एनसीआर सहित उत्तर भारत के अन्य राज्यों में भी हाल फिलहाल कड़ाके की ठंड से राहत मिलने के कोई आसार नहीं हैं। बीच-बीच में तापमान में गिरावट या वृद्धि भले होती रहे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सर्दी जा रही है। ठिठुरन भरी ठंड इस बार फरवरी के मध्य तक रह सकती है।
अबकी बार बदला हुआ है मौसम का पैटर्न
विज्ञानियों के अनुसार, मजबूत पश्चिमी विक्षोभों के आने से अबकी बार मौसम का पैटर्न थोड़ा बदला हुआ है। हवाएं मंद चल रही हैं, नमी 90 प्रतिशत तक बनी हुई है। बरसात भी नहीं हो रही। इसके चलते दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश में मध्यम से घने कोहरे की स्थिति बनी हुई है। बादल भी निचले स्तर पर बन रहे हैं।
इन्हीं सब कारणों से सूरज का ताप ढंग से धरती तक नहीं पहुंच पा रहा और कभी शीत दिवस (कोल्ड डे) तो कभी शीतलहर की स्थिति बनी हुई है। मौसम विज्ञानी बताते हैं कि इस स्थिति में अभी आगामी कुछ दिनों में भी बदलाव के संकेत नहीं हैं। इसके विपरीत 26 जनवरी के आसपास एक नया पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो रहा है। मैदानी क्षेत्रों में इसका सीधा असर तो नहीं होगा, लेकिन पहाड़ों पर बर्फबारी हो सकती है।
कब तक रहेगी कड़ाके की ठंड?
उत्तर पश्चिमी हवाओं के जरिये इस बर्फबारी की ठंडक फिर समूचे उत्तर भारत को कंपकंपा सकती है। 30-31 जनवरी को फिर एक और पश्चिमी विक्षोभ आने का पूर्वानुमान है। विज्ञानियों के मुताबिक अनुमान है कि इन परिस्थितियों के चलते ठिठुरन भरी ठंड का असर मध्य फरवरी तक भी बना रह सकता है। अगर कोल्ड डे अथवा शीतलहर वाली स्थिति फिर से बन जाए तो भी अतिश्योक्ति नहीं।
वर्षा हो जाए तो मौसम का पैटर्न बदल सकता है, लेकिन इस महीने तो ऐसी कोई संभावना लग नहीं रही। पीछे मुड़कर देखें तो पिछले वर्ष भी दिसंबर में न बर्फबारी हुई थी और न ही बरसात। इस साल भी कमोबेश वैसे ही हालत बन रहे हैं। अबकी बार तो दिसंबर क्या, जनवरी में भी वर्षा नहीं हुई। ठंड भी दिसंबर के बजाय जनवरी में ही जोरदार पड़ रही है और फरवरी तक जाने लगी है। मौसम चक्र के इस तरह आगे खिसकने के पीछे विज्ञानी जलवायु परिवर्तन के असर से भी इनकार नहीं करते।