मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सरकारी आवास में इफ्तार पार्टी दे रहे हैं. जिसमें आम से खास सभी लोगों को आमंत्रण है. वैसे तो हर साल एक अणे स्थित सीएम आवास में इफ्तार पार्टी का आयोजन होता है और इफ्तार के बहाने बिहार में सियासी उठापटक के भी संकेत मिलते रहे हैं लेकिन चुनावी साल में वक्फ संशोधन बिल को लेकर मुस्लिम संगठनों के बहिष्कार की घोषणा ने उनकी टेंशन बढ़ा दी है.
वक्फ बिल के समर्थन से नाराज मुस्लिम संगठन:इस बार कुछ अलग दृश्य देखने को मिल सकता है, क्योंकि मुस्लिम संगठनों की ओर से सीएम नीतीश कुमार से नाराजगी व्यक्त की जा रही है और उनके द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी का बहिष्कार करने की बात भी कही जा रही है. मुस्लिम संगठनों का यह विरोध केंद्र सरकार की वक्फ संशोधन विधेयक को नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के समर्थन को लेकर बताया जा रहा है.
जमीयत उलमा-ए-हिंद का ऐलान: इमारत-ए-सरिया की ओर से कहा गया है कि बिहार के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दावत-ए-इफ्तार के बहिष्कार की घोषणा की है. इन संगठनों की ओर से नीतीश कुमार को पत्र भी लिखा गया है. पत्र लिखने वाले संगठनों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इमारत-ए-शरिया, जमीयत उलेमा हिंद, जमीयत अहले हदीस, जमात-ए-इस्लामी हिंद, खानकाह मुजीबिया और खानकाह रहमानी शामिल हैं.
नीतीश-चिराग का विरोध: वक्फ बिल को लेकर जमीयत उलेमा ए हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने तो फरमान जारी कर न केवल नीतीश कुमार बल्कि चन्द्र बाबू नायडू और चिराग पासवान की इफ्तार पार्टी का भी बहिष्कार करने के लिए फरमान जारी किया है और इसके कारण नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ गई हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हर साल रमजान के महीने में इफ्तार की दावत देकर मुस्लिम समाज को एक बड़ा मैसेज देते रहे हैं. इस साल खास है, क्योंकि विधानसभा का चुनाव कुछ महीने बाद ही होना है. बिहार में 17% के करीब मुसलमानों का वोट बैंक है और उस पर सबकी नजर है.
नीतीश कुमार से नाराज हैं मुस्लिम मतदाता: पिछले कुछ चुनाव से मुस्लिम वोटर नीतीश कुमार से नाराज हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव हो या फिर 2024 के लोकसभा चुनाव, दोनों में मुसलमानों ने अपनी नाराजगी दिखाई है. अब विधानसभा चुनाव होना है. कई सीटों पर मुस्लिम वोट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. नीतीश कुमार की चिंता है कि यदि मुस्लिम वोटर नाराज रहे तो उसका असर पड़ सकता है.
क्या कहते हैं जानकार?: राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ रहने के बाद भी मुसलमानों का वोट लेते रहे हैं, इसके पीछे की वजह कई विवादास्पद मुद्दों पर बीजेपी से अलग रुख अपनाना है लेकिन पिछले कुछ सालों से जेडीयू का वह तेवर नहीं है और मुसलमानों में इसको लेकर कहीं ना कहीं नाराजगी है. वक्फ बिल पर भी मुस्लिम संगठन चाहते हैं कि नीतीश कुमार इसके विरोध में फैसला लें लेकिन जेडीयू ने लोकसभा में समर्थन किया है और इसी से नाराजगी है.
“पहले बीजेपी के साथ में रहने के बावजूद नीतीश कुमार को अल्पसंख्यकों का वोट मिलता था लेकिन वक्फ संशोधन बिल समेत मुसलमानों से जुड़े कई मुद्दों को लेकर जेडीयू अब बीजेपी का खुलकर विरोध नहीं कर पाती है. ऐसे में जमीयत उलमा-ए-हिंद जैसे संगठनों के विरोध के कारण देखना होगा कि मुख्यमंत्री की इफ्तार पार्टी में कितने लोग आते हैं?”- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ
मुस्लिम संगठनों को मनाने की कोशिश: मुख्यमंत्री आवास में इफ्तार पार्टी में बिहार मुस्लिम संगठन के दिग्गज नहीं आते हैं तो एक मैसेज जरूर जाएगा, जिसकी चिंता नीतीश कुमार और जेडीयू के नेताओं को है. मुस्लिम नेताओं को लगातार मनाने की कोशिश नीतीश कुमार की तरफ से होती रही है. अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान को इसमें लगाया गया है. खुद नीतीश कुमार भी मुस्लिम संगठन के नेताओं से मिलते रहे हैं. ऐसे में देखना है कि मुस्लिम संगठन अपने बहिष्कार के फैसले पर कायम रहते हैं या नहीं?
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