोस्ट तैयार करने लगे. उनकी ईमानदारी को देखकर इनके द्वारा बेचे जाने वाले दूध की डिमांड होने लगी. कुछ आवासीय स्कूल स्थाई तौर पर दूध खरीदने लगे थे. एक ओर दूध तो दूसरी और गोबर, दोनों उनकी किस्मत चमका रहे थे. आखिरकार उनके लंबे संघर्ष ने खाकपति से करोड़पति बना दिया।

कई धंधों में हाथ आजमाया : कैमरा, एलआईसी एजेंट, नन बैंकिंग कर्मी, मुर्गी पालन क्या कुछ नहीं किया? एक दिन आखिरकार गाय और गोबर का साथ मिला और गाड़ी चल निकली. गया के ग्रामीण इलाके शेखवारा के रहने वाले संतोष कुमार ने सबसे पहले आत्मनिर्भर होने की ठान ली थी. इन्हें आत्मनिर्भर होना था, लेकिन कुछ काम सूझ नहीं रहा था. ऐसे में इन्होंने ₹500 का एक प्रीमियर कैमरा खरीदा. घर-घर जाकर फोटो खींचना शुरू किया, लेकिन उधार ने उनके इस बिजनेस की कमर तोड़ दी. उन्हें यह धंधा छोड़ना पड़ा. इसके बाद वे नन बैंकिंग कर्मी और एलआईसी एजेंट बने. किंतु इनका मन इस क्षेत्र में नहीं लगा, क्योंकि इन्हें लगता था, कि यह आत्मनिर्भर वाला काम नहीं है और यह कोई उत्पादन करने वाली बात नहीं है, कि पैसा जमा कर पैसे कमाना।

मुर्गी फार्म खोला: 1990 में इन्होंने मुर्गी पालन का काम शुरू किया. मुर्गी का पालन का काम 4 वर्षों तक जारी रखा. इनका व्यवसाय बोधगया के होटल अशोक से था. वह प्रतिदिन 100 से 150 संख्या में ड्रेसिंग चिकेन मंगाता था, जो इन्हें अच्छा नहीं लगता था. जीवों के प्रति सहानुभूति का भाव इनमें उत्पन्न हो गया और इस काम को भी इन्होंने छोड़ दिया. इस काम को छोड़ने का सबसे बड़ा कारण था कि उन्होंने मगध विश्वविद्यालय की चाहरदीवारी पर लिखा देखा था, कि ‘जैसी करनी वैसा फल’ ‘आज नहीं तो निश्चय कल’ यह बात उन्हें घर कर गई और फिर उन्होंने मन में सोचा, यह पाप वाला काम है. फिर मुर्गी पालन का काम छोड़ दिया।

मास्टर भी बने राजमिस्त्री का भी काम किया: इसके बाद मास्टर साहब भी बने लेकिन साथी शिक्षक ने साथ नहीं दिया, राजमिस्त्री वाला काम भी उन्हें रास नहीं आया. इतने सारे बिजनेस करने के बाद संतोष कुमार मास्टर बने थे. 1994 में इन्होंने जीवनदीप पब्लिक स्कूल की स्थापना अपने ही घर पर की. विद्यालय में 300 छात्र छात्राएं हो गए. किंतु बच्चों में पढ़ाई के प्रति तब जागरूकता नहीं थी, मासिक शुल्क देने में काफी अनियमितता होती थी. इससे विद्यालय लगातार घाटे में चला गया. वहीं, कुछ साथी शिक्षकों ने नया स्कूल खोल दिया, जिससे घाटा बढ़ता चला गया और फिर इन्होंने इस काम को भी छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने राजमिस्त्री वाला काम शुरू किया. भवन निर्माण का कार्य शुरू किया तो इसमें भी कई साल लगे रहे, लेकिन बाद में इन्हें यह काम अच्छा नहीं लगा. वहीं, जय हिंद पब्लिक स्कूल के निदेशक कृष्ण देव प्रसाद की मेहनत और लगन देखकर इन्हें यह प्रेरणा में मिली कि क्यों न वह अपना नाम कुछ उत्पादन वाले कामों में ही बढ़ाएं।

2003 में गोपालन की शुरुआत: संतोष कुमार अपने मित्र अरुण सिंह की शादी में शामिल होने बेगूसराय गए थे. तब उन्होंने देखा कि बेगूसराय के इस गांव में सभी घरों में चार-पांच गाय बंधी हुई है. सभी गांव में दूध उत्पादक सहयोग समिति में सुबह-शाम सैंकड़ों लीटर दूध एकत्रित करते हैं. वहीं हरा चारा भी खेतों में लहलहा रहा था. यहीं से प्रेरणा मिली और फिर निश्चय किया, कि वह गोपालन करेंगे. इसके बाद ₹2800 में बछिया खरीदी. कुछ उधार भी लेने पड़े. एक बछिया एक गाय पहले से घर में थी. तब गया में दूध उत्पादन एकदम शून्य था।

दूध उत्पादन में लगन देख मिला पिता का साथ: वहीं, दूध उत्पादन में रुचि देखकर पिता एवं बड़े भाई ने सहयोग किया. इसके बाद हम दो बाछियों और एक गाय के साथ, जो शुरुआत की. धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती चली गई. पिता और भाई की मदद से कुछ और गायें खरीद लिए. इसके बाद खुद ही बाजारों में जाकर दूध की बिक्री करनी शुरू की. धीरे-धीरे यह व्यवसाय फलता चला गया और फिर डेयरी का निर्माण कर लिया. दूध उत्पादन के क्षेत्र में अच्छा काम करने को लेकर 2007- 2008 में बिहार सरकार के द्वारा पुरस्कृत किया गया. इसके बाद उनका उत्साह और बढ़ता गया. संतोष का नाम गया जिले के प्रगतिशील किसान में जुट गया था. गाय के गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम जारी रखा था. बाद में वर्मी कंपोस्ट का बड़ा उत्पादन करना शुरू कर दिया।

वर्मी कंपोस्ट बनाने का बड़ा पिट और नर्सरी: आज संतोष कुमार के पास दर्जनों गायें हैं. डेयरी संचालित कर रखी है. वहीं, वर्मी कंपोस्ट का बड़ा उत्पादक बन चुके हैं. नर्सरी भी संचालित कर रहे हैं. आज यह गोबर से ‘सोना’ उत्पादित कर रहे हैं. प्रतिदिन कई टन वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन कर रहे. वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन में 7-8 टन अपना गोबर होता है. वहीं, बाहर से भी गोबर मंगाते हैं. गया शहरी क्षेत्र से 9-10 टन रोज गोबर की खरीदारी करते हैं. एक ट्रैक्टर में ढाई टन गोबर होता है.18 सौ रुपए प्रति ट्रैक्टर की दर से यह रोज 9 से 10 टन गोबर मंगाते हैं. आज गोबर से सोना पैदा कर रहे हैं. गोबर से वर्मी कंपोस्ट बड़े पैमाने पर उनके द्वारा तैयार की जा रही है. दो बड़े पिट इन्होंने बनाया है, जिसमें वर्मी कंपोस्ट तैयार होती है. यह वर्मी कंपोस्ट मंदिर, धर्मशाला, होटल, लॉन, नर्सरी वालों, आम लोगों के अलावे किसानों के लिए सप्लाई की जाती है।

कई राज्यों में होती है सप्लाई: 5 किलोग्राम के पैकेट से लेकर 100 किलोग्राम के पैकेट में वर्मी कंपोस्ट तैयार कर सप्लाई की जा रही है सालाना 2500-3000 मीट्रिक टन वर्मी कंपोस्ट की देश के चार राज्यों में सप्लाई होती है. यह वर्मी कंपोस्ट बिहार के अलावे झारखंड, पश्चिम बंगाल और यूपी के कुछ हिस्सों में भेजे जा रहे हैं. संतोष कुमार का कहना कि करीब डेढ़ करोड़ का टर्नओवर सालाना होता है. उन्होंने बताया कि लंबे संघर्ष के बाद इस मुकाम को पाया है और कई बड़े सम्मान उन्हें मिल चुके हैं. दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ वर्मी कंपोस्ट के निर्माण में उन्हें सम्मानित किया जा चुका है. कई केंद्रीय मंत्री ने उन्हें सम्मानित किया है. वहीं, तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने भी सम्मानित किया था।

वायो गैस बॉटलिंग प्लांट की तैयारी: किसान संतोष कुमार अब बायोगैस बॉटलिंग प्लांट लगाने की तैयारी में जुटे हुए हैं. इनका कहना है, कि बायोगैस बॉटलिंग प्लांट की उत्पादन क्षमता ढाई क्विटल प्रति दिन जैसे उत्पादन के हिसाब से करेंगे. किसान संतोष कुमार आज कृषि कार्य के क्षेत्र में पशुपालन, मत्स्य पालन, फसल उत्पादन, बागवानी, व्यवसायिक स्तर का वर्मी कंपोस्ट उत्पादन, डेयरी, नर्सरी का संचालन कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने लंबी प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है. इन्होंने राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर बिहार, वेटनरी कॉलेज पटना, गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर उत्तराखंड, भारतीय चारागाहा एवं चारा अनुसंधान केंद्र झांसी उत्तर प्रदेश, नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज फैजाबाद उत्तर प्रदेश, गुरु अंगद देव भटनागर कॉलेज लुधियाना पंजाब आदि स्थानों से प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

इस क्षेत्र में मिले पुरस्कारः 2007-08 में किसान पुरस्कार से उन्हें काफी प्रेरणा मिली थी और आगे कुछ करने का माद्दा प्रबल होता चला गया. किसान संतोष कुमार को कई सम्मान मिल चुके हैं. 22 मार्च 2010 को बिहार दिवस के अवसर पर तत्कालीन कृषि मंत्री श्रीमती रेणु कुशवाहा के द्वारा प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया. 18 नवंबर 2011 को केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के द्वारा उन्हें राष्ट्रीय किसान पुरस्कार दिया गया. 16 जुलाई 2012 को राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद पूसा नई दिल्ली के स्थापना दिवस के अवसर पर बाबू जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के द्वारा दिया गया. 9 मई 2013 को मुख्यमंत्री बिहार नीतीश कुमार मेरे नंदिनी डेयरी में आए और नंदिनी बायो फर्टिलाइजर का निरीक्षण किया, एवं व्यावसायिक स्तर पर वर्मी कंपोस्ट उत्पादन निकाय का अनुदान राशि देकर प्रोत्साहित किया. 10 सितंबर 2013 को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा वाइब्रेंट गुजरात 2013 ग्लोबल एग्रीकल्चर सबमिट के अवसर पर श्रेष्ठ किसान का पुरस्कार दिया गया. 2 अप्रैल 2014 को बिहार वेटनरी कॉलेज पटना के 87 वें स्थापना दिवस के अवसर पर सम्मानित किया गया।

”भारत कृषि प्रधान देश है, इसे ध्यान मैं रखते हुए खेती के साथ-साथ पशुपालन शुरू किया. अपने हित के साथ-साथ सामाजिक हित और राष्ट्रहित में मजबूती लाना हमारा उद्देश्य है. अपने किसान भाइयों को एक सफल किसान बनाना चाहते हैं. किसान खेती के साथ-साथ पशुपालन और वर्मी कंपोस्ट उत्पादन कर घर-घर में स्वरोजगार का सृजन करते हुए रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाओं से बीमार अपने धरती मां को एक बार फिर से स्वस्थ बनाना है. आज मैं वर्मी कंपोस्ट का बड़ा उत्पादक हूं. महज दो तीन गायों के साथ शुरुआत के बाद यह मुकाम मिला है. दुग्ध उत्पादन, वर्मी कंपोस्ट उत्पादन, खेती आज हमारे पास सब कुछ है और ईमानदारी और लगन हो तो सफलता की बुलंदियों को छुआ जा सकता है.”- संतोष कुमार, किसान

ऐसे बनाएं गोबर से सोना : वर्मी कंपोस्ट एक तरह से कहें, तो गोबर से सोना बनाने के समान है. वर्मी कंपोस्ट बनाना कोई कठिन काम नहीं है. बस मजबूत सोच और लगन चाहिए. वर्मी कंपोस्ट के लिए ताजा गोबर जो की 10 दिनों से ज्यादा पुराने नहीं हो, उसपर 10 दिनों तक पानी का छिड़काव होता है और उसे अनुकूल बनाया जाता है. इसके बाद गोबर को पीट में डाला जाता है. पीट में डालने के बाद उपर से केंचुआ डालकर कवर करके पानी का छिड़काव करते हैं. इसके बाद कुछ अंतराल में खाद तैयार होता है. जब खाद तैयार हो जाता है, तो केंचुआ स्वत: नीचे चले जाते हैं. फिर आराम से तैयार जैविक खाद को निकाल लिया जाता है. इसके बाद इसकी छनाई और पैकिंग कर इसकी सप्लाई की जाती है।

”बेहद कम पूंजी में अच्छे रोजगार का यह साधन है. जैविक खाद तैयार कर केमिकल खाद से निजात दिलाया जा सकता है. क्योंकि केमिकल वाले खाद जनजीवन पर बुरा असर डालते हैं. वहीं, वर्मी कंपोस्ट जैविक खेती में भी उपयोगी है. मिट्टी हमेशा जिंदा रहती है. वर्मी कंपोस्ट फफूंदी नाशक भी तैयार होती है. इस तरह के जैविक खाद के प्रयोग से फसलों में फफूंदी नामक कीट नहीं लगता. वहीं, जीवामृत भी गाय के गोमूत्र से बनाया जाता है. इसमें मीठा और बेसन मिलाना होता है और जीवामृत तैयार किया जाता है. इसका छिड़काव खेतों में होता है.”- संतोष कुमार, किसान

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