Voice Of Bihar

खबर वही जो है सही

यहां माता के घुटनों की होती है पूजा, खीर-पूरी और मांस-मदिरा का भी लगता है भोग

GridArt 20241007 225549876 jpg

जयपुर : देशभर में नवरात्रि धूम-धाम से मनाई जा रही है. माता के मंदिरों में भक्त दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. इसी क्रम में जयपुर के जोबनेर में पहाड़ी पर करीब 700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ज्वाला माता के मंदिर में भी नवरात्र पर आस्था का सैलाब उमड़ रहा है. इस स्थान पर माता की ब्रह्म और रुद्र दोनों स्वरूप में पूजा की जाती है. सात्विक स्वरूप में जो भक्त देवी की पूजा करते हैं, वे खीर, पूड़ी, चावल, पुए-पकौड़ी और नारियल आदि का माता को प्रसाद चढ़ाते हैं. वहीं, रुद्र स्वरूप में माता को मांस-मदिरा का भोग भी चढ़ाया जाता है. यहां हर वर्ष नवरात्र में देश के कोने-कोने से माता रानी के दर्शन करने लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और माता के दर्शन कर भक्त उनसे अपनी मुरादें मांगते हैं।

ज्वाला माता मंदिर में घुटने की होती है पूजा

जोबनेर में पहाड़ी पर विराजमान मां ज्वाला के मंदिर में नवरात्रों में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा है. मंदिर के पुजारी मनीष पारीक बताते हैं कि राजा दक्ष ने यज्ञ किया और यज्ञ में भगवान शिव को नहीं बुलाया तो सती नाराज होकर यज्ञ में कूद गईं. भगवान शिव सती का जला हुआ शरीर लेकर क्रोधित होकर तांडव करने लए. ऐसे में उन्हें शांत करने के लिए विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से देवी सती के 51 टुकड़े कर दिए. इसमें पहाड़ी पर सती का घुटना गिर गया, इसलिए यहां सती के घुटने की पूजा की जाती है. ज्वाला माता पार्वती का ही स्वरूप है. जोबनेर की ज्वाला माता के स्थान को हिमाचल प्रदेश के ज्वाला माता शक्तिपीठ की उपपीठ भी माना जाता है।

पहाड़ी से निकला देवी का घुटना

मंदिर के पुजारी निर्मल पाराशर बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास करीब 1300 साल पुराना है. उस समय जोबनेर गांव पहाड़ी के दक्षिण हिस्से में बसा हुआ था और पहाड़ी के आसपास घना जंगल था. एक ग्वाला जंगल में अपनी गायें चरा रहा था. तभी देवी के प्रकट होने की आकाशवाणी हुई, लेकिन जब देवी प्रकट हुई तो उस समय हुई घोर गर्जना की आवाज से ग्वाला डर गया और पहाड़ी से देवी का केवल घुटना ही निकला. इसी घुटने पर मुख का स्वरूप बनाकर आज भी इस घुटने की ही पूजा की जाती है।

श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण

जोबनेर की पहाड़ी में बसे प्राचीन ज्वाला माता का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. लोग नौकरी लगने से लेकर संतान प्राप्ति सहित अनेक प्रकार की मुरादें लेकर मां ज्वाला के पास आते हैं. यहा हर साल माता के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु दूर दराज से आते हैं. मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु माता के दरबार में रात्रि जागरण व सवामणी भी करते हैं. मध्य प्रदेश से आए सतीश ने बताया कि ज्वाला माता उनकी कुलदेवी हैं. बच्चे के मुंडन के लिए भी आते हैं. माता रानी में उनके परिवार की बहुत श्रद्धा है. शादी होने पर भी आशीर्वाद लेने माता रानी के पास आते हैं।

नवरात्र में मंदिर समिति करती है व्यवस्था

नवरात्र में मंदिर समिति की ओर से हर साल मेले का आयोजन किया जाता है. साथ ही सामाजिक संगठनों की ओर से मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठंडे पानी, छाछ, लस्सी आदि की व्यवस्था भी निःशुल्क की जाती है. अलवर निवासी रेखा सिंह की मान्यता है कि उन्होंने माता के मंदिर में जो भी मुरादे मांगी, वह पूरी हुईं हैं. लोग अपनी मन्नतें लेकर यहां आते हैं और माता रानी से आशीर्वाद लेते हैं. गुलशन कुमार बताते हैं कि माता रानी के दरबार में आते रहते हैं. माता रानी के दरबार में आने से उन्हें सुकून मिलता है।

मंदिर बनने के बाद आगे बसा गांव

बताया जाता है कि जिस पहाड़ी पर आज ज्वाला माता का मंदिर है, पहले उस पहाड़ी के दक्षिण में जोबनेर गांव बसा हुआ था. बाद में जब माता का मंदिर बना तो मंदिर के उत्तर में गांव का विस्तार हुआ. आज पहाड़ी के आसपास घना आबादी क्षेत्र और मुख्य बाजार है. मुख्य बाजार से माता के मंदिर की तरफ जाने वाले रास्ते पर प्रसाद और खिलौनों का बाजार सजा मिलता है. पहाड़ी पर चौपहिया वहां ले जाने के लिए एक रास्ता भी बनना प्रस्तावित है।


Discover more from Voice Of Bihar

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Discover more from Voice Of Bihar

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading