छुट्टी मिल गई.. घर आ गए..घर में छठ की तैयारी भी शुरू हो गई.. अब वह दिन आ गया जब शाम का अर्घ्य देना है लेकिन, उससे पहले प्रसाद बनाने की तैयारी होती है. अब वह प्रसाद हर बिहारवासी के मन, मस्तिक और भावनाओं से जुड़ा हुआ है. वह प्रसाद, जिसके बिना लोक आस्था का महापर्व छठ थोड़ा अधूरा लगता है. वह प्रसाद जब अर्घ्य चढ़कर हाथ में मिलता है, तो सारे जहां की खुशी मिल जाती है. जब उस प्रसाद को हम खाते हैं तो, उसके सामने दुनिया-जहान सारे पकवान फीके लगते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं लोक आस्था के महापर्व में बनने वाले महाप्रसाद ठेकुआ की.
बेस्ट गेहूं का सिलेक्शन : ठेकुआ का वास्ता तो हर बिहारी सी रहा है लेकिन, छठ महापर्व में बनने वाले ठेकुआ की बात ही कुछ और होती है. यह महज आटे, गुड़ और घी से बनने वाला प्रसाद नहीं है, इस प्रसाद को बनाने के लिए एक लंबे जतन की जरूरत होती है. इस प्रसाद को बनाने की तैयारी के पीछे पूरे परिवार का मेहनत होती है. वह मेहनत इस रूप में होती है कि पहले बाजार या खेत के सबसे बेहतर गेहूं को चुना जाता है और बड़ी ही शुद्धता के साथ उस गेहूं को गंगाजल के पानी में धोया जाता है. उस गेहूं को सुखाने के लिए अलग व्यवस्था की जाती है और वह व्यवस्था यह होती है कि जब गेहूं को किसी कपड़े पर फैलाया जाता है, तो वहां आसपास किसी भी जीव, जंतु की या फिर पक्षी की उपस्थिति नहीं होनी चाहिए.
शुद्धता का रखा जाता है ख्याल : इसके पीछे एक आस्था भी चलती है, आस्था यह है कि जब गेहूं सुखाया जाता है तो भगवान सूर्य की रोशनी को साक्षी मानकर, भले पशु पक्षी से प्रेम हो लेकिन, उन्हें उस गेहूं को जूठन नहीं करने दिया जाता है. इसलिए जब तक गेहूं को सुखाया जाता है तब तक परिवार का एक सदस्य वहां उपस्थित रहता है. और जब गेहूं सूख जाता है उसकी पिसाई भी शुद्धता से की जाती है. पहले के दिनों में तो इसकी पिसाई घर के सदस्य आपस में चक्की से करते थे. लेकिन, अब के दिनों में मिल में भी इसकी पिसाई होने लगी.
नयका गुड़ का उपयोग : आटे के बाद अब तैयारी होती है गुड़ की. जब गन्ने का फसल खेत में तैयार हो जाता है तो, छठ के लिए अलग से गुड़ बनाया जाता है. आम दिनों में बनाए जाने वाले गुड़ से अलग, पूरी तरह से कारीगरों की निगरानी में उसे गुड़ को तैयार किया जाता है. आम भाषा में इसे ‘नया गुड़’ कहते हैं. जिसमें एक भी खर-पतवार ना ह, ऐसी बनाने की कोशिश की जाती है.
गाय का शुद्ध देसी घी : गुड़ के बाद घी की भी तैयारी की जाती है. किसी भी आम घी में इसे तला नहीं जाता है तो, ऐसे में गाय के शुद्ध घी की व्यवस्था की जाती है. इसकी तैयारी महीना पहले से शुरू हो जाती है. गांव घर में गाय के घी के लिए लोग पहले से ही तैयारी करना शुरू कर देते हैं. वहीं शहरी क्षेत्र में गाय का शुद्ध घी बाजार में उपलब्ध होता है.
मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है प्रसाद : जब आटा, गुड, घी की तैयारी हो जाती है तो इसे पकाने की विधि भी बहुत ही पारंपरिक होती है. आम के पेड़ की सूखी हुई लड़कियों की व्यवस्था की जाती है. मिट्टी के चूल्हे पर पीतल के बर्तन में या कड़ाही में ठेकुआ के मिश्रण को तैयार करके शुद्ध घी में तला जाता है. आपको यह बता दें कि ठेकुआ का जो मिश्रण तैयार किया जाता है, उसमें गंगाजल का प्रयोग किया जाता है. इसकी तैयारी संध्या अर्घ्य से पहले दिन में ही कर ली जाती है ताकि, संध्या अर्घ्य में ठेकुए का अर्घ्य दिया जा सके. उसके बाद दूसरे दिन सुबह के अर्घ्य के बाद इस प्रसाद को लिया खाया जाता है.
प्रसाद के रूप ठेकुआ का डिमांड : जब प्रसाद हाथ में आता है तो उसका स्वाद अद्भुत होता है. तभी जब कोई बिहारी दूसरे प्रदेश से छुट्टी लेकर छठ में आता है, जब वापस वर्कप्लेस पर जाता है तो उसके पास पड़ोस या फिर सहकर्मी उससे एक ही प्रसाद की डिमांड करते हैं कि छठ के प्रसाद के रूप में ठेकुआ ही देना और ऐसे में जो बिहार के लोग होते हैं वह अपने साथ प्रसाद के रूप में ज्यादा ठेकुआ घर में बनवाते हैं क्योंकि, उन्हें खुद तो अच्छा लगता ही है, लोगों को खिलाने में भी वह इस बात की अनुभूति करते हैं कि उनका एक ऐसा पकवान जो प्रकृति की पूजा के बाद और भी स्वादिष्ट हो जाता है, वह लोगों को बड़े हर्ष और गर्व के साथ खिलाते हैं.
प्रकृति की पूजा-प्रकृति के पदार्थो से : चूंकी, लोक आस्था का महापर्व छठ पूरी तरह से प्रकृति की पूजा होती है, सूर्य की पूजा होती है, नदी की पूजा होती है, वैसे ही इसमें बनने वाले प्रसाद को भी पूरी तरह से प्रकृति से उपजे हुए पदार्थ से बनाया जाता है. गेहूं, गुड़, घी, आम की लकड़ी, मिट्टी के चूल्हे को पारंपरिक तरीके से इक्कट्ठा करके इस पूरे प्रसाद के भोग को बनाया जाता है.