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साइकिल चलाने वाला चांद पर कैसे पहुंचा? ISRO चीफ ने अपनी आत्मकथा में खोले निजी जिंदगी के राज

BySumit ZaaDav

अक्टूबर 26, 2023
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देश को चांद पर पहुंचाने वाले शख्स के नाम से सभी वाकिफ हैं, लेकिन क्या आप उनके बारे में, उनकी निजी जिंदगी के बारे में जानते हैं? शायद नहीं, लेकिन अब जान जाएंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष S. सोमनाथ पूरी दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। इस शख्स ने करोड़ों-अरबों के प्रोजेक्ट चंद्रयान को सफल बनाकर इतिहास में देश का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवाया है, जबकि वे कभी खुद टूटे फूटे मकान में रहते थे। कॉलेज तक जाने के लिए जेब में पैसे तक नहीं होते थे, इन बातों का खुलासा उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है, जो जल्दी ही लोगों को पढ़ने के लिए मिलेगी। उन्होंने आत्मकथा लिखी, ताकि नौजवान उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें।

नौजवानों को प्रेरित करने को लिखी आत्मकथा

इसरो चीफ ने अपनी निजी जिंदगी से जुड़ी कई बातें आत्मकथा में लिखी हैं। वे बातें, जिनके बारे में अब तक उनके अलावा कोई नहीं जानता। उनके दिल के करीब उन 4 लोगों का जिक्र भी है, जिन्होंने उन्हें इसरो चीफ बनाया। आत्मकथा मलयालम में लिखी गई है, जिसका नाम है ‘निलावु कुदिचा सिम्हांगल’, जो इसरो चीफ के संघर्षों, हिम्मत और जज्बे की कहानी है कि कैसे एक छोटे से गांव में, टूटे फूटे घर में तंगहाली में जीवन बिताने वाला शख्स पहले इंजीनियर, फिर इसरो चीफ और चंद्रयान प्रोजेक्ट का इंचार्ज बन दुनियाभर में कामयाब हुआ। चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता ने उन्हें आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित किया, ताकि नौजवानों को उनके जीवन से प्रेरणा मिले और वे भी एक मुकाम पर पहुंचकर देशसेवा में अपना योगदान दे सकें।

4 करीबी लोगों का आत्मकथा में खास जिक्र

केरल में लिपि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इसरो चीफ की आत्मकथा नवंबर में रिलीज होगी और उसके बाद मार्केट में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। ISRO चीफ ने इसमें लिखा कि एक समय ऐसा था, जब रहने के लिए उनके पास ढंग का मकान नहीं था। वे हॉस्टल की फीस और दूसरे खर्चे जुटाने के लिए बस की बजाय खटारा साइकिल से कॉलेज आया-जाया करते थे। PTI को दिए इंटरव्यू में सोमनाथ ने बताया कि उनकी आत्मकथा वास्तव में एक साधारण से युवक की कहानी है, जो गांव में रहता था। जिसे रास्ता दिखाने वाला नहीं था। भला हो एक शख्स जिसने इंजीनियरिंग कोर्स का फार्म लाकर दे दिया, जिसे उन्होंने भर दिया और किस्मत से दाखिला भी मिल गया। इसरो चीफ के करीबी 4 लोगों का जिक्र इस आत्मकथा में किया गया है।

 


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