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ऑटो रिक्शा चालक कैसे बना भारत का प्रसिद्ध शिक्षक

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पटना: अब किसी के सपने अधूरे नहीं रहते हैं। इस अधूरेपन में आर्थिक कमजोरी बाधा नहीं बनती, इसके लिए मसीहा बनकर खड़े हुए हैं गणितज्ञ आर के श्रीवास्तव, असहायों के सहाय बनकर मात्र 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर बनाते हैं IITIAN।

हम बात कर रहे हैं एक ऐसे शिक्षक की जिसके शैक्षणिक आंगन से 1 रुपया में पढ़कर स्टूडेंट्स बनते हैं IITIAN, वो कोई और नहीं, वो हैं बिहार की मिट्टी से विश्व में अपनी पहचान कायम करने वाले “मैथमेटिक्स गुरु आर.के. श्रीवास्तव”। स्ट्रगल कर, गरीबी को बहुत करीब से झेलने वाले इस मैथेमेटिक्स गुरु ने पैसा को कभी अहमियत नहीं दी और अपने दर्द को याद कर नई पीढ़ी के बच्चों के मसीहा बनकर उभरे हैं आर के श्रीवास्तव।

शैक्षणिक जगत में एक कहावत काफी चर्चित हो चुकी है कि इंसानियत की मिसाल बनना है तो मैथमेटिक्स गुरु आर.के. श्रीवास्तव जैसा बनो। हमेशा समाज हित में कार्य करने वाला एक व्यक्तित्व उभरा और देश ने उसे सहज स्वीकार किया।

इतिहास रचे जाते हैं, उसी तरह शिक्षक प्रकृति प्रदत्त प्रसाद का स्वरूप होता है। वह बनाया नहीं जाता बल्कि पैदा होता है। ईमानदार कोशिश और लगन ने प्रकृति की ऐसी ही एक रचना को रच डाली जो अपने कुल खानदान का नाम रौशन करते हुए कई घरों की रौशनी बनकर उभरे हैं रजनीकांत श्रीवास्तव उर्फ आर.के.श्रीवास्तव।

बिहार देश में अनूठा एकेडमिक्स

बिहार देशभर में अनूठे एकेडमिक्स के रूप में सदियों से जाना जाता है। आर्यभट्ट, चाणक्य, परशुराम, गणितज्ञ बशिष्ठ नारायण सिंह के अलावे नई पीढ़ी के लिए वरदान साबित हो रहे हैं मैथेमेटिक्स आर.के. श्रीवास्तव। इनके पढ़ाने के तरीके ने ऐसी लकीर खींच दी है कि पूरी दुनिया उनके शैक्षणिक कार्यशैली के लिए सलाम करती है। जिनके बारे में शायद ही कोई ऐसा होगा जो नहीं जनता होगा इन्हें। सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा प्रोग्राम के तहत सैकड़ों निर्धन स्टूडेंट्स को पढ़ाकर इंजीनियर बना चुके हैं और ये सिलसिला आगे भी जारी है।

1 रुपया वाले गुरु जी

दुनिया के मानचित्र पर मैथेमेटिक्स गुरु आर.के. श्रीवास्तव का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। विश्व के चर्चित शिक्षकों में शुमार आर के श्रीवास्तव, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में आज के आर्थिक युग में मात्र 1 रुपया में क्रांतिकारी परिवर्तन का सूत्रपात कर एक लंबी लकीर खींच दी है। इस बात की चर्चा देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों में इनके शैक्षणिक कार्यशैली की चर्चा होते रहता है।

गरीबों के मसीहा हैं आर के श्रीवास्तव

अपनी ज़िंदगी मे हर कदम पर संघर्ष करने वाले, संयुक्त परिवार के इकलौते खेवनहार आर. के.श्रीवास्तव बिहार में एक ऐसे मैथमेटिक्स गुरु हैं जो गरीब बच्चों को महज 1 रुपए में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाते हैं। यही नहीं करीब 950 बच्चे को अब तक इंजीनियर बना चुके हैं। बिहार के रोहतास जिले के विक्रमगंज के रहने वाले 35 वर्षीय आर.के.श्रीवास्तव के विश्व प्रसिद्ध गूगल ब्वॉय कौटिल्य भी छात्र हैं।

आरके श्रीवास्तव 2008 से ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई करा रहे हैं। उन्होंने अपना नाम ऐसा बनाया कि गूगल पर मैथमेटिक्स गुरु सर्च करने पर सबसे ऊपर उनका ही नाम आता है। आरके विक्रमगंज (रोहतास) के अलावा पटना में भी ‘1 रुपए गुरु दक्षिणा प्रोग्राम’ भी चलाते हैं।

किसी ने सोचा भी नहीं था कि एकदिन गांव की पगडंडियों से निकलकर एक साधारण युवा असाधारण मैथेमेटिक्स गुरु बनकर देश-दुनिया के लिए प्रेरणा बन जाएंगे, लाखों स्टूडेंट्स की उम्मीद की किरण बन जाएंगे और इसे उन्होंने सिद्ध कर दिखाया। अपनी कार्यशैली से वो खुद एक संदेश बन चुके हैं। लेकिन ऐसा अक्सर देखा जाता है कि जो अभाव में रहते हैं वही दुनिया के मानचित्र पर अपनी विद्वता के बूते कृति स्थापित कर चुके हैं। ऐसे ही एक आम लड़के या यों कहें ऑटो चालक से गणितज्ञ बनने का सफर तय किया जो आगे चलकर एक इतिहास पुरुष बन जाएंगे ये किसे पता था। पर, ऐसा ही हुआ युवा गणितज्ञ आर के श्रीवास्तव के साथ। कल तक जो गांव की दहलीज तक सिमटे रहने वाले आर के श्रीवास्तव दुनिया के मानचित्र पर छा गए। खुद मुफलिसी में जिंदगी गुजारने वाले आर के श्रीवास्तव गरीब और असहाय स्टूडेंट्स को 1 रूपया गुरु दक्षिणा लेकर इंजीनियर बनाने को संकल्पबद्ध हैं। आर के श्रीवास्तव अबतक 950 स्टूडेंट्स को आआइटियन बना चुके है और आगे भी आईआईटियन का कारवां निरंतर जारी है।

जिंदगी के कई पहलुओं को बहुत करीब से देखने और महसूस करने वाले आरके श्रीवास्तव ने अपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। मगर किसी भी परिस्थिति से हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य पर चलते हुए एकदिन अपने मुकाम को पाने में कामयाब हुए। राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री सहित कई चर्चित हस्तियां इनके शैक्षणिक कार्यशैली की प्रशंसा कर चुके है। आरके श्रीवास्तव ने अपने घर को चलाने के लिए ऑटो रिक्शा तक चलाया। दरअसल इनके घर की माली हालत बहुत नाजुक थी। बाल्यावस्था में ही इनके पिता का निधन हो गया, बड़े भाई ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली, तब आरके बहुत छोटे थे। जब बड़े हुए तो पढ़ाई करना और बड़े भाई जब थक हारकर जाते थे तो आरके ऑटो लेकर सड़कों पर कमाने निकल जाते थे। घर कि स्थिति में थोड़ी सुधार होने लगी। मगर आर.के.श्रीवास्तव ने अपनी पढ़ाई के आगे कभी हार नहीं मानी। जिस क्लास में पढ़ते थे उसी क्लास के लड़कों को मैथेमैटिक्स पढ़ाने लगे। जब आमदनी होने लगी तो परिवार चलाने में सपोर्टिव साबित हुए।

मगर क्या बताउं होनी को कुछ और ही मंजूर था। जब घर की जिम्मेदारी पटरी पर लौटने लगी तो आरके श्रीवास्तव के बड़े भाई का असमय निधन हो गया। एकबार फिर से घर पर विपत्ति का पहाड़ टूट गया। सारी उम्मीदों पर पल में पानी फिर गया। बिखरते परिवार पर जब नजर पड़ी आरके की तो उन्होंने हिम्मत बांधते हुए घर की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर आगे निकल पड़े। इस बूरे दौर में उनकी पढ़ाई ही इनके लिए वरदान साबित हुई और आगे चलकर गांव की सोंधी गमक लिए आरके श्रीवास्तव दुनिया में मैथेमैटिक्स गुरु के रूप में उभरकर सामने आकर छा गए।

 


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Kumar Aditya

Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.

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