सासाराम। बिहार के हिमांशु कुमार ने प्राचीन मंडला कला को आधुनिक स्पर्श देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दिलाई है। हजारों साल पुरानी इस परंपरागत कला को आधुनिक डिजाइन और 3डी प्रभाव के साथ प्रस्तुत कर हिमांशु ने न केवल बिहार की मिट्टी से जुड़ाव दिखाया है, बल्कि वैश्विक मंच पर राज्य का नाम भी रोशन किया है।
मंडला कला से मिली नई उड़ान
मूल रूप से प्राचीन बौद्ध परंपरा से जुड़ी मंडला कला को हिमांशु ने आधुनिक तकनीक और एक्रेलिक रंगों के जरिये नया रूप दिया है। भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान एक प्रोफेसर से इस कला से परिचय होने के बाद हिमांशु ने यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना और ब्रिटेन के शैक्षणिक संस्थानों से ऑनलाइन प्रशिक्षण लिया और इस कला को वैज्ञानिक और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से समझा।
क्या है मंडला आर्ट?
हिमांशु के अनुसार, मंडला आर्ट एक ज्यामितीय डिजाइन पर आधारित कला है, जो केंद्र बिंदु से फैलती हुई विभिन्न आकृतियों का निर्माण करती है। संस्कृत शब्द ‘मंडल’ का अर्थ है वृत्त या चक्र। यह कला मानसिक शांति, ध्यान केंद्रित करने और आत्मिक विकास में मदद करती है। आज यह ध्यान, विश्राम और कला-चिकित्सा के तौर पर दुनियाभर में लोकप्रिय हो रही है।
तनाव दूर करने में कारगर है मंडला आर्ट थेरेपी
हिमांशु बताते हैं कि मंडला आर्ट थेरेपी तनाव और चिंता को कम करने में बेहद प्रभावी है। एकाग्रता और बारीकी से काम करने के चलते यह नकारात्मक विचारों को दूर कर मानसिक संतुलन बनाती है। कई शोधों में पाया गया है कि मंडला आर्ट से कॉर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर घटता है, जिससे नींद में सुधार और मानसिक शांति मिलती है।
पारंपरिक से आधुनिक तक का सफर
जहां पहले मंडला आर्ट को प्राकृतिक रंगों और चावल से बनाया जाता था, वहीं हिमांशु ने इसे एक्रेलिक पेंट्स और मल्टी लेयर तकनीक के जरिए 3डी विजुअल इफेक्ट में ढाला है। उनकी पेंटिंग्स न केवल खूबसूरत दिखती हैं, बल्कि गहराई और आध्यात्मिक ऊर्जा का भी अनुभव कराती हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिखेरा जादू
हिमांशु के मंडला आर्टवर्क अब अमेरिका, ब्रिटेन और म्यांमार जैसे देशों में भी लोकप्रिय हो रहे हैं। वे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के जरिये अपनी पेंटिंग्स की बिक्री कर रहे हैं। उनकी एक-एक पेंटिंग की कीमत लाखों रुपये तक पहुँच चुकी है। हिमांशु का सपना है कि मंडला आर्ट को वैश्विक स्तर पर बिहार की एक अनमोल धरोहर के रूप में स्थापित किया जाए।
संघर्ष से सफलता तक का सफर
हिमांशु ने बताया कि शुरुआती दिनों में उनके परिवार ने इस कला को गंभीरता से नहीं लिया। पिता ने इस प्रयास को ‘बेकार की बर्बादी’ बताया था, लेकिन हिमांशु ने हार नहीं मानी। तीन साल की मेहनत के बाद आज उनकी मेहनत का फल मिल रहा है और दुनिया भर से उनकी पेंटिंग्स की मांग हो रही है।
बिहार की मिट्टी से जुड़ी मंडला कला
हिमांशु का कहना है कि मंडला आर्ट बिहार की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही है, जिसे आज भी वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने की जरूरत है। वह स्थानीय स्तर पर इस कला को बढ़ावा देने के लिए युवाओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं। हिमांशु को बिहार सरकार के उद्योग विभाग से भी सहायता मिली है ताकि इस पारंपरिक कला को रोजगार के अवसर से जोड़ा जा सके।
“यह कला हमारी जड़ों से जुड़ी है। नई पीढ़ी को इसे अपनाना चाहिए और इस पर गर्व करना चाहिए। मंडला आर्ट को बिहार से वैश्विक पहचान दिलाना मेरा मिशन है।” – हिमांशु कुमार, मंडला आर्टिस्ट