राजद, बीजेपी, जदयू बिहार में अकेले चुनाव लड़ा तो किसका पलड़ा होगा भारी, चमकेंगे चिराग या जलेगा तेजस्वी का लालटेन, आंकड़े दे रहे गवाही
सर्द मौसम में लालू यादव के बयान के बाद मचे घमासान से बिहार की सियासत गर्म हो चुकी है। नीतीश की पलटीमार पॉलिटिक्स की चर्चा भी जोरों पर है। लालू की हां और तेजस्वी की ना के बीच दिल्ली से लेकर पटना तक के पत्रकारों की जमात टीवी स्क्रीन से लेकर सोशल मीडिया के दरो-दीवार पर बिहार में सरकार गिरने बचाने और गिराने की की होड़ में जुट हुए हैं, सबका अपना अपना विश्लेषण है।
इन सब के बीच एक बड़ा सवाल है कि अगर जदयू बीजेपी और राजद अकेले अकेले विधानसभा चुनाव के मैदान में दो दो हाथ करने उतरें तो परिणाम का माजरा क्या होगा। पिछले कई विधानसभा चुनाव के आंकड़ों को टटोलती यह रिपोर्ट बताती है कि किसका पलड़ा भारी होगा. एक दूसरे का सियासी कंधा धरे बगैर सत्ता की कुर्सी तक किसकी पहुंच सम्भव है.
भाजपा और जदयू वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बिहार में बड़े स्तर पर चुनाव जीतने में सफल रहे. बिहार में 1999 में 54 सीटों के लिए चुनाव हुए थे. इसमें भाजपा ने 23 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं जदयू के खाते में 18 सीटें आई. तब भाजपा को 23.01 फीसदी वोट आया जबकि जदयू को 20.77 फीसदी वोट आया. वहीं राजद और कांग्रेस एक साथ चुनाव में उतरे थे. तब राजद को 7 सीटें आई और 28.29 फीसदी वोट आया. वहीं कांग्रेस को 4 सीटों पर जीत मिली और मात्र 8.81 फीसदी वोट आया.
वर्ष 2000 में लालू का जलवा
बिहार विधानसभा के 324 सदस्यों का चुनाव करने के लिए फरवरी 2000 में विधान सभा चुनाव हुए. तब राजद ने 124 सीटें जीती. लालू यादव की पार्टी को 28.34 फीसदी वोट मिला. वहीं एनडीए के बैनर तले भाजपा को 67 सीटों पर जीत मिली और 14.64 फीसदी वोट आया. वहीं जदयू के खाते में 27 सीटें आई जबकि 8.65 फीसदी वोट आया. वहीं कांग्रेस ने 23 सीटों पर जीत हासिल की और 11.06 फीसदी वोट हासिल किया.
2005 में नीतीश का करिश्मा
झारखंड के अलग होने के बाद अक्टूबर 2005 में हुए 243 सीटों के विधानसभा चुनाव में जदयू को 88 सीटें आई जबकि भाजपा को 55 सीट मिले. जदयू के पास 20.46 फीसदी वोट आया वहीं भाजपा के खाते में 15.65 फीसदी वोट आया. राजद को तब मात्र 54 सीटों पर सफलता मिली और 23.45 फीसदी वोट आया.
वर्ष 2010 में जदयू की सबसे बड़ी जीत
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने बड़ी सफलता हासिल की. तब जदयू ने 115 सीटों पर अकेले जीत हासिल की. साथ ही सबसे ज्यादा 22.58 फीसदी वोट भी मिला. वहीं भाजपा को 91 सीटों पर जीत मिली और 16.49 प्रतिशत वोट मिला. राजद को तब मात्र 22 सीटों पर जीत मिली और 18.84 फीसदी वोट आया.
लालू-नीतीश का चला सिक्का
विधानसभा चुनाव 2015 में राजद और जदयू एक साथ चुनाव में उतरे. राजद ने सर्वाधिक 80 सीटें जीती और 18.4 फीसदी वोट हासिल किया. वहीं जदयू भी 71 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही जबकि 16.8 फीसदी वोट मिला. वहीं नीतीश के अलग होते ही भाजपा को बड़ा झटका लगा. 53 सीटों पर सिमटने के साथ ही पार्टी को सिर्फ 24.4 फीसदी वोट आया.
तेजस्वी का दम, नीतीश बने सीएम
एनडीए में वापसी के साथ ही नीतीश कुमार और भाजपा फिर से 2020 के चुनाव में एक साथ उतरे. हालाँकि राज्य में सबसे ज्यादा 75 सीटों पर राजद ने जीत हासिल की. लालू के बेटे तेजस्वी यादव इस चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करते दिखे और 23.11 फीसदी वोट हासिल किया. वहीं सत्ता में फिर से एनडीए की वापसी हुई जिसमें भाजपा को 74 सीटों पर जीत मिली. 19.46 फीसदी वोट आया. जदयू को मात्र 43 सीटों पर जीत मिली और वोट प्रतिशत भी घटकर 15.39 फीसदी हो गया.
कांग्रेस का प्रदर्शन
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2000 में 23 सीटें जीती. फरवरी 2005 में 10, अक्टूबर 2005 में 9, वर्ष 2010 में 4, वर्ष 2015 में 27 और वर्ष 2020 में 19 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही. इसमें अक्टूबर 2005, 2015 और 2020 में कांग्रेस ने राजद के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा.
चिराग, मांझी और उपेंद्र का प्रभाव
चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में रहने के दौरान उनके दलों की ताकत बढ़ जाती है. वहीं अकेले चुनाव में उतरे तो कुछ सीटों पर वोटकटवा से ज्यादा सफलता नहीं मिलती. पिछले विधानसभा चुनाव में भी चिराग की लोजपा ने जदयू के खिलाफ उम्मीदवारों को उतारा तो नीतीश को झटका जरुर लगा लेकिन लोजपा को सफलता नहीं मिली.