बिहार के लिए यह चुनावी साल है। ऐसे में इसको लेकर न सिर्फ राजनीतिक पार्टी बल्कि चुनाव आयोग भी एक्टिव मोड में काम कर रही है। इसी कड़ी में चुनाव आयोग के द्वारा वोटर आईडी कार्ड को आधार से जोड़ने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन, अब खबर यह है कि आयोग के इस निर्णय को कुछ मतदाता मानने से इनकार भी कर रहे हैं। अब इसी को लेकर आयोग ने एक प्लान तैयार किया है।
आयोग के अनुसार, यदि कोई वोटर अपना मतदाता पहचान पत्र आधार से लिंक नहीं करवाता है तो उसे इसके पीछे की वजह बतानी होगी। आयोग के अनुसार आगामी विधानसभा चुनावों में मतदाता यदि अपनी आधार संख्या चुनाव आयोग (EC) को देने से इनकार करते हैं तो उन्होंने इसके वाजिब कारण बताने होंगे। इसके लिए उन्हें निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ सकता है।
मालूम हो कि, चुनाव आयोग द्वारा अदालत में यह भी कहा है कि आधार संख्या का खुलासा स्वैच्छिक है। यह प्रस्ताव पिछले हफ्ते चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों और गृह मंत्रालय, विधि मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और यूआईडीएआई (UIDAI) के प्रतिनिधियों के बीच एक उच्च स्तरीय बैठक में चर्चा के बाद सामने आया है।
बताया जा रहा है कि यह प्रस्ताव आगामी विधानसभा चुनावों से पहले लागू हो सकता है। इस बदलाव के बाद यदि कोई मतदाता आधार संख्या प्रदान करने से इनकार करता है तो उसे ईआरओ के समक्ष जाकर यह स्पष्ट करना होगा कि उसने आधार क्यों नहीं दिया। यह कदम चुनाव आयोग की सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए मामले G Niranjan Vs Election Commission of India में दी गई शपथ पत्र की पुष्टि करने के लिए उठाया गया है।
इधर, इस मामले में चुनाव आयोग ने कोर्ट को सूचित किया था कि वह चुनावी फार्म में स्पष्ट संशोधन करने की योजना बना रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मतदाता यह समझे कि आधार संख्या का खुलासा एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है। फिलहाल, फॉर्म 6B में मतदाताओं से आधार संख्या लेने का प्रावधान है। इसमें एक विकल्प है जिसमें लिखा होता है, “मैं आधार संख्या प्रदान नहीं कर सकता/सकती क्योंकि मेरे पास आधार नहीं है।” इस विकल्प को लेकर आपत्ति जताई गई थी, क्योंकि इसमें मतदाता को एक झूठा बयान देने पर मजबूर किया जाता था, यदि वे आधार संख्या नहीं देना चाहते थे।
अब फॉर्म 6B में यह विकल्प हटा दिया जाएगा। इसके बजाय एक नया विकल्प जोड़ा जाएगा जिसमें मतदाता को यह बताने का अवसर मिलेगा कि वह आधार संख्या देने के बजाय अन्य कोई वैकल्पिक दस्तावेज प्रस्तुत कर रहा है और फिर एक निश्चित तिथि पर ईआरओ के सामने उपस्थित होकर आधार न देने का कारण स्पष्ट करेगा। यह बदलाव केवल तभी लागू होगा जब चुनाव आयोग इसे विधिवत प्रस्ताव के रूप में केंद्र सरकार को भेजेगा और विधि मंत्रालय इसे अधिसूचना के माध्यम से मंजूरी देगा। यह संशोधन संभवतः बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लागू किया जा सकता है।