किशोर कुणाल ने कब्र से निकाली थी ‘बॉबी’ की लाश, डोलने लगी थी CM की कुर्सी
चर्चित पूर्व आईपीएस सह महावीर मंदिर पटना न्यास समिति के सचिव का निधन हो गया. कुणाल किशोर ऐसे अधिकारी थे, जिन्होंने बॉबी हत्याकांड की जांच कर सरकार हिला दी थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा की कुर्सी खतरे में आ गयी थी, लेकिन सत्ताधीशों ने CBI को केस सौंप केस पलट दिया था. तब जाकर कुर्सी बची थी.
किशोर कुणाल ने बॉबी हत्याकांड पर किताब भी लिखी है. ‘दमन तक्षकों’ नामक किताब में उन्होंने इस घटना का जिक्र किया है. इसके माध्यम से बताने का काम किया कि ‘सत्ता ऐसी ताकत है, जिसके बदौलत कुछ भी बदला जा सकता है. ‘दोहा लिखा ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’. यह दोहा तुलसी दास द्वारा रचित है, जिसका अर्थ है ‘जो व्यक्ति समर्थ है, उसमें कोई दोष नहीं होता.’
मुजफ्फरपुर निवासी थे किशोर कुणाल: बॉबी हत्याकांड में आगे बढ़ने से पहले हम किशोर कुणाल को जानेंगे. किसी को नहीं पता था कि बिहार के मुजफ्फरपुर के बररुराज में रहने वाला एक व्यक्ति ऐसा अधिकारी बनेगा जिससे सरकार खौफ खाएगी. किशोर कुणाल की प्रारंभिक पढ़ाई लिखाई बरूराज से ही हुई. इसके बाद पटना विवि से इतिहास और संस्कृत का अध्यन किया. 1970 में स्नातक, फिर एमए और आचार्य संस्कृत में पीएचडी की.
1972 आईपीएस बने: कुणाल किशोर 1972 में यूपीएससी की परीक्षा पास कर गुजरात कैडर में आईपीएस बने. गुजरात में एसपी से लेकर डिप्टी पुलिस कमिश्नर तक सेवा देने के बाद बिहार आ गए. बिहार में उन्हें पटना का एसएसपी बनाया गया था. पटना एसएसपी रहते हुए इन्होंने बॉबी हत्याकांड की जांच की थी, जिससे सरकार हिल गयी थी. अंत में नेताओं ने सत्ता के बल ने केस दबा दिया था.
क्या है बॉबी हत्याकांड: 11 मई 1983 को दैनिक समाचार पत्र में एक खबर प्रकाशित होती है. दरअसल, बिहार विधानसभा में टाइपिस्ट का काम करने वाली लड़की की मौत हो जाती है. यह लड़की कोई और नहीं बल्कि तत्कालीन विधान परिषद की सभापति सरोज दास की गोद ली हुई बेटी श्वेता निशा थी. जिसका घर का नाम बेबी था. घटना के बाद मीडिया इसे बॉबी नाम दे दिया. घटना बॉबी हत्याकांड से चर्चित हो गयी.
किशोर कुणाल की एंट्री: घटना के बाद शव को आनन फानन में दफन कर दिया गया था. इसकी जानकारी विपक्ष को मिलते ही हंगामा शुरू हो गया था. सवाल उठने लगा था कि बॉबी के शव क्यों और कहां दफनाया गया था? इस तरह का मामला सामने आने के बाद आईपीएस अधिकारी, पटना एसएसपी किशोर कुणाल ने घटना की जांच करने की ठानी. घटना के तह तक जाकर दोषी को बेनकाब करना चाहते थे.
जांच के शुरू में ही खुला था राज: कुणाल किशोर अपने किताब ‘दमन तक्षकों’ में लिखते हैं कि अखबार की खबर को आधार बनाकर केस की जांच शुरू की. बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज दास से पूछताछ की. बॉबी की मां ने बताया कि घटना के दिन बॉबी घर से निकलने के बाद देर रात घर आयी थी. उसके पेट में दर्द था. खून की उल्टी भी की थी. उसे पटना मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था.
मौत की दो रिपोर्ट बनायी गयी: पटना मेडिकल कॉलेज से इलाज कराने के बाद उसे घर लाया गया था. घर लाने के बाद बॉबी की मौत हो गयी थी. मौत के बाद दो रिपोर्ट बनायी गयी थी. एक में मौत का समय 4 बजे और कारण इंटरनल ब्लीडिंग बताया गया था. दूसरी रिपोर्ट में मौत का समय 4:30 बजे और कारण हार्ट अटैक बताया गया था. इस तरह की रिपोर्ट देख किशोर कुणाल को शक हुआ तो उन्होंने शव का पोस्टमार्टम कराने की सोची.
कब्र से शव निकाल पोस्टमार्टम: किशोर कुणाल ने कोर्ट से अनुमति लेकर शव को कब्र से निकालकर पोस्टमार्टम कराया. रिपोर्ट में मेलेथियन नामक जहर से मौत की पुष्टि हुई. इसके बाद पुलिस का शक साफ हो गया. रिपोर्ट से साफ था कि बॉबी की मौत कोई साधारण नहीं बल्कि एक हत्या है. पुलिस ने इसकी छानबीन जोर-शोर से शुरू कर दी.
घटना से पहले रात में कौन आया था?: पुलिस की छानबीन में पता चला कि बॉकी का कई बड़े लोगों से मिलना जुलना था. नौकरी के दौरान कई नेताओं और विधायकों से जान पहचान हो गयी थी. पोस्टमार्टम के बाद किशोर कुणाल ने एक बार फिर बॉबी की मां से पूछताछ की. पता चला कि बॉबी के कमरे से कई सामान गायब थे. आवास से सटे एक आउट हाउस में दो लड़के रहते थे. उनसे भी पूछताछ की गयी तो पता चला कि घटना से पहले रात में बॉबी से मिलने एक आदमी आया था.
घटना में रघुवर झा की एंट्री: जो बॉबी से मिलने आया था, वह कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस की बड़ी नेता राधा नंदन झा का बेटा रघुवर झा था. पूछताछ में बॉबी की मां ने बताया था कि रघुवर झा ने उनकी बेटी को एक दवाई थी. जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी थी और इलाज के बाद उसकी मौत हो गयी थी.
नकली डॉक्टर भी शामिल: पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि इस घटना में एक नकली डॉक्टर विनोद कुमार भी था. उसने रघुवर झा के कहने पर बॉबी को दवा दी थी. इसी डॉक्टर ने झूठा पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनायी थी. सरोज दास ने खुद इस बात को अदालत में कबूल की थी. इसके बाद मामला हाईप्रोफाइल हो गया था. कई सत्ताधारी मंत्री और विधायक के नाम सामने आ रहे थे.
नेताओं के नाम आने से होने लगी राजनीति:मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण विपक्ष इस मुद्दा को खूब उठा रहे थे. विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर ने मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा पर आरोप लगाया था कि वे पुलिस पर आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करने का दवाब बना रहे हैं. मामला राजनीति रंग लेने लगा था. वहीं कुछ नेता सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रहे थे.
जवाब सुन फोन रख दिए थे सीएम: कुणाल अपने किताब में लिखते हैं कि एक दिन सीएम जगन्नाथ मिश्रा का उन्हें फोन आया. उन्होंने पूछा कि ‘ये बॉबी हत्याकांड का क्या मामला है?’ इसपर किशोर कुणाल ने सीएम को ऐसा जवाब दिया कि वे चुपचाप फोन रख दिए. उन्होंने कहा कि ‘सर आपकी छवि कुछ मामलो में अच्छी नहीं है लेकिन आप चरित्र के बेदाग हैं. इस केस में नहीं पड़े. यह ऐसी आग है जिसमें आपका हाथ जल जाएगा’
सत्ताधारी नेताओं ने खेला सीबीआई गेम: कई खुलासे हुए. सत्ताधारी मंत्री और विधायक का नाम इस घटना से जुड़ा. इसके बाद सत्ता पक्ष के 4 दर्जन विधायक सीएम से मिले. जगन्नाथ मिश्रा सरकार बचाने के लिए दवाब में आ गए थे. घटना के लगभग 14 दिनों के बाद केस सीबीआई को सौंप दिया गया. बिहार पुलिस के हाथ से यह केस चला गया. सारी फाइल सीबीआई को सौंप दिया गया.
सीबीआई गेम हुआ सफल: सीबीआई ने अपनी जांच में हत्या को आत्महत्या बताकर मामला पलट दिया. रिपोर्ट में इसे प्रेम प्रसंग बता दिया गया. लिखा गया कि प्रेमी से मिले धोखे के कारण उसने आत्महत्या कर ली. सीबीआई ने रघुवर झा को निर्दोष बताया और कहा कि घटना के दिन आरोपी शादी समारोह में गए थे. पुलिस पर आरोप लगा था कि उसने उन दो लड़कों पर दवाब बनाकर रघुवर झा का नाम कबूलवाया.
सीबीआई ने दी क्लीन चिट: आखिर में सीबीआई से आरोपियों को अभयदान मिल गया. जांच में आरोपी दोषमुक्त करार दिए गए. लेकिन आज भी जब इस हत्याकांड की चर्चा होती है तो किशोर कुणाल का चेहरा सबके सामने आ जाता है. आईपीएस की नौकरी के बाद कुणाल किशोर संस्कृति विवि के कुलपति और फिर बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक बने और 2010 में इसके अध्यक्ष बने थे. फिर महावीर मंदिर न्यास समिति के सचिव बने.
महावीर मंदिर को लेकर चर्चा में: महावीर मंदिर को लेकर भी किशोर कुणाल चर्चा में रहे थे. महावीर मंदिर का जब फिर से निर्माण हो रहा था तो उस समय उसकी ऊंचाई को लेकर भी काफी विवाद हुआ था. अंतत: किशोर कुणाल के कारण भव्य महावीर मंदिर का निर्माण हो सका.
महावीर मंदिर के कई संस्थान: पटना हनुमान मंदिर में एक दलित पुजारी नियुक्ति कर आचार्य किशोर कुणाल ने एक नई पहल की थी. हनुमान मंदिर के माध्यम से उन्होंने महावीर कैंसर संस्थान, महावीर आरोग्य संस्थान, महावीर नेत्रालय, महावीर वात्सल्य अस्पताल जैसे कई धर्मार्थ अस्पतालों की स्थापना की. विराट रामायण मंदिर के निर्माण को लेकर इन दोनों एक्टिव थे.
राम मंदिर लिए 10 करोड़ दिए: यही नहीं किशोर कुणाल अयोध्याम राम मंदिर ट्रस्ट के भी सदस्य थे. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के वक्त 10 करोड़ रुपए का चंदा महावीर मंदिर की ओर से दिए थे. भगवान श्रीराम के लिए सोने का धनुष भी दिया गया था.
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