भारत के महान आध्यात्मिक गुरू और सबसे बड़े यूथ आइकॉन स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्में स्वामी जी करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत हैं। उनके विचार और जोशीले भाषण हमेशा युवाओं को अपनी ओर प्रभावित करते हैं। स्वामी जी के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। ये लगभग सभी लोग जानते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि ये नाम किसकी देन है। दरअसल राजस्तान के खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें स्वामी विवेकानंद का नाम दिया था। स्वामी जी ने अजीत सिंह से पूछा कि आप किस नाम को पसंद करते हैं। इस पर अझीत सिंह ने कहा कि विवेकानंद होना चाहिए। बता दें कि जब स्वामी जी शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए जा रहे थे तो जो वेशभूषा उन्होंने धारण की वह भी राजा अजीत सिंह ने ही दी थी।
विवेकानंद की पढ़ाई
स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील थे और उनकी मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही पढ़ाई में अच्छे थे। उनकी पढ़ाई में रूचि थी। साल 1871 में 8 साल की आयु में उन्होंने स्कूल जाने के बाद 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। इस परीक्षा में उन्हें पहला स्थान मिला।
कब और कैसे सन्यासी बनें विवेकानंद
विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस थे। पहली बार दोनों की मुलाकात साल 1881 में कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में हुई थी। दरअसल इसी मंदिर में रामकृष्ण परमहंस माता काली की पूजा किया करते थे। इस दौरान दोनों की पहली बार मुलाकात हुई। रामकृष्ण परमहंस से मिलने पर स्वामी विवेकानंद ने उनसे सवाल किया कि क्या आपने भगवान को देखा है। तब परमहंस ने इसका हंसते हुए जवाब दिया कि हां मैंने देखा है। मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितने कि तुम्हें देख सकता हूं। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं। रामकृष्ण परमहंस से प्रभावित होकर मात्र 25 वर्ष की आयु में उन्होंने सबकुछ त्याग दिया और सन्यासी बन गए।
शिकागो का धर्म सम्मेलन
साल 1893 में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन शिकागो में किया गया। इस कार्यक्रम को लेकर दुनियाभर के लोगों ने तरह-तरह की तैयारियां की। इस दौरान स्वामी विवेकानंद भी वहां पहुंचे। साधारण कपड़े पहने विवेकानंद जब मंच पर आते हैं तो पूरा हॉल शांत था। अपने भाषण की शुरुआत वो अमेरिका के भाईयों और बहनों शब्द से करते हैं। इतना सुनना ही था कि पूरे हॉल में तालियां बजने लगी। अपने भाषण को पूरा करके जब वो स्टेज से हटने लगे तो लोगों ने खूब तालियां बजाई। एक रात में पूरे अमेरिका को पता चल गया था कि एक भारतीय सन्यासी अमेरिका आया और लोगों को अपना कायल बनाकर चला गया।