भारत ने हाल के वर्षों में ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा बदलाव देखा है। बढ़ती औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण ऊर्जा की मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इसे ध्यान में रखते हुए, भारत ने ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें परमाणु ऊर्जा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
11 दिसंबर को परमाणु ऊर्जा विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में बताया कि 2014 में 4,780 मेगावाट क्षमता से बढ़कर 2024 में 8,180 मेगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन हो गया है। 2031-32 तक यह क्षमता 22,480 मेगावाट तक पहुंचने का अनुमान है। तमिलनाडु को परमाणु ऊर्जा से 50% बिजली का हिस्सा दिया गया है, जबकि 35% पड़ोसी राज्यों और 15% राष्ट्रीय ग्रिड को आवंटित किया गया है।
भारत की बढ़ती जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के विस्तार ने बिजली की मांग को तेज़ी से बढ़ाया है। परमाणु ऊर्जा, जो कम कार्बन उत्सर्जन करती है, सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ एक स्थिर और भरोसेमंद विकल्प साबित हो रही है। पेरिस समझौते के तहत, भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें परमाणु ऊर्जा का बड़ा योगदान होगा। भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा के विकास में नीतिगत सुधार और संस्थागत सहायता प्रदान की है। इसमें प्रमुख कदम शामिल हैं:
परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन: सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ संयुक्त परियोजनाओं की अनुमति दी गई।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग: रूस, फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों के साथ साझेदारी से नई तकनीकों और रिएक्टर निर्माण में मदद मिली।
वित्तीय प्रोत्साहन: परमाणु परियोजनाओं के लिए 11 अरब डॉलर से अधिक का बजट प्रस्तावित किया गया।
प्रमुख उपलब्धियां
– 2024 तक भारत में 22 परमाणु रिएक्टर संचालन में हैं, जिनकी कुल क्षमता 8,000 मेगावाट से अधिक है।
– तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र में रूस के सहयोग से नई इकाइयों का संचालन।
– स्वदेशी प्रौद्योगिकी से निर्मित प्रेसराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (PHWR) का सफल संचालन।
– थोरियम आधारित रिएक्टर तकनीक में प्रगति, जो भारत के प्रचुर थोरियम संसाधनों का उपयोग करती है।