पाकिस्तान में ईसाइयों पर हुए हमले और चर्चों को जलाने पर जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने प्रतिक्रिया दी है। इस घटना की निंदा करते हुए जमाअत के राष्ट्रीय सचिव के।के सुहैल ने कहा कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद पाकिस्तान के फैसलाबाद के जरनवाला में ईशनिंदा के आरोप में ईसाइयों पर हमले और चर्चों को जलाने की निंदा करती है। उन्होंने कहा, ‘चर्चों में तोड़फोड़, बाइबिल और आसपास ईसाइयों के घरों को जलाना बेहद निंदनीय और शर्मनाक है। किसी धार्मिक पूजा स्थल को अपवित्र करना मानव और उनकी मान्यताओं के प्रति असहिष्णुता और घोर अनादर को दर्शाता है। जमाअत इस हमले को सभी धर्मों और मानवता पर सामूहिक हमले के रूप में देखती है।’
पाकिस्तान की घटना निंदनीय
उन्होंने कहा कि इस्लाम जरनवाला जैसी घटना की इजाजत नहीं देता है। न तो ऐसे कृत्यों और न ही इन अपराधियों का इस्लाम से कोई लेना-देना है। उन्होंने कहा, ‘इस्लाम स्पष्ट रूप से बाइबिल और चर्चों को जलाने से मना करता है। इस्लाम मनुष्य के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा का आह्वान करता है। इस्लाम में किसी व्यक्ति का जीवन और उसका सम्मान पवित्र है। इन कृत्यों को इस्लाम से नहीं जोड़ा जा सकता है। जो लोग इस्लाम के नाम पर ऐसी हरकतें कर रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि वे इसका दुरुपयोग कर रहे हैं और इसे बदनाम कर रहे हैं। उन्हें ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। हम यह संदेश देना चाहते हैं कि मुसलमान ईसाइयों का दर्द साझा करते हैं और हम उनके साथ पूरी एकजुटता व्यक्त करते हैं।’
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने जारी किया बयान
राष्ट्रीय सचिव ने कहा, “मुस्लिम उलेमा और न्याय-प्रेमी नागरिकों द्वारा धार्मिक इबादतगाहों को बहाल करने और पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा देने की मांग की जमाअत सराहना और समर्थन करती है। समाज में बढ़ती असहिष्णुता, घृणा और कटुता गंभीर चिंता का कारण है और हमारे नैतिक विवेक को नुकसान पहुंचा रही है। हम सभी समुदाय के लोगों से अपील करते हैं कि वे उन लोगों के उकसावे से बचें जो नफरत की आग भड़काना चाहते हैं। यदि उन्हें किसी ऐसी घटना के बारे में पता चलता है जो उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करती है, तो उन्हें केवल संबंधित अधिकारियों को सचेत करना चाहिए। किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने और अपनी शर्तों पर बदला लेने का अधिकार नहीं है।”