भारत और सिंगापुर में संबंधों को चार समझौतों से मिली नई उड़ान

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भारत और सिंगापुर अपने ऐतिहासिक संबंधों को समग्र रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर ले जाने पर सहमत हुए हैं। दोनों देशों के बीच 4 समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं। भारत की ओर से विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और उनके समकक्ष वीवियन बालाकृष्णन ने ज्ञापन का आदान-प्रदान किया, जिसमें दोनों देशों के बीच डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक एंड इंफॉर्मेशन, शिक्षा एवं कौशल विकास व उद्यमिता, स्वास्थ्य व्यापार व उद्योग एवं इलेक्ट्रॉनिक एंड इन्फॉर्मेशन मंत्रालयों के बीच सहयोग पर सहमति बनी है।

प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग से सिंगापुर में पहली औपचारिक मुलाकात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सिंगापुर समकक्ष लॉरेंस वोंग से मुलाकात की। सिंगापुर की संसद भवन में पीएम मोदी का औपचारिक स्वागत किया गया। दोनों नेताओं ने दूसरे प्रतिनिधिमंडल से भी मुलाकात और बातचीत की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिंगापुर की यह पांचवी आधिकारिक यात्रा है। वहीं यह प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग से सिंगापुर में पहली औपचारिक मुलाकात है। पीएम मोदी ने सिंगापुर को विकासशील देशों के लिए एक प्रेरणा बताया। वहीं दोनों देशों के बीच राउंड टेबल मंत्रीस्तर को हर एक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने वाला बताया। पीएम मोदी का सिंगापुर की संसद में औपचारिक स्वागत करने के साथ पीएम ने संसद भवन की आगंतुक पुस्तिका में भी अपने स्मरण को साझा किया। पीएम मोदी और लॉरेंस वोंग के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता भी हुई।

भारतीय मूल के सिंगापुर राष्ट्रपति थर्मन शन्मुगरत्नम से हुई मुलाकात

वहीं सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शनमुग रत्नम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुलाकात की। वे साल 2023 में सिंगापुर के राष्ट्रपति चुने गए थे। थर्मन शन्मुगरत्नम भारतीय मूल के हैं। शनमुग रत्नम इससे पहले सिंगापुर के वित्त मंत्री और डिप्टी प्रधानमंत्री के रूप में भी सेवाएं दे चुके हैं। उनकी पहचान एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप में भी है। भारतीय मूल के सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शनमुग रत्नम की मुलाकात पीएम मोदी से एक ऐसे माहौल में हुई है जब भारत और सिंगापुर ने अपने इतने लंबे दशकों के नए संबंधों के एक नई पहचान दी है और रणनीतिक साझेदारी अब दोनों देशों की संबंध बदल चुके हैं।

पीएम मोदी की सिंगापुर यात्रा रही बेहद अहम

बताना चाहेंगे पीएम मोदी की सिंगापुर यात्रा कई मायनों में बेहद अहम है। जिस तरह से दोनों देशों के बीच चार अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, साथ ही साथ दोनों देशों ने अपने संबंधों को भी एक तरह से नई पहचान दी है।
वहीं पीएम मोदी ने सिंगापुर के पूर्व प्रधानमंत्री ली सीन लूंग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुलाकात की। ली सीन लूंग लंबे समय तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री रहे। उनका कार्यकाल 20 वर्ष का रहा। उन्होंने इसी साल मई में अपने पद से इस्तीफा दिया था। 20 साल के कार्यकाल में यही वो समय रहा जब भारत और सिंगापुर के संबंधों ने भी एक नई ऊंचाई को छुआ है।

जी हां, कई ऐसे अहम क्षेत्र पिछले 10 से 20 साल में जुड़े हैं। भारत और सिंगापुर के बीच जिसने भारत और सिंगापुर के व्यापारिक, आर्थिक और अपने संबंधों को एक नई पहचान दी है। पीएम मोदी की सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में खासी दिलचस्पी देखने को मिलती है। इसी क्रम में पीएम मोदी ने सिंगापुर की एडवांस इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज-एईएम का भी दौरा किया। यह सेमीकंडक्टर बनाने की एक कंपनी है।

पीएम मोदी की यह यात्रा भारत-सिंगापुर के बीच सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में निर्माण, कौशल विकास और रोजगार को बढ़ावा देना है। स्किल डेवलपमेंट के तहत सेमीकंडक्टर फैसिलिटीज़ में काम कर रहे भारतीयों से भी पीएम मोदी ने मुलाकात की।

विकसित भारत का विजन 2047 अचीव करना है तो उसके लिए सिंगापुर जैसा विकसित देश महत्वपूर्ण

पीएम मोदी की सिंगापुर यात्रा को लेकर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (जेएनयू) के प्रोफेसर संजय भारद्वाज बताते हैं कि भारत भी सिंगापुर के साथ जुड़ना चाहता है क्योंकि भारत का एक अपना एस्पिरेशन है कि 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनना है या विकसित भारत का विजन 2047 तक अचीव करना है। ऐसे में उसके लिए सिंगापुर जैसा विकसित देश महत्वपूर्ण है।

आगे जोड़ते हुए संजय भारद्वाज कहते हैं कि खासतौर से चार क्षेत्र हैं जिनमें भारत अपनी ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के माध्यम से सभी साउथ ईस्ट एशियन देशों से जुड़ने का प्रयास कर रहा था। साउथ ईस्ट देशों में सिंगापुर भी है। चार क्षेत्रों में से पहला-हमारी कल्चरल कनेक्टिविटी या जो हमारा लोस्ट लिकंजेज है उसे मजबूत करना, दूसरा-फिजिकल कनेक्टिविटी, जिसमें ट्राई नेशन रोड कनेक्टिविटी आती है, उसमें हम वियतनाम, सिंगापुर और पूरे साउथ-ईस्ट एशिया के साथ जुड़ने की बात कर रहे हैं।

संजय भारद्वाज आगे बताते हैं कि पीएम मोदी का यह दौरा दो महत्वपूर्ण पहलू से जुड़ा है जो एक्ट ईस्ट पॉलिसी के पार्ट हैं। कॉमर्शियल कनेक्टिविटी में ट्रेड और इंवेस्टमेंट को मजबूत करने के लिए उसमें को-ऑपरेशन और कोलेबोरेशन के लिए सिंगापुर हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आज साउथ ईस्ट एशियन देशों के साथ हमारा व्यापार क्षेत्र करीब 122 बिलियन डॉलर का है। उसमें सबसे बड़ा सेक्टर भारत का सर्विस सेक्टर है जिसका सिंगापुर में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत की स्किल्ड लेबर फोर्स जैसे इंजीनियर, डॉक्टर या एजुकेशन सेक्टर में कार्य करने वाले इसमें बड़ा योगदान देते हैं।

चौथे महत्वपूर्ण पक्ष के बारे में प्रोफेसर संजय बताते हैं कि भारत ने सिंगापुर के साथ एक एमओयू साइन किया है वो है कैपेसिटी बिल्डिंग। आज भारत के लिए सबसे बड़ा गैप महसूस हो रहा है कि हमें कैपेसिटी बिल्डिंग करना है। इसी के लिए हमने समझौते किए हैं। पीएम मोदी ने सिंगापुर में सेमीकंडक्टर कंपनी में विजिट किया और वहां भारतीयों से मिले तो निश्चित रूप से हम देख रहे हैं कि जो स्ट्रॉन्ग सप्लाई चेन और स्ट्रॉन्ग मैन्युफैक्चरिंग हब बनता जा रहा है, उसमें भारत कैसे सहयोग कर सकता है और कैसे कोलैबोरेट कर सकता है। चूंकि सिंगापुर के पास दो चीजें नहीं है… एक तो बहुत बड़ा एरिया नहीं है जिसे भारत उपलब्ध करा सकता है और दूसरा स्किल्ड लेबर फोर्स। भारत इस कमी को पूरा कर सकता है क्योंकि भारत स्किल्ड लेबर फोर्स की एक बहुत बड़ी फैक्ट्री है। ऐसे में ये दोनों देश एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं।

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