कालीबाड़ी में पिछले 82 सालों से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना हो रही है। यहां पहली बार धीरेंद्रनाथ बनर्जी, नक्षत्र भूषण मुखर्जी आदि ने 1941 में छोटी प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की थी। यहां एक ही मेढ़ पर मां दुर्गा की पूजा होती है। इस बार यहां आसनसोल के आदि दुर्गा मंदिर का पंडाल बनाया जा रहा है। बंगाल के पंडाल कलाकार इसका निर्माण कर रहे हैं। जबकि प्रतिमा छह से सात फीट की होगी।
विशुद्ध सिद्धांत पंजिका के अनुसार होगी पूजा
इस बार कालीबाड़ी में पूजा विशुद्ध सिद्धांत पंजिका के अनुसार होगी। कालीबाड़ी दुर्गा मंदिर के महासचिव विलास कुमार बागची ने बताया कि बेलूर मठ में इस पद्धति से पूजा की जाती है।
1941 में मूर्तिकार घोघन पंडित ने बनाई थी पहली प्रतिमा
कालीबाड़ी की प्रतिमा बनाने की शुरुआत चंपानगर के घोघन पंडित ने 1941 से की थी। उन्होंने 1984 तक प्रतिमा बनायी थी। फिर उनके पुत्र किशुन पंडित से प्रतिमा बनवाई गई। अब बाल्टी कारखाना के पास रहने वाले ललित पंडित प्रतिमा बनाते हैं। कालीबाड़ी में जात्रा खास होता था। इसमें किशोर कुमार के मामा शानू बनर्जी व ममेरा भाई समीर कुमार बनर्जी के अलावा दिलीप चटर्जी, अशोक चटर्जी, सुनील कुमार घोष, गौरी शंकर चौधरी, कंचन सरकार, निरूपम क्रांतिपाल आदि अपने अभिनय का जादू बिखेर चुके हैं। आर्थिक संकट के कारण 2015 से जात्रा को बंद कर देना पड़ा। कालीबाड़ी दुर्गापूजा समिति के मुख्य संरक्षक डॉ. हेमशंकर शर्मा तो अध्यक्ष डॉ. सुजाता शर्मा हैं।
भव्य पंडाल का निर्माण 1978 से हुआ शुरू
महासचिव विलास कुमार बागची ने बताया कि कालीबाड़ी में हांडी भोग का प्रसाद लगता है। 1976 से हांडी भोग तो भव्य पंडाल का निर्माण 1978 से शुरू हुआ था। यहां पहली बार 1966 में साधारण पंडाल तो 1978 से भव्य पंडाल बनने लगा था। यहां के हांडी भोग में श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का वितरण किया जाता है।