जननायक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती को लेकर एक तरफ जहां पटना से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल बढ़ गई है, वहीं दूसरी तरफ उनके जन्मदिवस से ठीक एक दिन पहले केंद्र सरकार ने उनको भारत रत्न देने का ऐलान किया है. बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी में इसका श्रेय लेने की होड़ मच गई है. हालांकि भारत सरकार के इस फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम नरेंद्र मोदी को शुक्रिया अदा किया है।
नीतीश कुमार ने पीएम का आभार जताया
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देर रात अपने ‘एक्स’ हैंडल पर लिखा, “पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है. केंद्र सरकार का यह अच्छा निर्णय है. स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा. हम हमेशा से ही स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को ‘भारत रत्न’ देने की मांग करते रहे हैं. वर्षों की पुरानी मांग आज पूरी हुई है. इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद.”
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र ने भी अपने ‘एक्स’ हैंडल पर पोस्ट शेयर करते हुए कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की. उन्होंने लिखा, “मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है. उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है. पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है. यह भारत रत्न न केवल उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा।
कौन थे कर्पूरी ठाकुर?
अति पिछड़ा (नाई) समाज से आने वाले कर्पूरी ठाकुर बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे थे. उससे पहले वह उपमुख्यमंत्री भी बने थे. 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर वह ताजपुर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे. उन्होंने मुंगेरीलाल कमीशन की सिफारिश पर नौकरियों में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी. मैट्रिक तक की स्कूल फीस माफ करने और राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को जरूरी किया था. उनका जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया गांव में हुआ था. वहीं 64 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था।