बिहार में परीक्षा और उसके रिजल्ट को लेकर नौवीं से 12वीं तक के 45 फीसदी विद्यार्थी मानसिक तनाव में

stressed indian student

परीक्षा और परिणाम के दबाव में नौवीं से 12वीं के 45 फीसदी विद्यार्थी मानसिक तनाव में रहते हैं। यह तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। एनसीईआरटी के मनोदर्पण टेली काउंसिलिंग के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले एक साल में 40 से 45 फीसदी स्कूली बच्चों में मानसिक तनाव बढ़ा है। पहले यह आंकड़ा महज दस से 15 फीसदी था। वर्ष 2021 में राज्य के 25 हजार 207 विद्यार्थी मानसिक तनाव से ग्रसित थे। वहीं वर्ष 2022 में इसकी संख्या 44 हजार 578 हो गयी है।

इनमें 20 हजार 675 केवल नौवीं से 12वीं तक के ही विद्यार्थी शामिल है। बता दें कि यह स्थिति केवल निजी स्कूलों के छात्र-छात्राओं की नहीं है, बल्कि सरकारी स्कूलों के छात्र-छात्राओं की भी है। हाल में ानोदर्पण व बिहार राज्य निशक्तता (दिव्यांग) आयोग ने राज्य के सरकारी स्कूलों के बच्चों पर सर्वे किया। इसमें सूबे के 38 जिलों के एक हजार माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूल शामिल थे। इनमें 8734 छात्र-छात्राएं मानसिक तनाव में दिखे। वहीं निजी स्कूल की बात करें तो मनोदर्पण टेली काउंसिलिंग में हर दिन मानसिक तनाव से ग्रसित बच्चों का फोन आता है।

छात्रों पर ये हो रहा असर

● बच्चे गुमसुम और चुपचाप अधिक रहने लगते हैं

● पढ़ाई के साथ विभिन्न तरह की गतिविधियों में मन नहीं लगता

● कहीं आना-जाना नहीं चाहते, बस कमरे में बंद रहते हैं

● मोबाइल का इस्तेमाल अधिक करने लगते हैं

● कई बार नशा के आदी हो जाते हैं

● गलत संगत में फंस जाते हैं

पिछले कुछ वर्षों में स्कूली बच्चों में मानसिक तनाव के मामले बढ़े हैं। मनोदर्पण टेली काउंसिलिंग में लगभग हर दिन अभिभावक या छात्र खुद मानसिक तनाव की शिकायत करते हैं। इसका असर सबसे ज्यादा बच्चों की पढ़ाई पर होता है।

प्रमोद कुमार, मनोवैज्ञानिक, एनसीईआरटी

● 10वीं और 12वीं में 90 फीसदी से ऊपर अंक लाने का दबाव

● वार्षिक परीक्षा में कक्षा में टॉप करने का अभिभावक का जोर

● समय पर पाठ्यक्रम समाप्त करने का दबाव

● अभिभावकों का अन्य बच्चों से तुलना करना

● स्कूलों में शिक्षकों द्वारा सही से अध्याय नहीं समझाने से

● प्रतियोगी परीक्षा में पहले ही अवसर में सफल होने की चाहत

Rajkumar Raju: 5 years of news editing experience in VOB.
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