अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में भारत के लिए वित्तीय वर्ष 2024-25 की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 7 फीसदी बनाए रखा है। हालांकि, IMF ने वैश्विक जोखिमों, विशेषकर वैश्विक रणनीति और आर्थिक अनिश्चितताओं के बारे में चेतावनी दी है, जो भविष्य की संभावनाओं पर असर डाल सकते हैं।
IMF की नवीनतम विश्व आर्थिक आउटलुक (WEO) जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की वृद्धि दर 6.5% तक धीमी हो सकती है। यह 2023 में दर्ज की गई 8.2% की वृद्धि दर से कम है। यह अनुमान भारत की मजबूत आर्थिक रिकवरी को दर्शाता है, लेकिन यह भी संकेत है कि महामारी के समय की मांग की सीमा अब समाप्त हो रही है।
वैश्विक स्तर पर, IMF ने 2024 और 2025 दोनों के लिए वैश्विक वृद्धि दर को 3.2% पर स्थिर रखा है। हालांकि संस्था ने बढ़ते जियोपाॅलिटिक्स जोखिमों, ऋण के बढ़ते बोझ और संभावित बाजार के अस्थिरता के कारण “कमजोर मध्यम अवधि की वृद्धि” जैसी चुनौतियों की चेतावनी दी है। IMF ने विशेष रूप से मिडिल-ईस्ट में बढ़ते तनावों पर चिंता जताई है। संस्था ने कहा है कि यह संघर्ष वस्तुओं की कीमतों, खासकर तेल की कीमतों में इजाफा कर सकता है जिससे वैश्विक बाजारों पर बुरा असर डाल सकता है।
हालांकि अमेरिका को 2024 की वृद्धि दर में सुधार देखने को मिला है। जोकि उच्च उत्पादकता और महगाई दर में नरमी की वजह से ऐसा सम्भव हो सका, वहीं चीन की आर्थिक संभावनाएं कमजोर हुई हैं। IMF ने चीन की 2024 की वृद्धि दर का अनुमान 5% से घटाकर 4.8% कर दिया है, जो घरेलू मांग और औद्योगिक उत्पादन में चुनौतियों का संकेत देता है।
IMF ने वैश्विक मुद्रास्फीति के रुझानों का आकलन किया। IMF के प्रमुख अर्थशास्त्री पियरे-ओलिवियर गोरिनचास ने कहा कि “ऐसा लगता है कि वैश्विक मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई लगभग जीत ली गई है।” हालांकि, उन्होंने जोर दिया कि कुछ देश अभी भी मुद्रास्फीति के दबावों से जूझ रहे हैं, जिससे यह समस्या अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। आईएमएफ के मुताबिक भारत के लिए यह अपने आर्थिक विकास को मजबूत करने का महत्वपूर्ण समय है। अर्थशास्त्रियों ने श्रम, बुनियादी ढांचे और वित्तीय क्षेत्रों में सुधारों को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया है।