लोकसभा चुनाव में इस बार बीजेपी को जोर का झटका लगा। पार्टी को बहुमत से कम 240 सीटों पर सिमट गई। वहीं कांग्रेस 52 से 99 सीटों तक पहुंच गई। इतना ही नहीं इंडिया गठबंधन को इस चुनाव में 234 सीटें मिली जबकि एनडीए को 293 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। कुल मिलाकर बीजेपी को इस चुनाव में मन माफिक सफलता नहीं ना ही वह अपने दम पर बहुमत हासिल कर पाई। 2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी को बहुमत से ज्यादा 282 और 303 सीटें मिलीं थी। बीजेपी को यूपी, राजस्थान, बंगाल, हरियाणा और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। यूपी में 2019 में 62 और 2014 में 72 सीटें जीतने वाली बीजेपी को इस बार सिर्फ 33 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। वहीं एनडीए भी 36 सीटों पर सिमट गया।
बीजेपी को यूपी में हुए नुकसान का आकलन कुछ इस तरह लगाया जा सकता है कि पार्टी अयोध्या जैसी सीट पर भी चुनाव हार गई। अयोध्या में बीजेपी की चुनावी हार कई राजनीतिक विश्लेषकों ने अलग-अलग टिप्पणियां की। इसको लेकर देशभर में बीजेपी के कार्यकर्ता भी नाराज हुए। उन्होंने स्थानीय मतदाताओं पर रोष व्यक्त करते हुए कहा कि 500 साल बाद हिंदुओं के सपनों को पूरा करने वाली पार्टी को इस तरह नहीं हराना चाहिए था। इसके बाद सोशल मीडिया पर बहिष्कार करने का ट्रेंड चालू हुआ। वहां के स्थानीय लोगों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने की बात भी सामने आ रही हैं। हालांकि इनमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता।
सोशल इंजीनियरिंग में पास फिर कहां अटक गए
अब आते हैं अयोध्या की हार पर। अयोध्या में विधानसभा की 7 सीटें हैं। बीजेपी यहां की 5 सीटों पर पिछड़ गई। ऐसे में पूरे फैजाबाद जिले में मुस्लिम, यादव, दलित, ठाकुर और ओबीसी वोटर्स है। ठाकुर और ओबीसी परंपरागत रूप से बीजेपी के वोट बैंक है। दलित बसपा को देते आए हैं लेकिन राज्य में जिस पार्टी का शासन होता है उनके साथ उनका वोट जाता है। ऐसे में दलित पिछले 2 चुनाव से बीजेपी के साथ है। वहीं मुस्लिम सपा के साथ रहते हैं। ऐसे में मुस्लिम और दलितों के वोट की मदद से सपा यहां बीजेपी के लल्लू सिंह को हराने में सफल रही। ये तो बात है सोशल इंजीनिरिंग की।
इन मुद्दों के कारण हारे चुनाव
अब बात करते हैं मुद्दों की। बीजेपी सांसद लल्लू सिंह का अपने क्षेत्र से लगातार गायब रहना भी उनकी हार का प्रमुख कारण बना। विश्लेषकों की मानें तो लल्लू सिंह की क्षेत्र में निष्क्रियता उन पर भारी पड़ गई। बीजेपी ने यूपी में कई जगहों पर टिकट काटकर उम्मीदवार बदले थे। ऐसे में अयोध्या का टिकट भी बदला जाना था लेकिन पार्टी ने यहां से लल्लू सिंह का टिकट नहीं काटा और खामियाजा हम सभी के सामने है। इसके अलावा मंदिर क्षेत्र में भूमि का अधिग्रहण पर ठीक से मुआवजा नहीं मिलना। मंदिर के आसपास की जगह पर अन्य राज्यों से आए लोगों का कब्जा जैसे कई मुद्दे है जो 2019 के बाद से ही अयोध्या की फिजाओं में जवाब तलाशने के लिए लल्लू सिंह को तलाश रहे थे।
बीजेपी को रहेगा अयोध्या हारने का मलाल
संसद में इन दिनों विपक्ष की पहली मेज के के. सुरेश, राहुल गांधी अखिलेश यादव के अलावा एक और शख्स है जो की उनके पास बराबरी में बैठते हैं उनका नाम है अयोध्या के नये-नवेले सांसद अवधेश प्रसाद। इससे पहले अवधेश प्रसाद 2 बार विधायक भी रह चुके हैं। ऐसे में अवधेश प्रसाद को बराबरी में बैठाकर बीजेपी को अगले 5 साल चिढ़ाने का बंदोबस्त कांग्रेस और सपा ने कर लिया है। कुल मिलाकर कांग्रेस ने बीजेपी के जयश्रीराम के नारे को हाईजैक कर लिया है। ऐसे में अगले 5 साल तक जब भी बीजेपी के सामने अवधेश प्रसाद आएंगे तो उन्हें अयोध्या हारने का मलाल जरूर होगा।