विश्व में अन्टार्कटीका को छोड़ कर कछुआ की 360 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमे से 29 प्रजातियां भारत में पाई जाती है. हालांकि कई कछुओं की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है जिस कारण राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिक एवं संरक्षण समितियों ने रेड लिस्ट व वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत इन्हें अतिसंरक्षित जीव की लिस्ट में रखा है।
बगहा में दुर्लभ प्रजाति का गुलाबी कछुआ: इन्हीं में से एक विलुप्त प्रजाति का एक इंडियन टेंट टर्टल शुक्रवार को वाल्मीकिनगर में देखा गया. इंडो नेपाल सीमा अंतर्गत वाल्मीकिनगर के 9 आरडी पर मिले इस विलुप्त प्रजाति के कछुए को आज से पांच वर्ष पूर्व नर्मदा नदी के तट पर देखा गया था. भारत , नेपाल और बांग्लादेश के स्वच्छ और खारे जल में अधिवास करने वाले गुलाबी रंग के कछुआ को देख लोग आश्चर्यचकित हैं।
विलुप्ति के कगार पर इंडियन टेंट टर्टल : वहीं यह वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के लिए एक सुखद खबर है. शुक्रवार को पाया गया इंडियन टेंट टर्टल अतिसंरक्षित जलीय जीव है और इसके तस्करी समेत घरों में रखने पर पाबंदी है. कछुओं की बढ़ रही तस्करी और व्यापार से कछुओं की संख्या लगातार कम होती जा रही है. इसके अलावा बढ़ता जल प्रदूषण भी इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहा है. इस गुलाबी कछुआ को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी और सभी इस कछुए को देख कर कह उठे कि यह हेमा मालिनी से भी ज्यादा बढ़िया चाल में चलता है।
वैज्ञानिक नाम ‘पंगशुरा टेंटोरिया’: यही वजह है की भारत में दर्जनों कछुओं की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है. इंडियन टेंट टर्टल का वैज्ञानिक नाम ‘पंगशुरा टेंटोरिया’ है जो ‘जियोमीडिडे’ परिवार की कछुए की एक प्रजाति है. भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के विशेषज्ञों के मुताबिक नर्मदा नदी में अवैध रेत खनन और तस्करी के चलते इंडियन टेंट टर्टल विलुप्त होने की कगार पर है।
‘इंडियन पिंक्ड रिंग टेंट टर्टल’ नाम से भी जाना जाता है: इंडियन टेंट टर्टल जिसके शरीर पर गुलाबी रंग का उभार होने के कारण इंडियन पिंक्ड रिंग टेंट टर्टल के नाम से भी जाना जाता है, यह भारत में नर्मदा नदी, गंगा नदी समेत नारायणी गंडकी में पाया जाता है. प्राकृतिक स्वच्छता कर्मी कहलाने वाले ये कछुए काई और शैवाल आदि खाकर जीवित रहते हैं और पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं. इसके अलावा ये कछुआ छोटे छोटे जीव जैसे केंचुआ , क्रिकेट इत्यादि को खाकर सैकड़ों वर्ष तक जीवित रहते हैं।
पौराणिक महत्व: कछुआ का पौराणिक महत्व भी है क्योंकि इसे भगवान विष्णु की सवारी माना जाता है. भगवान विष्णु ने कच्छप का अवतार भी लिया था. नतीजतन कई संस्कृतियों में, कछुआ लंबी उम्र, सुरक्षा और समृद्धि का प्रतीक है. इसलिए कछुए को अक्सर शुभ और भाग्यशाली माना जाता है. कुछ लोग कछुओं को पालते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सौभाग्य लाते हैं।
‘वीटीआर में गुलाबी कछुआ मिलना सुखद खबर’: भारत में, कछुओं को पालने के लिए कुछ कानूनी प्रतिबंध है. भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसार, भारत की मूल प्रजातियों के कछुओं को पालना अवैध है. केवल विदेशी प्रजातियों के कछुओं को पालने की अनुमति है.वन्य जीव विशेषज्ञ वीडी संजू ने खुशी जाहिर करते हुए कहा की वीटीआर में इंडियन टेंट टर्टल का मिलना काफी सुखद खबर है क्योंकि यह नेपाल और बांग्लादेश के अलावा भारत के कुछ नदियों में पाया जाता है।
“शुक्रवार को यह वाल्मीकिनगर के 9 आरडी पर पाया गया जिसके ऊपर गुलाबी धारियां हैं और यह देखने में काफी खूबसूरत है. जिन बच्चों को यह कछुआ दिखा था उन्होंने वापस नदी में छोड़ दिया. इस तरह के विलुप्त हो रहे वन्य जीवों की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है.”- वी डी संजू, संरक्षक वाल्मीकि वसुधा व वन्य जीवों के जानकार