इंसान अगर चाह दे तो उसके लिए कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं. सपने देखने का हक भी उन्हें ही होता है जो ऊंची उड़ान भरने का हौसला रखते हैं. फिर इंसान के आगे कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं होता. ऐसी ही एक कहानी लखीसराय जिला के चांदन प्रखंड के सतीश कुमार की है. जिनके आगे तमाम ऐसी बधाएं थीं जो साधारण इंसान को अपने आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दे लेकिन अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के कारण हमेशा से असाधारण रहे हैं.
हर मुश्किल को पार कर पाई सफलता
रिपोर्ट के अनुसार, दिव्यांग होने के बावजूद सतीश कुमार ने कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल-2022 में सफलता अर्जित करते हुए अपने जिले वासियों को गर्व महसूस करने का मौका दिया है. दृष्टिबाधित सतीश कुमार ने बताया कि उन्हें बचपन से ही पढ़ाई का बहुत शौक था. उनका जीवन भी अन्य बच्चों की तरह ही सामान्य था लेकिन सितंबर 2019 की एक काली रात ने उनकी ज़िंदगी बदल कर रख दी. उनकी तबीयत अचानक से खराब हो गई. जिसके बाद उनका सब कुछ खत्म हो गया. सतीश ने गंभीर बीमारी के कारण अपनी दोनों आंखें खो दीं.
पहले आंखें गईं, फिर ब्रेन ट्यूमर हुआ
उनके मुश्किलें यहीं नहीं रुकीं. उनपर दुखों का पहाड़ उस समय टूट जब उन्हें पता चला कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है. इस भयंकर रोग के कारण उनके सिर की चार बार सर्जरी हुई. सतीश इतना कुछ सहने के बावजूद हिम्मत नहीं हारे थे. उन्होंने सब्र से काम लिया, जब समय आया तो उन्होंने अपने अंदर की आग को दहकाया. उन्होंने खुली आंखों से ऐसा सपना देखा जिसने उन्हें कभी सोने नहीं दिया. उनके अंदर अब नौकरी की ललक और कुछ कर गुजरने की चाहत का वो उबाल था जिसके सामने बुरी परिस्थितियां घुटने टेकने लगीं. सतीश कुमार ने बताया कि 2022 में सीजीएल की परीक्षा में परचम लहराते हुए अपने परिवार का नाम रोशन कर दिया.
नहीं मानी हार और पा ली सफलता
सतीश कुमार का कहना है है कि जब भी उनके मन में नकारात्मक भावना आती तो वह यूपीएससी टॉपर सम्यक जैन की जिंदगी को याद कर लेते. उनकी जिंदगी की कहानी से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला. उन्होंने बताया कि मन में एक ही ख्याल रहता था कि जब सम्यक जैन इतनी विपत्ति के बाबजूद टॉप कर सकते हैं तो वह क्यों नहीं. इसी जज्बे के साथ सतीश तैयारी में जुटे रहे.
उनकी मां ने उनका बहुत साथ दिया, वह हर कदम पर अपने बेटे के साथ खड़ी रहीं. अपनी शारीरिक हालत के साथ साथ सतीश आर्थिक तंगी से भी लड़ते रहे. उन्होंने अपने संघर्ष के बारे में बताते हुए कहा कि, हालात कभी-कभी इतने बुरे और दयनीय जाते थे कि उन्हें दो-दो दिन भूखे रहना पड़ता था. उन्होंने आगे कहा कि, तमाम विपत्तियों के बावजूद वह ईश्वर के शुक्रगुजार हैं. ईश्वर ने उन्हें इतना कुछ दिया है कि देश और अपने जिला का नाम रोशन कर सकते हैं.