चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट में आज से सुनवाई शुरू, 5 जजों के सामने है केस

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सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की एक संविधान पीठ ने राजनीतिक दलों को चंदे के लिए 2018 में लाई गई ‘चुनावी बॉन्ड’ योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार से सुनवाई शुरू कर दी है। सरकार ने यह योजना 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित की थी। इस योजना को राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने की कोशिशों के हिस्से के रूप में पार्टियों को कैश डोनेशन के एक विकल्प के रूप में लाया गया है। इस योजना के प्रावधानों के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड भारत का कोई भी नागरिक या भारत में स्थापित संस्था खरीद सकती है। कोई व्यक्ति, अकेले या अन्य लोगों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है।

4 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी कोर्ट

चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच 4 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) की याचिकाएं शामिल हैं। बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा हैं। सुनवाई से पहले, अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कोर्ट में दाखिल की गई एक दलील में कहा है कि राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड योजना के तहत मिलने वाले चंदे के स्रोत के बारे में नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत सूचना पाने का अधिकार नहीं है। वेंकटरमणी ने सियासी फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना से राजनीतिक दलों को ‘क्लीन मनी’ मिलने का जिक्र करते हुए यह कहा।

याचिकाओं पर फैसला करेगी 5 जजों की बेंच

वेंकटरमणी ने कहा कि तार्किक प्रतिबंध की स्थिति नहीं होने पर ‘किसी भी चीज और प्रत्येक चीज’ के बारे में जानने का अधिकार नहीं हो सकता। अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा,‘जिस योजना की बात की जा रही है वह अंशदान करने वाले को गोपनीयता का लाभ देती है। यह इस बात को सुनिश्चित और प्रोत्साहित करती है कि जो भी अंशदान हो, वह काला धन नहीं हो। यह कर दायित्वों का अनुपालन सुनिश्चित करती है। इस तरह, यह किसी मौजूदा अधिकार से टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं करती।’ कोर्ट ने 16 अक्टूबर को कहा था कि चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब 5 जजों की बेंच फैसला करेगी।

‘चुनावी बॉन्ड के जरिए 12000 करोड़ रुपये मिले’

विषय में जनहित याचिका दायर करने वाले एक याचिकाकर्ता ने मार्च में कहा था कि चुनावी बॉन्ड के जरिये पार्टियों को अब तक 12000 करोड़ रुपये मिले हैं और इसका दो-तिहाई हिस्सा एक बड़ी पार्टी के खाते में गया। सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी 2020 को 2018 की चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और योजना पर स्थगन का अनुरोध करने संबंधी गैर सरकारी संगठन (NGO) की अंतरिम अर्जी पर केंद्र एवं निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा था। केवल जन प्रतिनधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत रजिस्टर्ड पार्टियां और पिछले लोकसभा चुनाव या राज्य विधानसभा चुनाव में पड़े कुल मतों का कम से कम एक पर्सेंट वोट हासिल करने वाले दल ही चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने के पात्र हैं।

केंद्र और चुनाव आयोग का अलग-अलग रहा है रुख

अधिसूचना के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड को एक अधिकृत बैंक खाते के जरिये ही सियासी पार्टियां कैश में तब्दील कराएंगी। केंद्र और निर्वाचन आयोग ने पूर्व में कोर्ट में एक-दूसरे से उलट रुख अपनाया है। एक तरफ जहां सरकार चंदा देने वालों के नामों का खुलासा नहीं करना चाहती, वहीं दूसरी ओर निर्वाचन आयोग पारदर्शिता की खातिर उनके नामों का खुलासा करने का समर्थन कर रहा है।

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